निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय हिंदी मीनिंग Nindak Niyare Rakhiye Aangan Kuti Chavay Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
कबीर के दोहे व्याख्या हिंदी में
निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
या
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
या
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥
Nindak Niyare Raakhie Ongan Kutee Chhavaay,
Bin Paanee, Saabun Bina, Nirmal Kare Subhaay.
Ya
Nindak Neda Raakhiye, Aangani Kutee Bandhai.
Bin Saaban Paanneen Bina, Niramal Karai Subhai.
Bin Paanee, Saabun Bina, Nirmal Kare Subhaay.
Ya
Nindak Neda Raakhiye, Aangani Kutee Bandhai.
Bin Saaban Paanneen Bina, Niramal Karai Subhai.
निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय शब्दार्थ Nindak Niyare Rakhiye Word Meaning Hindi
नियरे राखिए - निकट रखना चाहिए।
ऑंगन -आँगन में।
कुटी छवाय- पेड़ पौधों की छांया रखनी चाहिए।
बिन पानी-बगैर पानी।
साबुन बिना-बगैर साबुन के।
निर्मल करे सुभाय- स्वभाव को निर्मल कर देता है। निंदक व्यक्ति अवगुणों और दोष को रेखांकित और चिन्हित करता है जिससे उनका निराकरण सम्भव हो पाता है।
दोहे का हिंदी में अर्थ : निंदक नियरे राखिये का हिंदी में अर्थ है की हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखना चाहिये. निंदक हमारे चरित्र की दुर्बलता को हमारे सामने लाता है जिससे हम अपनी कमियों को दूर कर सकते हैं. निंदक व्यक्ति बिना साबुन और पानी के हमारे चरित्र और स्वभाव को निर्मल कर देता है.
चरित्र और व्यक्तिगत दुर्बलता/विकार कब दूर होंगे ,जब कोई हमें परखे, हमारा विश्लेष्ण करे। यह कार्य निंदक कर सकता है, क्योंकि वह हमारी कमिया ही ढूंढने में लगा रहता है। इसलिए निंदक को समीप रखना चाहिए जो हमारे अवगुणों को चिन्हित कर हमें उसके बारे में बताता है, अन्यथा हम स्वंय का विश्लेषण नहीं कर पाते हैं। यह मानव का मूल स्वभाव है की वह दूसरों की कमियों को तो देख सकता है, झट से गिना सकता है लेकिन स्वंय के द्वारा किये गए अच्छे, बुरे प्रत्येक कार्य की पैरवी करता है। हमारा अहम् हमें हमारे दुर्गुणों को देखने नहीं देता है। कबीर साहेब के वाणी है की जैसे आँगन में कुटिया (झौपडी) के सामने हमें ठंडी छाव के लिए एक पेड़ रखना चाहिए, उसी भांति हमें हमारे समीप निंदक को भी रखना चाहिए क्यों की वह बिना पानी और साबुन के हमारे स्वभाव को निर्मल और दोषमुक्त कर देता है।
कबीर के दोहे हिंदी में / Kabir Ke Dohe Hindi Meanin (Hindi Arth Sahit)
- पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहार-दोहे का हिंदी अर्थ
- काबा फिरि कासी भया रामहि भया रहीम हिंदी में अर्थ
- मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं हिंदी भावार्थ
- जिनि पाया तिनि सूगह गह्या रसना लागी स्वादि हिंदी भावार्थ
- कबीर हरि रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि लिरिक्स व्याख्या
- कबीर सतगुर ना मिल्या रही अधूरी सीष-भावार्थ हिंदी
- गुरु गोविंद तो एक है दूजा यहु आकार-हिंदी भावार्थ
- बूड़े थे परि ऊबरे गुर की लहरि चमंकि-हिंदी भावार्थ
- सतगुरु बपुरा क्या करे, जे शिषही माँहि चूक-हिंदी भावार्थ
ऐसा क्यों है की हम चापलूसी को तो पसंद करते हैं लेकिन निंदा को नहीं ! ऐसा भी नहीं है की निंदा सदा सकारात्मक ही हो, लेकिन निंदा से दूर भागने का कारण है हमारा अहम। हम ऐसी कोई भी बात सुनना ही नहीं चाहते हैं जो हमारी सोच के विरुद्ध हो। क्यों नहीं दूसरों के दृष्टिकोण को भी समझ कर उसे स्थान दिया जाय, इतना स्थान तो हमारे हृदय में होना ही चाहिए। यह कभी नहीं मानना चाहिए की हम ही सबसे अधिक श्रेष्ठ, निपुण, योग्य और कुशल हैं। ऐसा सोचने और मान लेने मात्र से ही हम निंदा से दूर भागते हैं। निंदा यदि सकारात्मक हो तो उसे स्वीकार करने का हौंसला रखे और प्रायोजित निंदा को नजर अंदाज करना ही जीवन के एक कला है। चापलूस हमें सिवाय बर्बादी के कुछ भी नहीं दे सकते हैं, जबकि निंदक हमारे व्यवहार/स्वभाव को निर्मल करता है।
Nindak Niyare Rakhiye Ka kya Matlab hai
निंदक नियरे राखिये से आशय है की हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखना चाहिए। आँगन कुटी छवाय का अर्थ Aangan Kuti Chhavay Ka Arth
आँगन कुटी छवाय का अर्थ है की हमें हमारे आंगन में कुटिया के सामने एक वृक्ष की छाया अवश्य ही रखनी चाहिए।आँगन में कुटी बनाकर कैसे करना चाहिए? Angan Me Kuti Banakar Kaise Karna Chahiye
आंगन में कुटिया के समक्ष वृक्ष की छाया अवश्य ही होनी चाहिए।आँगन में कुटी बनाकर कैसे करना चाहिए?
यह कबीर का एक दोहा है।निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय का अर्थ क्या है?
भावार्थ है की हमें निंदक को अपने आस पास ही रखना चाहिये क्योंकि वह हमारे अवगुणों को हमें बताता है।निंदक नियरे राखिये वर्तमान सन्दर्भ में : कबीर के विचार क्या आज मायने नहीं रखते हैं ? रखते हैं। कबीर मूलतः मनोवैज्ञानिक कहते हैं, तार्किक कहते हैं और उसे आस पास के परिवेश में आजमा कर कहते हैं। आज भी साहेब के विचार मायने रखते हैं, वस्तुतः आज के समय में साहेब के विचार अधिक उपयोगी हैं। हम केंद्रित होते जा रहे हैं स्वंय के स्वार्थ के पीछे, बात स्वर्ग और नर्क की नहीं है। जो स्वर्ग वर्तमान में हमें मिला है उस पर हम ध्यान ही नहीं दे रहे हैं, जीवन के उद्देश्य से अनभिज्ञ हैं। इन्ही मानवीय कमियों पर साहेब की पैनी नजर है और उन्होंने यह जान लिया की कैसे हम हमारी एक सीमित दुनिया का निर्माण करते हैं और कैसे उसी में उलझ कर रह जाते हैं। यदि निंदक नियरे है तो हमारे दोष /अवगुण का हमें पता चलता है लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं और खुद की तारीफों में उलझे रहते हैं। यह जरा विचार करने का विषय है।