बलिहारी गुर आपणै द्यौं हाड़ी के बार मीनिंग
बलिहारी गुर आपणै, द्यौं हाड़ी के बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार ।।
Balihaaree Gur Aapanai, Dyaun Haadee Ke Baar.
Jini Maanish Tain Devata, Karat Na Laagee Baa.
Or
Balihari Guru Aapne Dyo Hadi Ke Baar,
Jini Maanish Te Devta, Karat Na Lagi Baar.
बलिहारी गुर आपणै द्यौं हाड़ी के बार शब्दार्थ
बलिहारी-समर्पित होना, आपणे -आप पर, द्यौं हाड़ी = दिन में, बार =देर लगना/समय का लगना। जिनि-जिसने, मानिश - मनुष्य, ते-से, देवता-गुणवान, करत -करते हुए, ना लागि बार-देर नहीं लगी।
बलिहारी गुर आपणै दोहे का अनुवाद/व्याख्या
गुरु की महिमा है की वह सामान्य जन को मनुष्य से देवता तुल्य बना देता है और ऐसा करने में उसे तनिक भी देर नहीं लगती है। ऐसे गुरु को मैं दिन में कितनी बार बलिहारी जाऊं/ नमन करूँ (द्यौं हाड़ी के बार), भाव है की ऐसे गुरु के चरणों में जितनी भी बार नमन करें कम ही होता है। वस्तुतः देवता से क्या आशय है ? देवता से भाव है की जो सामन्य जन जिसके सभी विकार दूर हो जाएँ, वही देवता है।
गुरु भी अपने शिष्य के विकारों को दूर कर देता है और उसे शुद्ध करके देव रूप में ले जाता है, ऐसे गुरु को नमन है। यहाँ एक बात वर्तमान सन्दर्भ में उल्लेखनीय है किस कबीर साहेब ने गुरु की महिमा का जितना वर्णन किया है उससे भी अधिक वर्णन गुरु की पहचान/गुरु कैसा होना चाहिए इस पर बहुत जोर दिया है। वर्तमान में आप जो देखते हैं उन लोगों ने कपडे तो रंगवा लिए हैं लेकिन मन को नहीं रंगवाया है। 'जोगी मन नी रंगाया, रंगाया कापड़ा', इसलिए जो व्यक्ति माया के जाल में फंसा है, चाहे वो इसके कितने भी तार्किक कारन बताएं, गुरु नहीं है बल्कि कोई बहरूपिया है, जिसे जानने और समझने की आवश्यकता है।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं