कबीर पगरा दूरि आय पहुंची सांझ मीनिंग
कबीर पगरा दूरि , आय पहुंची सांझ ।
जन जन को मन राखता, वेश्या रहि गयी बांझ।।
Kabeer Pagara Doori , Aay Pahunchee Saanjh .
Jan Jan Ko Man Raakhata, Veshya Rahi Gayee Baanjh.
कबीर पगरा दूरि आय पहुंची सांझ हिंदी मीनिंग
दोहे का हिंदी मीनिंग: यदि हम विश्लेषण करें तो हमारा अधिकतर समय लोगों को क्या उचित लगता है, इसी बात का ध्यान रखने में ही बीत जाता है। सामाजिक और नैतिक नियमों का पालन करना अलग विषय है और लोगों को मात्र खुश करने के लिए किया जाने वाला व्यवहार अलग। जब आत्मिक रूप से जीव सुदृढ़ नहीं होता है तो वह दूसरों की चापलूसी करने और उनके अनुसार अपना व्यवहार ढ़ालने की कोशिश करता है, इसी जुगत में वह अपना स्वतंत्र मूल्यांकन नहीं कर पाता है। जैसे वेश्या लोगों को खुश करने में लगी रहती है और स्वंय बाँझ रह जाती है, उसे समय ही नहीं मिलता/वह स्वंय के विषय में सोच ही नहीं पाती है की उसे करना क्या है।
साहेब की वाणी है की मार्ग तो लम्बा है (खूब वक़्त मिला ) अब सांझ (जीवन का अंत ) आ पहुंची है और देखो तुमने सारा वक़्त यूँ ही लोगों के अनुसार जीवन जीने में बिता दिया। हमें स्वंय का मूल्यांकन करना है और हमारे दिए गए समय को हरी सुमिरन में बिताना है।
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