ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई कथनी के सूरे घणे, थोथी बांधे हथियार (तीर), कथनी के सूरे घणे, थोथी बांधे हथियार (तीर), रण में तो कोई बचे सूरमा, जिथे बाजे तलवार, भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई सूरा रण में जायके भई किसकी देखे बाट, ज्यो ज्यो पग आगे धरे, आप कठे तकरार भूले राही समझिये भाई
ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई हीरा बीच बाजार में परखे साहूकार जब तक ना मिले पारखी सभी अतर गवार, ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई
ये तिरने का घाट भूले राही समझिये भाई
Kabir Bhajan Lyrics in Hindi
Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Kathani Ke Sure Ghane, Thothi Baandhe Hathiyaar (Tir), Kathani Ke Sure Ghane, Thothi Baandhe Hathiyaar (Tir), Ran Mein To Koi Bache Surama, Jithe Baaje Talavaar, Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai
Sura Ran Mein Jaayake Bhi Kisaki Dekhe Baat, Jyo Jyo Pag Aage Dhare, Aap Kathe Takaraar Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi
Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai
Hira Bich Baajaar Mein Parakhe Saahukaar Jab Tak Na Mile Paarakhi Sabhi Atar Gavaar, Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai Ye Tirane Ka Ghaat Bhule Raahi Samajhiye Bhai
"ये तिरने का घाट भूले राही" बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान। करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।
वन से भाग कर बहेलिये के द्वारा खोये हुए गड्ढे में गिरा हुआ हाथी अपनी व्यथा किस से कहे ? सारांश यह कि धर्म की जिज्ञासा सें प्रेरित हो कर भगवान गोसाई अपना घर छोड़ कर बाहर तो निकल आये और हरिव्यासी सम्प्रदाय के गड्ढे में गिर कर अकेले निर्वासित हो कर असंबाद्य्य स्थिति में पड़ चुके हैं। मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए उन्होंने एक साखी हाजिर कर दी- पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौंपहार। था ते तो चाकी भली, जासे पीसी खाय संसार।। माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥ 18 ॥ रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ 19 ॥ नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग । और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥ 20 ॥ जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल । तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल ॥ 21 ॥ दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार । तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥ 22 ॥ आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर । एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥ 23 ॥ काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ 24 ॥ माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख । माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख ॥ 25 ॥