नैणा रा लोभी कीकर आवूं सा फोक सोंग

नैणा रा लोभी कीकर आवूं सा राजस्थानी फोक सोंग

 
नैणा रा लोभी कीकर आवूं सा Naina Ra Lobhi Kikar Aavu Sa Lyrics

ओ जी हाँ सा,
म्हारी रुणक झुणक पायल बाजे सा
नैणा रा लोभी,
कीकर आवूं सा, (कीकर-कैसे )
बायीं सा रा बीरा,
अजी हाँ सा,
म्हारी ड्योरानी जेठाणी,
पायल बाजे सा,
नैणा रा लोभी,
कीकर आवूं सा,बायीं सा रा बीरा,
कीकर आवूं सा,

ओ जी हाँ सा म्हे तो,
आवूं ना पाछी मुड़ जाऊं सा,
ओ जी हाँ सा म्हे तो,
आवूं ना पाछी मुड़ जाऊं सा,
बायीं सा रा बीरा,
कीकर आवूं सा,
बायीं सा रा बीरा,
कीकर आवूं सा,

कुण जी खुदाया कुवा बावड़ी जी,
पणिहारी जियालों, मृगानैणी जियालों,
कुण जी खुदाया समद तालाब,
म्हारा बालाजी,
बाई सा खुदाया समद तालाब,
म्हारां बालाजी,

ओ जी हाँ सा म्हे तो,
आवूं ना पाछी मुड़ जाऊं सा,
ओ जी हाँ सा म्हे तो,
आवूं ना पाछी मुड़ जाऊं सा,
बायीं सा रा बीरा,
कीकर आवूं सा,
बायीं सा रा बीरा,
कीकर आवूं सा,


Aji Hansa Mhari | Rajasthani Folk Songs | Live Performance | Rudraksh The Band | USP TV
 
इस लोकगीत में राजस्थानी जनजीवन की सहजता, प्रेम और लाज की अद्भुत झलक दिखती है। इसमें एक नारी के हृदय की वह कोमल व्याकुलता है जो प्रेम, मर्यादा और संस्कार — तीनों को एक साथ जी रही है। पायल की रुणक-झुणक किसी अलंकार की नहीं, भावना की आवाज़ है — हर टुनक में उसका मन गूंजता है। उसकी आँखों में प्रेम है, पर उन आंखों की झिझक भी संस्कृति की परंपरा में पगी हुई है। वह जाना चाहती है, पर जाने का साहस उतना आसान नहीं; वहाँ परिवार की मर्यादा, सास-ननद का दाय, समाज का धैर्य — सब साथ बंधे हैं। इसीलिए उसका हर शब्द, हर पुकार गीत बनकर निकलती है — कोमल, प्रश्नभरी, पर आत्मीय।

यह भाव केवल पनघट या आंगन का नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण मानस का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें प्रेम है, पर संस्कार उसमें गूँथे हुए हैं। विरह का दर्द भी यहाँ सुंदर लगता है क्योंकि उसमें आत्म-संयम की सुगंध है। जैसे रेत के बीच से बहती हवा भी अपना संगीत साथ लाती है, वैसे ही यह गीत मनुष्य की भावनाओं को शालीन ढंग से व्यक्त करता है — बिना ऊँचे स्वर, बिना विद्रोह, बिना आडंबर।

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