ऊँचे कुल का जनमियाँ मीनिंग Unche Kul Ka Janamiya Meaning, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )
ऊँचे कुल का जनमियाँ, जे करणीं ऊँच न होइ।सुवरण कलस सुरे भर्या, साधू निंद्या सोइ॥
Unche Kul Ka Janamiya, Je Karani Uncha Na Hoi,
Suvaran Kalas Sure Bharya, Sadhu Nida Soi.
ऊँचे कुल का जनमियाँ : ऊँचे कुल में जन्म लेने से क्या होता है.
जे करणीं ऊँच न होइ :यदि ऊँची करनी नहीं है तो.
सुवरण कलस सुरे भर्या : सोने के कलश में यदि शराब भरी हुई है.
साधू निंद्या सोइ : वह संतजन/साधुजन की निंदा का पात्र ही होता है.
ऊँचे कुल : ऊँचे कुल में, ऊँची जाती में,
जनमियाँ : जन्म लेने से.
जे : यदि.
करणीं : कर्म.
ऊँच न होइ : ऊँचे/ महान ना हो, श्रेष्ठ ना हो.
सुवरन : सोने के, स्वर्ण के.
कलस : कलश में.
सुरे भर्या : शराब भरा हुआ है.
साधू निंद्या : साधू उसी की निंदा करते हैं.
सोइ : उसकी.
जे करणीं ऊँच न होइ :यदि ऊँची करनी नहीं है तो.
सुवरण कलस सुरे भर्या : सोने के कलश में यदि शराब भरी हुई है.
साधू निंद्या सोइ : वह संतजन/साधुजन की निंदा का पात्र ही होता है.
ऊँचे कुल : ऊँचे कुल में, ऊँची जाती में,
जनमियाँ : जन्म लेने से.
जे : यदि.
करणीं : कर्म.
ऊँच न होइ : ऊँचे/ महान ना हो, श्रेष्ठ ना हो.
सुवरन : सोने के, स्वर्ण के.
कलस : कलश में.
सुरे भर्या : शराब भरा हुआ है.
साधू निंद्या : साधू उसी की निंदा करते हैं.
सोइ : उसकी.
उच्च कुल, उच्च जाती में जन्म लेने मात्र से कोई महान नहीं बन जाता है. यदि उच्च जाती में कोई जन्म ले और कर्म नीच करे तो उसे कौन श्रेष्ठ कहेगा. सोने के कलश में यदि शराब भरी हुई है तो उसे संतजन अवश्य ही निम्न कहेंगे. अतः हमें हमारे कर्मों पर ध्यान देना चाहिए. कौन किस जाती का है, कुल या देश का है यह बातें महत्त्व नहीं रखती हैं. प्रस्तुत साखी में द्रष्टान्त अलंकार की व्यंजना हुई है. जाती और कुल की पहचान व्यक्ति के कर्मों से बड़ी नहीं है. यदि कोई निम्न कुल में जन्म लेकर भी अपने कर्मों के आधार पर महान बन बन सकता है और इसके विपरीत यदि कोई उच्च कुल में जन्म लेता है लेकिन उसकी करनी ठीक नहीं है तो अवश्य ही उसे कोई भी श्रेष्ठ नहीं कहेगा.
कबीर साहेब के समय में जातिगत व्यवस्था का बोलबाला था. व्यक्ति को उसकी जाती के आधार पर पहचान मिलती थी जिसका कबीर साहेब ने विरोध किया. साहेब ने
कबीर साहेब के समय में जातिगत व्यवस्था का बोलबाला था. व्यक्ति को उसकी जाती के आधार पर पहचान मिलती थी जिसका कबीर साहेब ने विरोध किया. साहेब ने
कर्मों को महत्त्व दिया और कहा की तुम अपने कर्मों के आधार पर ही कसौटी में कसे जाओगे.