जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाँहि कबीर के दोहे

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाँहि मीनिंग Jab Main Tha Tab Hari Nahi

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥

Jab Main Tha Tab Hari Nahi, Aub Hai Hai Main Naahi,
Sab Andhiyaara Miti Gaya, Jab Dipak Dekhya Mahi.
 
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाँहि हिंदी मीनिंग Jab Main Tha Tab Hari Nahi Hindi Meaning Kabir Ke Dohe
 
कबीर दोहा हिंदी शब्दार्थ Kabir Doha Hindi Word Meaning
  • जब मैं था - जब तक अहम् था, अहंकार था।
  • हरि-भगवान, इश्वर, स्वामी, मालिक.
  • (हरि जू इते दिन कहाँ लगाए । तबाहिँ अवधि मैं कहत न समुझी गनत अचानक आए )
  • तब हरि नहीं - तब तक ईश्वर का परिचय नहीं हुआ।
  • अब हरि है मैं नाँहि - अब ईश्वर है तब अहम् नहीं है।
  • सब अँधियारा - अज्ञान का सम्पूर्ण अँधियारा।
  • मिटि गया - समाप्त हो गया है।
  • जब दीपक -जब सत्य के प्रकाश को देखा।
  • देख्या -देखा।
  • माँहि - हृदय के अंदर।
कबीर भजन मीनिंग हिंदी Kabir Bhajan Meaning in Hindi/Hindi Arth
 
साहेब ने बड़ी ही सुंदरता के साथ विश्लेषण किया है की समस्त संताप और दुखों का कारण 'मैं' अहम है। स्वंय के होने का भाव ही भक्ति में सबसे बड़ी बाधा है जिसे समाप्त करने के लिए विशेष जतन की आवश्यकता नहीं होती है। शाब्दिक अर्थ है की जब तक व्यक्ति में अहम रहता है उसे भक्ति प्राप्त नहीं हो पाती है। जब वह स्वंय के अंदर सत्य के दीपक के प्रकाश को देखता है तो स्वतः ही अज्ञान का अँधेरा दूर हो जाता है और हृदय में ही ईश्वर के दर्शन लाभ हो जाते हैं। यही सहजता है। आत्म ज्ञान का दीपक मायाजनित समस्त अन्धकार और भटकाव को समाप्त कर देता है। हृदय में ही पूर्ण परमात्मा का वास होता है, आत्मा ही ईश्वर का अंश होता है। लेकिन फिर भी माया के भरम में फँसकर व्यक्ति भटकता है क्योंकि उसे ज्ञान नहीं है। ज्ञान के अभाव में वह दर दर भटकने को मजबूर हो जाता है।

ज्ञान क्या है ? जब यह आभास होने लगे की बाहर सब मिथ्या और आडंबर है, जो है वह इसी देह में है, यही ज्ञान है। अँधियारा और दीपक में रूपकातिश्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है।
 
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हरि शब्द के अर्थ :  
 
हरि शब्द का अर्थ सामान्य रूप में ईश्वर से लिया जाता है। हिन्दू धर्म में हरि का अर्थ भगवान् विष्णु भी होता है।
हरी का एक अर्थ पिंगल,भूरा या बादामी होता है।
हरी का एक अर्थ पीला होता है।
हरि का एक अर्थ वहन करनेवाला, ढोने या ले जानेवाला होता है।
हरि का एक अर्थ भगवान विष्णु होता है। 

साहेब ने बताया है कि सभी संताप और दुखों का मूल कारण 'मैं' अहम है। यह आत्मा के अहम् के कारण उत्पन्न होता है। इस अहम् की वजह से भक्ति में प्रगति करना मुश्किल हो जाता है। इसे दूर करने के लिए विशेष यत्न की आवश्यकता नहीं होती है। जब व्यक्ति अपने आत्मा में जाकर सत्य की पहचान करता है, तब उसका अज्ञान दूर हो जाता है और उसके हृदय में ईश्वर का आवास होता है। आत्मा ज्ञान का प्रकाश अंधकार और भटकाव को दूर करता है। हृदय में ही परमात्मा का निवास होता है, आत्मा ही ईश्वर का अंश होता है। लेकिन माया के विक्षेप में फंसकर व्यक्ति भटकता रहता है, क्योंकि उसको आत्मा का ज्ञान नहीं होता। इस ज्ञान की कमी के कारण वह माया जनित जाल और संदेहों में उलझा रहता है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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