पतंजलि श्वासारि प्रवाही फायदे Patanjali Swasari Pravahi Benefits Usages Price

पतंजलि श्वासारि प्रवाही फायदे Patanjali Swasari Pravahi Benefits Usages Price कफ्फ और खांसी की आयुर्वेदिक दवा

पतंजलि श्वासारि प्रवाही  क्या है Patanjali Swasari Pravahi Kya Hai Hindi What is Patanjali Swasari Pravahi Hindi

यह दवा पतंजलि आयुर्वेदा की एक प्रचलित दवा है जो लिक्विड रूप में है और स्वशन प्रणाली, खांसी, कफ्फ, और अस्थमा आदि रोगों में बहुत ही लाभदायी होती है। वैद्य की सलाह के उपरान्त आप इस दवा का उपयोग कर सकते हैं। इस लेख में आप जो सुचना प्राप्त करेंगे वह इस दवा के घटक के बारे में है और इससे होने वाले लाभ के बारे में है। विनम्र निवेदन है की यह लेख किसी रोग के उपचार का दावा नहीं करता है और ना ही पतंजलि के किसी दवा के प्रचार हेतु लिखा गया है। आप इस ओषधि के सेवन से पूर्व वैद्य/डॉक्टर के सलाह अवश्य लेवे क्योंकि उम्र/शरीर की तासीर और परिस्थितियों के अनुरूप उपचार भिन्न होता है।
 
पतंजलि श्वासारि प्रवाही फायदे Patanjali Swasari Pravahi Benefits Usages Price
 
 
पतंजलि श्वासारि प्रवाही के सबंध में पतंजलि का कथन -
It is the best tonic for all types of respiratory problems. even the children could take it. Its use treats cold, serious cough, asthma, cough, problem in ribs and other such diseases. Dosage and Usage : 5 to 10 ml in a day, according to the need. Draveshu chirakalasyam dravyam yatsandhitam bhavet, Asvarishta Bedaistu prochyate bheshajochitam. The preparation of asav, arishta and liquid decoction in Divya Pharmacy and Patanjali Ayurveda is done under the strict vigilance of experienced vaidhyas attentively, with complete adherence of Ayurvedic Science. The purity, quantity and quality of the herbs utilized are the top most priority. Hence, the asavas / aristas of Divya Pharmacy and Patanjali Ayurveda are qualitative and effective.

पतंजलि श्वासारि प्रवाही के घटक (Composition of Patanjali Shawasri Pravahi)  Patanjali Swasari Pravahi Ke Ghatak Hindi Me

पतंजलि की इस दवा में निम्न घटकों का उपयोग किया जाता है।
  • काली मिर्च Kali Marich (Piper longum) 
  • मुलेठी Mulethi (Glycyrrhiza glabra)
  • छोटी कटेली Kateli badi (Solanum indicum)
  • काला वासा Kala vasa (Justicia gendarussa)
  • सफ़ेद वासा Safed vasa (Adhatoda vasica)
  • बनफ्शा Banfsa (Viola osorata)
  • छोटी पिप्पल Chhoti pipal (Piper longum)
  • तुलसी देसी Tulsi Desi (Ocimum sanctum)
  • दालचीनी Dalchini (Cinnamomum zeylanicum)
  • लवंग Lavang (Syzgium aromaticum)
  • सोंठ Sonth (Zingiber officinale)
  • तेजपत्र Tejpatra (Cinnamomum tamala)
  • भांगरा (भृंगराज ) Bhangra (Eclipta alba)
  • लसोड़ा Lishoda (Cordia dichotoma)
  • अमलतास Amaltas (Cassia fistula)
  • सोमलता Ephedragerardiana

पतंजलि श्वासारि प्रवाही के फायदे (Benefits of Shvashari Pravahi in Hindi ) Patanjali Swasari Pravahi Ke Fayade Hindi

इस दवा का मुख्य लाभ स्वसन विकार जैसे कफ, खांसी और अस्थमा से सबंधित है। इसके ज्ञात लाभ निम्न प्रकार से हैं। 
  • यह दवा कफ्फ को ढीला करके शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है। 
  • खांसी के कारण गले में आयी खरांस और स्वांस की नली में आयी सूजन को कम करने में लाभदायी। 
  • निमोनिया रोग में भी लाभदायी। 
  • फेफड़ों के संक्रमण/फेफड़ों के दर्द में लाभदायी।
  • इस दवा के सेवन से फेफड़ों में कफ्फ का निर्माण कम होता है। 
  • फेफड़ों में कफ्फ को जमा होने से रोकता है और जमा कफ्फ को दूर करने में लाभदायी होती है। 
  • सामान्य सर्दी झुकाम, खांसी, कफ आदि में लाभदायी। 
  • स्वांस नली में आयी रुकावट को दूर करके स्वांस लेने की प्रक्रिया को सुधरने में लाभदायी। 
  • अस्थमा रोग में भी लाभदायी। 
  • शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करने में सहयोगी। 
  • शीत रोगों में अत्यंत ही लाभकारी। 
  • सूखे कफ्फ में भी अत्यंत ही प्रभावी दवा।

पतंजलि श्वासारि प्रवाही का कर्म Gun Karma of Patanjali Swasari Pravahi

  • कफहर- कफ दूर करना
  • छेदन:-जमे हुए कफ को दूर करना
  • दीपन-भूख बढ़ाना
  • पित्तकर-पित्त बढ़ाना
  • रुचिकारक-स्वाद बढ़ाना
  • वातहर-वात दोष को दूर करना
  • श्लेष्महर-कफ को दूर करना
पतंजलि श्वासारि प्रवाही का सेवन कैसे करे : इस हेतु आप वैद्य की सलाह लेवे और सलाह के उपरान्त बतायी गयी मात्रा में में इसका सेवन करें। 
पतंजलि श्वासारि प्रवाही को कहाँ से खरीदें : इसे आप पतंजलि ऑनलाइन स्टोर्स या फिर ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं। इसके लिए आप पतंजलि की अधिकृत वेबसाइट पर विजिट करें जिसका लिंक निचे दिया गया हैं।
https://www.patanjaliayurved.net/product/ayurvedic-medicine/syrup/divya-swasari-pravahi/185

पतंजलि श्वासारि प्रवाही के घटक का परिचय (Ingredients of Divya Swasari Pravahi) इस दवा में जिन घटकों का उपयोग किया जाता है उनका संक्षिप्त रूप से परिचय निम्न प्रकार से है :-


काली मिर्च (Piper longum): कालीमिर्च का वानस्पतिक नाम पाइपर निग्राम (Piper nigrum) है। काली मिर्च के कई औषधीय गुण हैं। काली मिर्च मैंगनीज, लोहा, जस्‍ता, कैल्शियम, पोटेशियम, विटामिन ए, विटामिन के, विटामिन सी, फाइबर और कई अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं । इसका प्रमुख गुण जो  गैस हर चूर्ण में इस्तेमाल किया जाता है वह है की काली मिर्च गैस और एसिडिटी को समाप्त करती है और पाचन तंत्र सुधरता है। कालीमिर्च के सेवन से हमारे शरीर में हाइड्रोक्‍लोरिक एसिड का स्राव बढ़ जाता है और पाचन में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त ये पेशाब के साथ विषाक्त प्रदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में सहयोगी होती है। कालीमिर्च में विटामिन सी, विटामिन ए, फ्लेवोनॉयड्स, कारोटेन्स और अन्य एंटी -ऑक्सीडेंट होता है, जिससे महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है।

मुलेठी (Glycyrrhiza Glabra)मुलेठी क्वाथ के विषय में जानने से पहले जाहिर सी बात है की हमें मुलेठी को जान लेना चाहिए। औशधिय गुणों से भरपूर मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा होता है जिसका वानस्पतिक नाम Glycyrrhiza glabra Linn ग्‍लीसीर्रहीजा ग्लाब्र, और इसका कुल - Fabaceae होता है जिसे प्राचीन समय से ही उपयोग में लिया जाता रहा है। इसको कई नामो से जाना जाता है यथा यष्टीमधु, यष्टीमधुक, मधुयष्टि, जलयष्टि, क्लीतिका, मधुक, स्थल्यष्टी आदि। पंजाब के इलाकों में इसे मीठी जड़ के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा भारत के अलावा अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, अफगानिस्तान, ईराक, ग्रीक, चीन, मिस्र दक्षिणी रूस में अधिकता से पाया जाता है। पहले यह खाड़ी देशों से आयात किया जाता था लेकिन अब इसकी खेती भारत में भी की जाने लगी है।
इसको पहचाने के लिए बताये तो इसके गुलाबी और जामुनी रंग के फूल होते हैं और इसके पत्ते एक दुसरे के पास (संयुक्त) और अंडाकार होते हैं। मुलेठी या मुलहटी पहाड़ी क्षेत्रों की माध्यम ऊँचाई के क्षेत्रों में अधिकता से पायी जाती है। इसका पौधा लगभग 6 फूट तक लम्बाई ले सकता है। इस पौधे की जो जड़े होती/ भूमिगत तना ही ओषधिय गुणों से भरपूर होता हैं। मुलेठी से हमें मुलेठी कैल्शियम, ग्लिसराइजिक एसिड, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, प्रोटीन और वसा आदि प्राप्त होते हैं। मुख्यतः मुलेठी जी जड़ों को ही उपयोग में लिया जाता है। इसकी मांग को देखते हुए पंजाब के कई इलाकों में इसकी खेती की जाने लगी है।
  • गले की खरांस, सर्दी जुकाम और खांसी के लिए इसका उपयोग किया जाता है। 
  • मुलेठी गले, दाँतों और मसूड़ों के लिए लाभदायक होती है। 
  • दमा रोगियों के लिए भी मुलेठी अत्यंत लाभदायी होती है। 
  • वात और पित्त रोगों के लिए मुलेठी सर्वोत्तम मानी जाती है। 
  • खून साफ़ करती है और त्वचा के संक्रमण को दूर करती है। 
  • मुलेठी चूर्ण को दूध और शहद में मिलाकर लेने से कमोत्त्जना की बढ़ोत्तरी होती है। 
  • मुलेठी की एक डंडी को मुंह में रखकर देर तक चूसते रहे इससे गले की खरांस और खांसी में लाभ मिलता है। 
  • स्वांस से सबंधित रोगों में भी मुलेठी क्वाथ से लाभ मिलता है। 
  • हल्दी के साथ मुलेठी चूर्ण को लेने से पेट के अल्सर में सुधार होता है। 
  • पेट दर्द के लिए भी आप मुलेठी चूर्ण की फाकी ले सकते हैं जिससे पेट दर्द और एंठन में लाभ मिलता है। 
  • स्वांस नली की सुजन के लिए भी यह श्रेष्ठ है। 
  • एंटी बेक्टेरिअल होने के कारन यह पेट के कर्मी को समाप्त करती है और त्वचा के संक्रमण के लिए भी लाभदायी होती है। 
  • खांसी या सुखी खांसी के लिए आप मुलेठी चूर्ण को शहद में मिलाकर दिन में दो बार चाटे तो लाभ मिलता है इसके साथ ही आप मुलेठी का एक टुकड़ा मुंह में भी रखे तो जल्दी आराम मिलता है। 
  • यदि मुंह में जलन हो / इन्फेक्शन हो / छाले हो तो आप मुलेठी को सुपारी जितने आकार के टुकड़ों में काट लें और इनपर शहद लगाकर मुंह में रखे और इसे चूसे इससे लाभ मिलता है। 
  • मुलेठी चूर्ण को नियमित रूप से दूध में लेने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। 
  • पीलिया, अल्सर, ब्रोंकाइटिस आदि विकारों में भी मुलेठी लाभदायी होती है। 
  • अन्य दवाओं के योग से ये स्त्रियों के रोगों के लिए भी उत्तम होती है। इसके सेवन से सौन्दय भी बढ़ता है। 
  • अपच, अफरा, पेचिश, हाइपर एसिडिटी  आदि विकारों में भी मुलेठी के सेवन से लाभ मिलता है। 
  • अल्सर के घावों को शीघ्र भरने वाले विभिन्न घटक ग्लाइकेसइड्स, लिक्विरीस्ट्रोसाइड्स, आइसोलिक्विरीस्ट्रोसाइड आदि तत्व भी मुलेठी में पाये जाते हैं।
  • मुलेठी  वमननाशक व पिपासानाशक होती है। 
  • मुलेठी अमाशय की अम्लता में कमी व क्षतिग्रस्त व्रणों में सुधार लाता है।
  • अम्लोतेजक पदार्थ खाने पर होने वाली पेट की जलन, दर्द आदि को चमत्कारिक रूप से ठीक करता है
छोटी कटेली : छोटी कटेली एक कांटेदार पौधा होता है जो की जमीन पर पसारता है। इसके पत्ते हरे होते हैं और पत्तों के पास लम्बे लम्बे कांटे होते हैं। इसके पुष्प नीले रंग के होते हैं। आयुर्वेद में इस कांटेदार पौधे के अनेकों गुण बताये  गए हैं। कंटेरी के दो प्रकार होते हैं, एक नीले पुष्प वाली और दूसरी सफ़ेद पुष्पवाली। इसकी प्रकृति गर्म होती है और शरीर में पसीना पैदा करती है। संस्कृत में इसे कटेरी, कंटकारी, छोटी कटाई, भटकटैया आदि नामों से भी जाना जाता है। यह कफ्फ को दूर करने, खांसी और शीत रोगों में बहुत ही लाभदायी होती है। 

काला वासा (Justicia gendarussa) Gendarussa vulgaris Nees (जेन्डारुसा वल्गैरिस) : वासा एक आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर हर्ब (पौधा ) है जो मूल रूप से पित्त और कफ्फ को शांत करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। सुश्रुत-संहिता में हमें इस पौधे के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है। इसे संस्कृत में वासक, वासिका, वासा, सिंहास्य, भिषङ्माता और हिंदी में अडूसा, अडुस्, अरुस, बाकस आदि नामों से जाना जाता है। वासा की प्रजातिओं (स्वेत वासा, रक्त वासा क्षुद्र वासा और श्याम/काला वासा ) में काला (श्याम) वासा का उपयोग सर्दी खांसी, झुकाम और कफ को दूर करने के लिए किया जाता है। यह राजस्थान में प्रायः मरू भूमि में खाली खेतों में स्वतः ही उगता है। काला वासा का पौधा गहरा बैंगनी रंग लिए होता है जबकि स्वेत वासा का पुष्प सफेद होता है और यह कम बैंगनी होता है। काला वासा रस में कड़वा, तीखा तथा गर्म, वामक व रेचक होता है तथा बुखार, बलगम बीमारी में लाभकारी होता है। दमा, स्वांस जनित  रोग,अस्थमा, खांसी और कफ्फ में बहुत ही प्रभावी हर्ब होती है। स्वांस जनित विकारों के अलावा वासा का प्रयोग मुखपाक, मुंह के संक्रमण, दमा, मूत्र सबंधी विकारों में भी किया जाता है।


सफ़ेद वासा Safed vasa (Adhatoda vasica) : यह भी वासा की ही प्रजाति का एक पौधा होता है। इसे भी सामान्य रूप से अल्डुसा के नाम से जाना जाता है। गुण धर्म में इसका उपयोग भी कफ्फ को पतला करने, खांसी को दूर करने, गले की खरांस को कम करना आदि कार्यों में किया जाता रहा है।
बनफ्शा Banfsa (Viola osorata) : इस हर्ब का उपयोग भी मूल रूप से स्वसन जनित विकार, कफ, खांसी और सर्दी जुकाम के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के आलावा यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता रहा है। बनफ्शा (Viola odorata) कफ के प्रकोप को दूर करने वाली एक असरदार हर्ब मानी जाती है। हिमालय में ऊँचे स्थानों पर इसकी पैदावार की जाती है। उत्तराखंड में भी वर्तमान में इसे इसके चिकित्सीय गुणों के कारण उगाया जाने लगा है। इसे  संस्कृत- नीलपुष्प, हिन्दी- बनफ्शा, मराठी- बनफ्शाहा, गुजराती- वनपशा, बंगला- बनोशा, तमिल- बयिलेट्टु, फारसी- बनफ्शा, इंग्लिश - वाइल्ड वायलेट, लैटिन - वायोला ओडोरेटा आदि नामों से जाना जाता है। बनफ्सा का गुण धर्म लघु, स्निग्ध, कटु, तिक्त, उष्ण और विपाक में कटु है। स्निग्ध, मधुर और शीतल होने से यह वातपित्त शामक और शोथहर है। यह जन्तुनाशक, पीड़ा शामक और शोथ दूर करने वाला है। बनफ्शा शीत रोगों में बहुत ही लाभदायी होता है। यह कफनाशक, पित्तनाशक, अनुलोमन, रक्तविकार नाशक और रक्त शोधक भी होता है। यह शीत ज्वर, कास तथा श्वास में लाभप्रद है।

छोटी पिप्पल Chhoti pipal (Piper longum) : छोटी पिप्पल अक्सर खड़े मासालों में हम उपयोग में लाते हैं, जिसके कई चिकित्सीय लाभ भी होते हैं। यह भी एक आयुर्वेदिक हर्ब है जिसकी लता नुमा पौधा धरती पर फैलता है और सुगन्धित भी होता है। यह दो प्रकार का होता है छोटी पिप्पल और बड़ी पिप्पल। छोटी पिप्पल का उपयोग सर्दी खांसी, जुकाम और कफ को दूर करने के लिए किया जाता है। गले की खरांस, गले का बैठना आदि रोगों में भी पिप्पल लाभदायी होती है। अक्सर ही घर पर इसके चूर्ण को सर्दिओं में शहद के साथ दिया जाता है जिससे शीत रोगों में लाभ मिलता है।
तुलसी देसी Tulsi Desi (Ocimum sanctum) : देसी तुलसी प्रायः हमारे घरों में मिल ही जाती है जिसके पत्तों को सर्दियों में चाय में डालना लाभकारी माना जाता है।  तुलसी को वैसे भी पवित्र माना जाता है और इसकी पूजा का भी प्रावधान है। इसे तुलसी के अलावा सुरसा, देवदुन्दुभि, अपेतराक्षसी, सुलभा, बहुमञ्जरी, गौरी आदि नामों से भी जाना जाता है। इसके पत्तों और बीजों के कई आयुर्वेदिक लाभ होते हैं जो वात और कफ को शांत करने में सहयोगी होते हैं। गले में खरांस को कम करने के लिए भी तुलसी का श्रेष्ठ लाभ होता है। तुलसी का वानस्पतिक नाम Ocimum sanctum Linn. (ओसीमम् सेंक्टम्) और कुल का नाम Lamiaceae है। गले की खरांस, सुखी खांसी, गले का बैठना, छाती में कफ्फ का जमा होना, आदि विकारों में इसका उपयोग लाभकारी होता है और साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करती है।  


दालचीनी Dalchini (Cinnamomum zeylanicum) : दालचीनी (Cinnamomum verum, या C. zeylanicum) एक छोटा सदाबहार पेड़ है, जो कि 10–15 मी (32.8–49.2 फीट) ऊंचा होता है, यह लौरेसिई (Lauraceae) परिवार का है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसमें एक अलग ही सुगन्ध होती है, जो कि इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखती है। दाल चीनी को अक्सर हम खड़े मसालों में उपयोग में लाते हैं। दालचीनी के कई औषधीय गुण भी होते हैं। दाल चीनी एक वृक्ष की छाल होती है जो तीखी महक छोड़ती है। दाल चीनी को अंग्रेजी में True Cinnamonसीलोन सिनामोन (Ceylon Cinnamon) के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो दाल चीनी के कई लाभ होते हैं लेकिन खांसी और कफ्फ को शांत करने, सर्दी जुकाम के लिए यह उत्तम मानी जाती है।

लवंग (लौंग ) Lavang (Syzgium aromaticum) :लवंग या लौंग भी हमारी रसोई में उपलब्ध होती है और इसे खड़े मसालों के अलावा चाय आदि में प्रयोग किया जाता है। लवंग का अंग्रेजी में नाम क्लोवस (Cloves), जंजिबर रैड हेड (Zanzibar red head), क्लोव ट्री (Clove tree), Clove (क्लोव) होता है और लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum  (Linn.) Merr & L. M. Perry (सिजीयम एरोमैटिकम) Syn-Eugenia caryophyllata Thunb., Caryophyllus aromaticus Linn. है। भारत में तमिलनाडु और केरल में लौंग बहुतयात से पैदा किया जाता है। लौंग के भी शीत रोगों में महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। गले का बैठना, गले की खरांस, कफ्फ खांसी आदि विकारों में लौंग का उपयोग हितकर होता है। शीत रोगों के अलावा लौंग के सेवन से भूख की वृद्धि, पाचन को दुरुस्त करना, पेट के कीड़ों को समाप्त करना आदि लाभ भी प्राप्त होते हैं। लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है इसलिए इसका सेवन अधिक नहीं किया जाना चाहिए। लौंग के अन्य लाभ निम्न हैं। 
  • लौंग के तेल से दांत के कीड़ों को दूर किया जाता है और साथ ही मसूड़ों की सूजन को कम करने में सहायक होता है। 
  • लौंग के चूर्ण को पानी के साथ लेने से कफ्फ बाहर निकलता है और फेफड़ों में कफ के जमा होने के कारण आने वाली खांसी में आराम मिलता है। 
  • लौंग के चूर्ण की गोली को मुंह में रखने से सांसों के बदबू दूर होती है और गले की खरांस भी ठीक होती है। 
  • कुक्कर खांसी में भी लौंग के सेवन से लाभ मिलता है। 
  • छाती से सबंधित रोगों में भी लौंग का सेवन लाभदायी होता है।

सोंठ : अदरक ( जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale ) को पूर्णतया पकने के बाद इसे सुखाकर सोंठ बनायी जाती है। ताजा अदरक को सुखाकर सौंठ बनायी जाती है जिसका पाउडर करके उपयोग में लिया जाता है। सौंठ का स्वाद तीखा होता है और यह महकदार होती है। अदरक गुण सौंठ के रूप में अधिक बढ़ जाते हैं।  अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अदरक का उपयोग सामान्य रूप से हमारे रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है। चाय और सब्जी में इसका उपयोग सर्दियों ज्यादा किया जाता है। अदरक के यदि औषधीय गुणों की बात की जाय तो यह शरीर से गैस को कम करने में सहायता करता है, इसीलिए सौंठ का पानी पिने से गठिया आदि रोगों में लाभ मिलता है। सामान्य रूप से सौंठ का उपयोग करने से सर्दी खांसी में आराम मिलता है। अन्य ओषधियों के साथ इसका उपयोग करने से कई अन्य बिमारियों में भी लाभ मिलता है। नवीनतम शोध के अनुसार अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थ को बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ने में सहयोगी हो सकते हैं। पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों के दर्द, पसलियों के दर्द, मांपेशियों में दर्द, सर्दी झुकाम आदि में सौंठ का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। सौंठ के पानी के सेवन से वजन नियंत्रण होता है और साथ ही यूरिन इन्फेक्शन में भी राहत मिलती है। सौंठ से हाइपरटेंशन दूर होती है और हृदय सबंधी विकारों में भी लाभदायी होती है। करक्यूमिन और कैप्साइसिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट के कारन सौंठ अधिक उपयोगी होता है। 


तेजपत्र (तेजपत्ता ) : तेजपत्ता को अंग्रेजी में Cinnamomum tamala, Indian bay leaf नाम से और हिंदी में तेजपत्ता को तमालपत्र, पत्र, तेजपत्ता, बराहमी में तेजपत्ता को पत्र, गन्धजात, पाकरञ्जन, तमालपत्र, पत्रक, तेजपत्रजाना आदि नामों से जाना जाता है। तेजपत्ता एक वृक्ष के पत्ते होते हैं। इस वृक्ष के पत्ते, तने की छाल और जड़ का उपयोग औषधीय रूप से किया जाता है। तेजपत्ता में कॉपर, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सेलेनियम और आयरन आदि तत्व भी पाए जाते हैं। लौंग, सौंठ और हल्दी की भाँती यह भी प्रायः हमारी रसोई में आसानी से उपलब्ध हो जाता है जिसका उपयोग खड़े मसालों के रूप में किया जाता है। तेजपत्ते की कई औषधीय लाभ भी होते हैं। इसकी तासीर भी गर्म होती है और यह शीत रोगों में बहुत ही लाभदायी होती है। दमा, अस्थमा, खांसी, कफ्फ आदि में तेजपत्ता उपयोगी होता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने, पाचन जनित विकारों को दूर करने में भी तेजपत्र का उपयोग बहुत ही लाभदायी होता है। तेजपत्ता एंटी इंफ्लेमेटोरी और एंटी बेक्टेरियल गुणों से भरपूर होता है।

भृंगराज Eclipta alba (False Daisy) : भृंगराज का वैज्ञानिक नाम : Eclipta alba) आस्टेरेसी (Asteraceae) कुल का पौधा है। यह प्राय: नम स्थानों में उगता है। वैसे तो यह लगभग पूरे संसार में उगता है किन्तु भारत, चीन, थाइलैंड एवं ब्राजील में बहुतायत में पाया जाता है। आयुर्वेद में इसका तेल बालों के लिये बहुत उपयोगी माना जाता है। यह एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एनाल्जेसिक, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी एजिंग और एंटी वायरस भी माना जाता है। भृंगराज के तेल का अलावा इसका चूर्ण, स्वरस और अन्य दवाओं में भी कार्य में लिया जाता है। इसके अन्य लाभों के अलावा उल्लेखनीय है की यह फेफड़ों की नसों में तीव्र गति से कार्य करता है। इसके स्वरस से सभी धातुओं की पुष्टि होती है। इस दवा में निम्न अन्य घटक भी होते हैं, लसोड़ा Lishoda (Cordia dichotoma), अमलतास Amaltas (Cassia fistula), सोमलता Ephedragerardiana 

Patanjali Swasari Pravahi Price Hindi पतंजलि श्वासारि प्रवाही की कीमत : 

8 टिप्पणियां

  1. बहुत बहुत धन्यवाद जी, बहुत ही उम्दा बात बताई हैं आपने 🙂🙂
  2. 👌👌very good information
  3. बहुत ही अच्छी तरह से समझाया है आपने।
  4. सम्पूर्ण विवरण के लिए धन्यवाद
  5. बहुत ही अच्छी तरह से समझाया है आपने

  6. बहुत बहुत धनयवाद
  7. अतिउतम जानकारी जी मुझे इन जानकारीयो से जुडना हैं जी
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