चहै आकाश पताल जा फोडि जाहु मीनिंग
चहै आकाश पताल जा फोडि जाहु ब्रह्मांड
चहै आकाश पताल जा, फोडि जाहु ब्रह्मांड।
कहैं कबीर मिटिहै नहीं, देह धरे का दण्ड।।
कहैं कबीर मिटिहै नहीं, देह धरे का दण्ड।।
Chahai Aakaash Pataal Ja, Phodi Jaahu Brahmaand.
Kahain Kabeer Mitihai Nahin, Deh Dhare Ka Dand.
Kahain Kabeer Mitihai Nahin, Deh Dhare Ka Dand.
कर्मफल से कोई नहीं बच सकता है, चाहे वह आकाश पाताल में चला जाए चाहे ब्रह्माण्ड को फोड़कर निकल जाए, देह धरे का दंड तो उसे भुगतना ही पड़ता है। भाव है की व्यक्ति को उसके कर्मों का फल भुगतना पड़ता है।
जैसी करनी आपनी, तैसा ही फल लेय।
बुरे करम कमाई के,साईं दोष न देय।।
बुरे करम कमाई के,साईं दोष न देय।।
जैसे कर्म होंगे वैसे ही फल व्यक्ति को प्राप्त करने होंगे। बुरे कर्म करके उसके फल के लिए भगवान को दोष नहीं देना चाहिए। कर्मों की कमाई चाहे वह अच्छी हो या फिर बुरी व्यक्ति को ही भोगनी पड़ती है।
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