रटो पार्वती के भरतार करेंगे भव से बेड़ा पार
करेंगे भव से बेड़ा पार
शिव नंदे के असवार,
करेंगे भव से बेड़ा पार
कैलाश के राजा आप महाराजा,
शोभा बरनी न जाई
गौरा संग में बाए अंग में,
शेषनाग लिपटाए
जाता जूट में गंग की धार,
करेंगे भव से बेड़ा पार
भष्मासुर सुर को दे दिया हरी ने,
भष्म कड़ा अतिभारी
वो दीवाना सोचे दाना,
हर ल्यु शिव कि नारी
लिया मन में कपट विचार,
करेंगे भव से बेड़ा पार
शम्भू भाग्या डर जब लाग्या,
तीन लोक घबराये
देवो ने जब माया पलटी,
विष्णु प्रकट हो आये
लिया रूप मोहिनी धार,
करेंगे भव से बेड़ा पार
सीताराम राधेश्याम,
रटता माला तेरी
आया शरण में पड्या चरण में,
लाज राखियो म्हारी
शिव निराधार आधार,
करेंगे भव से बेड़ा पार
रटो पार्वती के भरतार द्वितीय लिरिक्स
शिव समान दाता नहीं,विपत विदारण हार।
लजिया मोरी राखियो, शिव बेलन के अवतार।
रटो पार्वती के भरतार,
रटो पार्वती के भरतार,
करेंगे भव से बेड़ा पार।
शिव नंदे के असवार,
करेंगे भव से बेड़ा पार।
कैलाश के राजा आप महाराजा,
शोभा बरनी न जाई।
भाव अंग में गौरा संग में,
शेषनाग लिपटाए।
जटा जूट में गंग की धार,
करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती …..
भष्मासुर ने दे दिया हरी ने,
भष्म करा अतिभारी।
वो दीवाना सोचे दाना,
हर ल्यु शिव कि नारी।
लिया मन में कपट विचार,
करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती …..
शम्भू भागे डर जब लागे,
तीन लोक घबराये |
देवो ने जब पलटी माया,
विष्णु प्रकट हो आये |
लिया रूप मोहिनी धार,
करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती …..
सीताराम राधेश्याम,
रटता माला तेरी।
आया शरण में पड्या चरण में,
लाज राखियो म्हारी।
शिव निराधार आधार,
करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती के भरतार,
करेंगे भव से बेड़ा पार।
शिव नंदे के असवार,
करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती के भरतार, करेंगे भव से बेड़ा पार।
शिव नंदे के असवार, करेंगे भव से बेड़ा पार।
कैलाश के राजा आप महाराजा, शोभा बरनी न जाई।
भाव अंग में गौरा संग में, शेषनाग लिपटाए।
जटा जूट में गंग की धार, करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती …..
भष्मासुर ने दे दिया हरी ने, भष्म करा अतिभारी।
वो दीवाना सोचे दाना, हर ल्यु शिव कि नारी।
लिया मन में कपट विचार, करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती …..
शम्भू भागे डर जब लागे, तीन लोक घबराये |
देवो ने जब पलटी माया, विष्णु प्रकट हो आये |
लिया रूप मोहिनी धार, करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती …..
सीताराम राधेश्याम, रटता माला तेरी।
आया शरण में पड्या चरण में, लाज राखियो म्हारी।
शिव निराधार आधार, करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती के भरतार, करेंगे भव से बेड़ा पार।
शिव नंदे के असवार, करेंगे भव से बेड़ा पार।
रटो पार्वती के भरतार,
करेंगे भव से बेड़ा पार
शिव नंदे के असवार,
करेंगे भव से बेड़ा पार
VIKASH NATH JI BHAJAN ( RATO PARVATI KE BHARTAR )
Singer : Pujya Vikash Nath Ji Maharaj
शिव-प्रेम कोई भावना नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा है — जहाँ मनुष्य अपने समस्त बोझ, भय और मोह को त्यागकर शिव के चरणों में विश्रांति पाता है।
शिव का रूप हमें बताता है कि सौंदर्य और भय एक साथ भी पूज्य हो सकते हैं। वह जटाओं में गंगा धारण करते हैं, कंठ में सर्प है, देह पर भस्म है, पर हृदय में अपार करुणा है। वह नन्दी पर सवार हैं, पर भीतर पूर्ण निरंकार हैं — कोई रूप नहीं, कोई सीमा नहीं। गौरा उनके अंग में हैं, और मुण्डमाला उनके गले में — फिर भी वह शांत हैं, स्थिर हैं। यह हमें सिखाता है कि जब भीतर शिव बसते हैं, तब संसार का कोई भय नहीं रह जाता।
भस्मासुर की कथा केवल एक दैत्य की नहीं, बल्कि हर उस मनुष्य की कथा है जो शक्ति पाकर अहंकार में अंधा हो जाता है। शिव ने भस्मासुर को वर दिया, क्योंकि वे दयालु हैं; पर जब उसी वर का दुरुपयोग हुआ, तब वही शक्ति विनाश का कारण बनी। इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है — ईश्वर की कृपा तभी कल्याणकारी होती है जब हृदय विनम्र हो। वरना वही कृपा जीवन के पतन का कारण बन सकती है। यहाँ विष्णु का मोहिनी रूप आना, यह दर्शाता है कि शिव और विष्णु एक-दूसरे के पूरक हैं — सृष्टि में संतुलन के लिए दोनों का संग आवश्यक है।
और जब आत्मा पूरी तरह शरणागत होकर कहती है — “आया शरण में पड़्या चरण में, लाज राखियो म्हारी”, तब यह कोई शब्द नहीं, बल्कि समर्पण का स्वर है। भक्त अब अपना सब कुछ छोड़ चुका है, बस भरोसा रह गया है भोलेनाथ पर — कि वही उसकी नैया पार लगाएंगे।
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