पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहार हिंदी मीनिंग Pahan Puje Hari Mile To Main Puju Pahar Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
पाहन पूजे हरि मिले , तो मैं पूजूं पहार।
याते चाकी भली जो पीस खाए संसार।।
Paahan Pooje Hari Mile , To Main Poojoon Pahaar.
Yaate Chaakee Bhalee Jo Pees Khae Sansaar
Yaate Chaakee Bhalee Jo Pees Khae Sansaar
शब्दार्थ: पाहन – पत्थर , पूजे-पूजना, स्तुति करना, हरि-भगवान/ईश्वर, पहार – याते-इससे, की अपेक्षा कृत, भली-बेहतर है, पहाड़ , चाकी-अन्न पीसने वाली चक्की।
दोहे का हिंदी मीनिंग : कर्मकांड और मूर्तिपूजा पर कटाक्ष करते हुए साहेब की वाणी है की ईश्वर की स्तुति और पूजा के लिए किसी मूर्ति और स्थान विशेष की कोई आवश्यकता नहीं है। समकालिक समाज में धर्म के ठेकेदारों ने धर्म को भी व्यापर बना दिया था । व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक आडम्बर और कर्मकांडों का बोलबाला था । आम जन इससे सबसे अधिक व्यथित था। सामंतवादी शक्तियां भी धार्मिक ठेकेदारों से मिली हुयी थी और किसी भी अत्याचार को धर्म के नाम से दबा दिया जाता था। साहेब की वाणी है की पत्थर की मूर्ति में ईश्वर नहीं है। यदि पत्थर को पूजने मात्र से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव हो तो पहाड़ को पूजा जाना चाहिए। पत्थर की मूर्ति की तुलना में पत्थर की चाकी 'चक्की' उपयोगी और बेहतर है जिससे आम जन अनाज को पीस कर खाती है। ईश्वर की स्तुति आत्मा से की जानी चाहिए, सांकेतिक रूप से नहीं। अन्य स्थान पर साहेब की वाणी है की भक्ति/ईश्वर की आराधना मन से की जानी चाहिए।
- पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया ना कोय कबीर के दोहे
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माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर।
करका मनका डार दे , मन का मनका फेर।।
मात्र प्रदर्शन के लिए लोग तार्किक भक्ति करते हैं जिससे कोई लाभ प्राप्त नहीं होने वाला है। माला फेरने से ईश्वर की स्तुति संभव नहीं है, हांथों की माला को फेरने से क्या लाभ है? हाथो की माला को लोग फेरते हैं लेकिन मन में कुछ और ही चलता है। हाथ की माला को छोडकर मन की माला को फेरना ही लाभदायी है।
कस्तूरी कुंडली मृग बसे , मृग फिरे वन माहि।
ऐसे घट घट राम है , दुनिया जानत नाही।।
ऐसे ही इस दोहे में वाणी है की ईश्वर मृग की नाभि में कस्तूरी के समान है और मृग उसे ढूंढते हुए वन वन में भटकता रहता है । ऐसे ही ईश्वर घट (आत्मा) में ही सदा विराजमान है लेकिन उसे बाहर ही खोजा जाता है और दुनिया के लोग इस बात से अनभिज्ञ बने रहते हैं।
गगन मडंलसे उतरे सतगुरु सत्य कबीर॥
जलज मांही पौढन किये सब पीरन के पीर॥
कबीर साहेब के नाम का अर्थ ही महान होता है और भारत की पावन वसुंधरा पर समय -समय पर कारक महापुरषो का प्रादुभार्र्व हुआ जिनमे से एक अलौकिक महापुरश श्री सतगुरु कबीर साहिब जी का प्राकटय भी अद्वितीय और महाँन ही है।
पानी से पैदा नही , शवासा नही शारीर
अन्न अहार करता नही ,ताका नाम कबीर
कबीर साहेब का दिव्य प्राकटय विक्रम संवत १४५५ ज्येष्ट मास की पूर्णिमा दिन सोमवार को काशी (बनारस) के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर प्रगट हुआ और नीरू नीमा नाम के जुलाहे दम्पति को प्राप्त हुए, हालांकि इसमें सभी की एक राय नहीं है। काशी नगरी प्राचीन काल दे ही शिक्षा ,कला , भक्ति व् ज्ञान का केंद्र तीर्थ है , काशी को बनारस तथा वाराणसी के नाम से भी पुकारा जाता है, यहीं पर प्रकट हुए कबीर साहेब।
कबीर साहेब का लालन -पालन नीरू नीमा ने बड़े ही प्रेम से किया और कबीर बाल्य अवस्थासे ही दिव्य चमत्कार दिखाने लगे ,एक बार काजियो ने नीरू जुलाहे को बुलाया और उसे बहका दिया कि या बालक अशुभ है। हमने कुरान देखा है , यह बालक तेरा नाश करेगा तथा खुदा का गुनहगार है, इससे खुदा तेरे से नाखुश है , तू अपना भला चाहो तो इस बालक को मार दे, ऐसा ही उल्टा सीधा कबीर साहेब के बारे में कहा गया।