माटी का एक नाग बनाके पुजे लोग लुगाया हिंदी मीनिंग Maati Ka Ek Naag Banake Puje Log Lugaya Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning
माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया।
जिंदा नाग जब घर मे निकले,ले लाठी धमकाया।।
जिंदा नाग जब घर मे निकले,ले लाठी धमकाया।।
Maatee Ka Ek Naag Banaake, Puje Log Lugaaya.
Jinda Naag Jab Ghar Me Nikale,le Laathee Dhamakaaya.
Mati Ka Ek Naag Bana Word Meaning Hindi माटी का एक नाग बना शब्दार्थ हिंदी.
माटी का एक नाग बना के : माटी का बनावटी सांप बनाया।
पूजे लोग लुगाय : नर और नारी पूजा करते हैं।
जिन्दा नाग जब घर में निकले : वास्तविक सांप निकलने पर।
ले लाठी धमकाया : लाठी से मार डालते हैं।
पूजे लोग लुगाय : नर और नारी पूजा करते हैं।
जिन्दा नाग जब घर में निकले : वास्तविक सांप निकलने पर।
ले लाठी धमकाया : लाठी से मार डालते हैं।
इस दोहे का हिंदी में भावार्थ : लोग पूजा पाठ में आडंबर और दिखावा करते हैं, मसलन सांप की पूजा करने के लिए वे माटी का सांप बनाते है। लेकिन जब वही सांप वास्तव में उनके घर चला आता है तो लाठियों से उसे पीट पीट कर मार डाला जाता है। भाव है की दिखावा किसी और का और धरातल पर उसके विपरीत कार्य करना। जब तक कार्य व्यवहार में समभाव, तार्किकता नहीं होगी कोई कार्य बनने से रहा। वस्तुतः कबीर साहेब इस दोहे के माध्यम से पूजा पर भी ध्यान आकृष्ट करवाते हैं और सन्देश देते हैं की प्रतीकात्मक पूजा से कोई लाभ नहीं होगा। प्रतीकात्मक और दिखावे की पूजा से मन को झूठी दिलासा दी जा सकती है, ईश्वर की प्राप्ति नहीं।
कबीर की जाति क्या थी? What is the Cast of Kabir, What is the Religion of Kabir Hindu or Muslim: वैसे तो यह सवाल ही अनुचित है की कबीर के जाति क्या थी क्योंकि कबीर ने सदा ही जातिवाद का विरोध किया। यह सवाल जहन में उठता है क्योंकि हम जानना चाहते हैं ! संत की कोई जाति नहीं होती और ना ही उसका कोई धर्म ! कबीर की जाति और धर्म जानने की उत्सुकता का कारन है की वस्तुतः हम मान लेते हैं की दलित साहित्य चिंतन और लेखन करने वाला दलित ही होना चाहिए। कबीर साहेब ने बरसों से चली आ रही सामजिक और जातिगत मान्यताओं को खारिज करते हुए मानव को मानव होने का गौरव दिलाया और घोषित किया की
एक बूंद एकै मल मूत्र, एक चम् एक गूदा।
एक जोति थैं सब उत्पन्ना, कौन बाम्हन कौन सूदा।।
जातिगत और जन्म के आधार पर कबीर साहेब ने किसी की श्रेष्ठता मानने से इंकार किया। बहरहाल, क्या कबीर दलित थे ? मान्य चिंतकों और साहित्य की जानकारी रखने वाले विद्वानों के अनुसार कबीर साहेब दलित नहीं थे क्यों की समकालिक सामाजिक परिस्थितियों में दलितों को 'अछूत' माना जाता था। कबीर साहेब के विषय में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। मान्यताओं के आधार पर कबीर साहेब जुलाहे (मुस्लिम जुलाहे ) से सबंध रखते थे और मुस्लिम समाज में अश्प्रश्य, छूआछूत जैसे कोई भी अवधारणा नहीं रही है, हाँ, गरीब और अमीर कुल का होना एक दीगर विषय हो सकता है।
जाँति न पूछो साधा की पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का पड़ा रहने दो म्यान।
इसके विपरीत आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कबीर साहेब का जन्म ब्राह्मण जाती में होना बताते हैं और कबीर साहेब को 'नाथपंथी होना' बताते हैं। डॉक्टर धर्मवीर भारती जी के अनुसार कबीर साहेब मुस्लिम जुलाहे तो थे ही और अछूत भी थे जो कुछ समझ से परे की बात लगती है। कबीर साहेब दलित थे या नहीं यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन कबीर साहेब की दलित चेतना सभी को एक स्वर में मान्य है। कबीर के वाणी को साखी, सबद और रमैनी तीनो रूपों में लिखा गया है। जो ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है और कबीर के नाम पर ८४ ग्रन्थ होने की जानकारी मिलती है।
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