पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय-हिंदी मीनिंग Pothi Padhi Padhi Jag Mua Pandit Bhaya Na Koy-Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी में
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
या
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अखिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
या
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अखिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
Pothee Padhi Padhi Jag Mua, Pandit Bhaya Na Koy,
Dhaee Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.
Ya
Pothee Padhi Padhi Jag Muva, Pandit Bhaya Na Koi.
Ekai Akhir Peev Ka, Padhai Su Pandit Hoi.
Dhaee Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.
Ya
Pothee Padhi Padhi Jag Muva, Pandit Bhaya Na Koi.
Ekai Akhir Peev Ka, Padhai Su Pandit Hoi.
दोहे के हिंदी शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha Hindi
पंडित : ज्ञानी, निपुण مہارت مند
भया : हुआ ہوا
ढाई आखर : ढाई अक्षर خط
प्रेम : मानवीय सद्भावना پریم
इस दोहे का हिंदी मीनिंग Pothi Padh Padh Jag Mua Hindi Meaning
व्यावहारिक ज्ञान किताबी ज्ञान से बढ़कर होता है। पंडित से यहाँ अभिप्राय "ज्ञाता-निपुण" से लिया गया है, किसी जाती विशेष से नहीं। किताबी ज्ञान का रट्टा मार कर कई "किताबी विद्वान्" अवश्य हो गए और इस संसार से चले गए, लेकिन उन्होंने व्यावहारिक ज्ञान को प्राप्त ही नहीं किया। मानवता का मूल स्तम्भ है 'एक दुसरे के प्रति आदर भाव और प्रेम भाव' .
इनके अभाव में मात्र किताबी ज्ञान का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है। ऐसा नहीं है की किताबी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है, है लेकिन यदि मानवीय गुण का अभाव है तो किताबी ज्ञान कुछ भला नहीं कर सकता है। जिसने भी ढाई अक्षर 'प्रेम' के पढ़ लिए वही 'पंडित' कहलाया है। ऐसे कई उदाहरन देखने को मिलते हैं जहाँ व्यक्ति किताबी ज्ञान में तो श्रेष्ठ होता है लेकिन उसमे चारित्रिक गुणों का अभाव होने के कारण उसका ज्ञान जन हितकारी और लोक कल्याणकारी नहीं बन पाता है और उसे साथ ही उसका ज्ञान चला जाता है।
जिसे वेद का ज्ञान नहीं है, शास्त्र का ज्ञान नहीं है कोई बात नहीं, यदि आप प्रेम को जानते हैं तो आप भी पंडित हैं, यह है कबीर साहेब की अलौकिक वाणी। प्रेम से जीना, प्रेम को निभाना, प्रेम देना नहीं सीखा तो जीवन अधुरा है। जीवन का प्रत्येक कार्य प्रेम के साथ किया जाना ही वास्तविक कला है। इस दोहे का मूल भाव व्यक्ति के चारित्रिक गुणों का व्यावहारिक धरातल पर उकेरना है।
वर्तमान में आज हमारे पास सभी सुख सुविधाएं हैं, लेकिन प्रेम की कमी है। हमें 'माया' के दीगर किसी से प्रेम नहीं है। जीवन की खुशियां आती हैं और चली जाती है, उन्हें महसूस करने की शक्ति नहीं है क्यों की प्रेम नहीं है। जहाँ प्रेम है, वहीँ सम्पन्नता और वैभव है, वैभव और सम्पन्नता से प्रेम पैदा नहीं होता है, यह हमारी समझ का अभाव है। आप जो भी कार्य व्यवहार करे, प्रेम के साथ करें तो सभी समस्याएं समाप्त होती चली जाएँगी।