Maanasarovar Subhar Jal, Hansa Keli Karaahin. Mukataaphal Mukata Chugain, Ab Udi Anat Na Jaahin.
मानसरोवर सुभर जल हंसा केलि कराहिं शब्दार्थ
मानसरोवर-हिमालय के पर्वतीय इलाकों में एक सरोवर जो बहुत ही पवित्र माना जाता है । सुभर-लबालब भरा हुआ, परिपूर्ण । जल-मुक्ति रूपी अमृत जिसके सेवन से जीव भव सागर से पार हो जाता है, हंसा-साधक, जीव जो मुक्ति की चाह रखता है । केलि-खेलना, साधक जो ईश्वर भक्ति में लीन होकर मस्त हो जाता है । मुकताफल-मोती, यहाँ पर मोती से अभिप्राय ईश्वर रूपी अमूल्य वस्तु के ज्ञान से है। हंसा-जीव,
मानसरोवर सुभर जल हंसा केलि कराहिं हिंदी मीनिंग
भावार्थ : जो हंस (जीव) मानसरोवर (ईश्वर सुमिरण) आ गए हैं वे यहाँ पर मस्त हो गए हैं और अन्यत्र किसी स्थान पर जाने की उनकी चाह समाप्त हो गयी है। यहाँ पर उनको परम सुख की प्राप्ति हो गयी है। जीव भव सागर से मुक्त होने के लिए स्थान स्थान पर भटकता रहता है, मंदिर मस्जिद तीर्थ आदि स्थानों पर वह ईश्वर प्राप्ति के जतन के लिए विचरण करता है, लेकिन परम सुख के अभाव में वह भटकता ही रहता है। लेकिन जब हंसा को मानसरोवर जैसा स्थान मिल जाता है तो उसे सुख की प्राप्ति होती है और उसका भटकाव समाप्त हो जाता है । सांसारिक सुखो की इच्छा भी समाप्त हो जाती है ।
सांसारिक सुखो की लालसा भी तभी तक रहती है जब तक जीव मानसरोवर के अमृत को चख नहीं लेता है । निर्मल व्यक्ति हंस के समान है जो अब कहीं और जाने का इच्छुक नहीं है। हृदय में ईश्वर की अनुभूति मानसरोवर के जल के समान है। भक्ति का रस जो मानसरोवर से प्राप्त होता है वह मोती के समान अमूल्य है । जब भक्ति रस का स्वाद प्राप्त हो जाता है तो वह अधिक रसपान के लिए प्रेरित होता है और संसार के अन्य व्यसनों को छोड़ देता है। इस दोहे में महत्वपूर्ण है की जब व्यक्ति का विवेक जाग्रत हो जाता है तो उसे करनीय और अकरणीय के बीच का भेद पता चल जाता है और वह माया जनित विकारों से दूर होकर मुक्ताफल की और अग्रसर हो जाता है । संसार की तारीफ़ और झूठे दिखावे, माया की छद्मआवरण के कारण जीव अपने मार्ग से विमुख होता है।