ओम् कही के नमन करू
ओम् कही के नमन करूँ,
कर जोड़ी मैं बिनती करूँ।
पूर्ण जो हूँ जैसा हूँ,
मैं केवल मात्र तुम्हारा हूँ।।
वाणी प्राण नेत्र श्रोत्र,
राही सिमरन् तोरा करूँ।
पुष्टित करो मम अंग अंग,
मैं तोरे चरण में रह सकूँ।।
उपनिषद् प्रतिपादित ब्रह्म को,
अस्वीकार मैं नहीं करूँ।
ब्रह्म भी मुझ को न छोड़ें,
अटूट संबंध में अब रहूँ।।
उपनिषद् प्रतिपादित तत्व,
की प्रतिमा मैं बन जाऊँ।
हर इन्द्रिय समर्थन राह,
उपनिषद् लेखनी बनूँ।।
जिह्वा से तोरी बात करूँ,
नयनों से तुझ को देखा करूँ।
कदम तुम्हारी ओर बढ़ें,
श्रवण तुम्हारा नित्य करूँ।।
नयनों से अब प्रेम बहे,
तुम सम सब को अपना लूँ।
पूर्ण जीव तुम्हारे हैं,
जान करी मैं नमन करूँ।।
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