भूखा भूखा क्या करे क्या सुनावे लोग मीनिंग
भूखा भूखा क्या करे क्या सुनावे लोग
भांडा घड़ा निज मुख दिया , सोई पूरण जोग
Bhookha Bhookha Kya Kare Kya Sunaave Log
Bhaanda Ghada Nij Mukh Diya , Soee Pooran Jog
दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha
भूखा भूखा क्या करे : अभावों का बखान करना।
क्या सुनावे लोग : लोगों को क्या सुनाते हों।
भांडा घड़ा निज मुख दिया : जिसने तुमको जीवन दिया है। घड़े के समान मुख दिया है।
सोई पूरण जोग : परम पिता परमेश्वर ही सुनेगा। पूर्ण रूप से जाग जाओ।
दोहे का हिंदी मीनिंग : अभावों का वर्णन मत करो क्योंकि जिस परम पिता परमेश्वर ने घड़े के समान मुख दिया है, उसकी भक्ति करों अभावों को वो ही पूर्ण करेगा। अभाव को यह संसार पूर्ण नहीं कर सकता है, इसलिए आशा उसी दाता से रखो जिनसे जन्म दिया है और आकार देकर जगत में भेजा है। तीनों लोकों का दाता, एक ही है, लेकिन भ्रम और स्वंय के ऊपर विश्वास की कमी के कारण जीव दर दर की ठोकर खाता है। गुरु को इसी कारन से कबीर साहेब ने बहुत ऊँचा दर्जा दिया है जो की ज्ञान की जोत जलाता है।
अबरन कौं का बरनिये, मोपै लख्या न जाइ।
अपना बाना बाहिया, कहि कहि थाके माइ॥
झल बाँवे झल दाँहिनैं, झलहिं माँहि ब्यौहार।
आगैं पीछै झलमई, राखै सिरजनहार॥
साईं मेरा बाँणियाँ, सहजि करै ब्यौपार।
बिन डाँडी बिन पालड़ै, तोलै सब संसार॥
कबीर साहेब इन इस दोहे में स्वंय / आत्मा का परिचय देते हुए स्पष्ट किया है की मैं कौन हूँ,
जाती हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम।
अलख हमारा इष्ट, गगन हमारा ग्राम।।
जब आत्मा चरम रूप से शुद्ध हो जाती है तब वह कबीर कहलाती है जो सभी बन्धनों से मुक्त होकर कोरा सत्य हो जाती है। कबीर को समझना हो तो कबीर को एक व्यक्ति की तरह से समझना चाहिए जो रहता तो समाज में है लेकिन समाज का कोई भी रंग उनकी कोरी आत्मा पर नहीं चढ़ पाता है।
कबीर स्वंय में जीवन जीने और जीवन के उद्देश्य को पहचानने का प्रतिरूप है। कबीर का उद्देश्य किसी का विरोध करना मात्र नहीं था अपितु वे तो स्वंय में एक दर्शन थे, उन्होंने हर कुरीति, बाह्याचार, मानव के पतन के कारणों का विरोध किया और सद्ऱाह की और ईशारा किया। कबीर के विषय में आपको एक बात हैरान कर देगी। कबीर के समय सामंतवाद अपने प्रचंड रूप में था और सामंतवाद की आड़ में उनके रहनुमा मजहब के ठेकेदार अपनी दुकाने चला रहे थे।
जब कोई विरोध का स्वर उत्पन्न होता तो उसे तलवार की धार और देवताओं के डर से चुप करवा दिया जाता। तब भला कबीर में इतना साहस कहाँ से आया की उन्होंने मुस्लिम शासकों के धर्म में व्याप्त आडंबरों का विरोध किया और सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा भी की। कबीर का यही साहस हमें आश्चर्य में डाल देता है। आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं