काला वासा (Justicia gendarussa) Gendarussa vulgaris Nees (जेन्डारुसा वल्गैरिस) : वासा एक आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर हर्ब (पौधा ) है जो मूल रूप से पित्त और कफ्फ को शांत करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। सुश्रुत-संहिता में हमें इस पौधे के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है। इसे संस्कृत में वासक, वासिका, वासा, सिंहास्य, भिषङ्माता और हिंदी में अडूसा, अडुस्, अरुस, बाकस आदि नामों से जाना जाता है। वासा की प्रजातिओं (स्वेत वासा, रक्त वासा क्षुद्र वासा और श्याम/काला वासा ) में काला (श्याम) वासा का उपयोग सर्दी खांसी, झुकाम और कफ को दूर करने के लिए किया जाता है। यह राजस्थान में प्रायः मरू भूमि में खाली खेतों में स्वतः ही उगता है। काला वासा का पौधा गहरा बैंगनी रंग लिए होता है जबकि स्वेत वासा का पुष्प सफेद होता है और यह कम बैंगनी होता है। काला वासा रस में कड़वा, तीखा तथा गर्म, वामक व रेचक होता है तथा बुखार, बलगम बीमारी में लाभकारी होता है। दमा, स्वांस जनित रोग,अस्थमा, खांसी और कफ्फ में बहुत ही प्रभावी हर्ब होती है। स्वांस जनित विकारों के अलावा वासा का प्रयोग मुखपाक, मुंह के संक्रमण, दमा, मूत्र सबंधी विकारों में भी किया जाता है।
सफ़ेद वासा Safed vasa (Adhatoda vasica) : यह भी वासा की ही प्रजाति का एक पौधा होता है। इसे भी सामान्य रूप से अल्डुसा के नाम से जाना जाता है। गुण धर्म में इसका उपयोग भी कफ्फ को पतला करने, खांसी को दूर करने, गले की खरांस को कम करना आदि कार्यों में किया जाता रहा है।
बनफ्शा Banfsa (Viola osorata) : इस हर्ब का उपयोग भी मूल रूप से स्वसन जनित विकार, कफ, खांसी और सर्दी जुकाम के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के आलावा यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता रहा है। बनफ्शा (Viola odorata) कफ के प्रकोप को दूर करने वाली एक असरदार हर्ब मानी जाती है। हिमालय में ऊँचे स्थानों पर इसकी पैदावार की जाती है। उत्तराखंड में भी वर्तमान में इसे इसके चिकित्सीय गुणों के कारण उगाया जाने लगा है। इसे संस्कृत- नीलपुष्प, हिन्दी- बनफ्शा, मराठी- बनफ्शाहा, गुजराती- वनपशा, बंगला- बनोशा, तमिल- बयिलेट्टु, फारसी- बनफ्शा, इंग्लिश - वाइल्ड वायलेट, लैटिन - वायोला ओडोरेटा आदि नामों से जाना जाता है। बनफ्सा का गुण धर्म लघु, स्निग्ध, कटु, तिक्त, उष्ण और विपाक में कटु है। स्निग्ध, मधुर और शीतल होने से यह वातपित्त शामक और शोथहर है। यह जन्तुनाशक, पीड़ा शामक और शोथ दूर करने वाला है। बनफ्शा शीत रोगों में बहुत ही लाभदायी होता है। यह कफनाशक, पित्तनाशक, अनुलोमन, रक्तविकार नाशक और रक्त शोधक भी होता है। यह शीत ज्वर, कास तथा श्वास में लाभप्रद है।
छोटी पिप्पल Chhoti pipal (Piper longum) : छोटी पिप्पल अक्सर खड़े मासालों में हम उपयोग में लाते हैं, जिसके कई चिकित्सीय लाभ भी होते हैं। यह भी एक आयुर्वेदिक हर्ब है जिसकी लता नुमा पौधा धरती पर फैलता है और सुगन्धित भी होता है। यह दो प्रकार का होता है छोटी पिप्पल और बड़ी पिप्पल। छोटी पिप्पल का उपयोग सर्दी खांसी, जुकाम और कफ को दूर करने के लिए किया जाता है। गले की खरांस, गले का बैठना आदि रोगों में भी पिप्पल लाभदायी होती है। अक्सर ही घर पर इसके चूर्ण को सर्दिओं में शहद के साथ दिया जाता है जिससे शीत रोगों में लाभ मिलता है।
तुलसी देसी Tulsi Desi (Ocimum sanctum) : देसी तुलसी प्रायः हमारे घरों में मिल ही जाती है जिसके पत्तों को सर्दियों में चाय में डालना लाभकारी माना जाता है। तुलसी को वैसे भी पवित्र माना जाता है और इसकी पूजा का भी प्रावधान है। इसे तुलसी के अलावा सुरसा, देवदुन्दुभि, अपेतराक्षसी, सुलभा, बहुमञ्जरी, गौरी आदि नामों से भी जाना जाता है। इसके पत्तों और बीजों के कई आयुर्वेदिक लाभ होते हैं जो वात और कफ को शांत करने में सहयोगी होते हैं। गले में खरांस को कम करने के लिए भी तुलसी का श्रेष्ठ लाभ होता है। तुलसी का वानस्पतिक नाम Ocimum sanctum Linn. (ओसीमम् सेंक्टम्) और कुल का नाम Lamiaceae है। गले की खरांस, सुखी खांसी, गले का बैठना, छाती में कफ्फ का जमा होना, आदि विकारों में इसका उपयोग लाभकारी होता है और साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करती है।
दालचीनी Dalchini (Cinnamomum zeylanicum) : दालचीनी (Cinnamomum verum, या C. zeylanicum) एक छोटा सदाबहार पेड़ है, जो कि 10–15 मी (32.8–49.2 फीट) ऊंचा होता है, यह लौरेसिई (Lauraceae) परिवार का है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसमें एक अलग ही सुगन्ध होती है, जो कि इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखती है। दाल चीनी को अक्सर हम खड़े मसालों में उपयोग में लाते हैं। दालचीनी के कई औषधीय गुण भी होते हैं। दाल चीनी एक वृक्ष की छाल होती है जो तीखी महक छोड़ती है। दाल चीनी को अंग्रेजी में True Cinnamonसीलोन सिनामोन (Ceylon Cinnamon) के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो दाल चीनी के कई लाभ होते हैं लेकिन खांसी और कफ्फ को शांत करने, सर्दी जुकाम के लिए यह उत्तम मानी जाती है।
लवंग (लौंग ) Lavang (Syzgium aromaticum) :लवंग या लौंग भी हमारी रसोई में उपलब्ध होती है और इसे खड़े मसालों के अलावा चाय आदि में प्रयोग किया जाता है। लवंग का अंग्रेजी में नाम क्लोवस (Cloves), जंजिबर रैड हेड (Zanzibar red head), क्लोव ट्री (Clove tree), Clove (क्लोव) होता है और लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum (Linn.) Merr & L. M. Perry (सिजीयम एरोमैटिकम) Syn-Eugenia caryophyllata Thunb., Caryophyllus aromaticus Linn. है। भारत में तमिलनाडु और केरल में लौंग बहुतयात से पैदा किया जाता है। लौंग के भी शीत रोगों में महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। गले का बैठना, गले की खरांस, कफ्फ खांसी आदि विकारों में लौंग का उपयोग हितकर होता है। शीत रोगों के अलावा लौंग के सेवन से भूख की वृद्धि, पाचन को दुरुस्त करना, पेट के कीड़ों को समाप्त करना आदि लाभ भी प्राप्त होते हैं। लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है इसलिए इसका सेवन अधिक नहीं किया जाना चाहिए। लौंग के अन्य लाभ निम्न हैं।
- लौंग के तेल से दांत के कीड़ों को दूर किया जाता है और साथ ही मसूड़ों की सूजन को कम करने में सहायक होता है।
- लौंग के चूर्ण को पानी के साथ लेने से कफ्फ बाहर निकलता है और फेफड़ों में कफ के जमा होने के कारण आने वाली खांसी में आराम मिलता है।
- लौंग के चूर्ण की गोली को मुंह में रखने से सांसों के बदबू दूर होती है और गले की खरांस भी ठीक होती है।
- कुक्कर खांसी में भी लौंग के सेवन से लाभ मिलता है।
- छाती से सबंधित रोगों में भी लौंग का सेवन लाभदायी होता है।
सोंठ : अदरक ( जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale ) को पूर्णतया पकने के बाद इसे सुखाकर सोंठ बनायी जाती है। ताजा अदरक को सुखाकर सौंठ बनायी जाती है जिसका पाउडर करके उपयोग में लिया जाता है। सौंठ का स्वाद तीखा होता है और यह महकदार होती है। अदरक गुण सौंठ के रूप में अधिक बढ़ जाते हैं। अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अदरक का उपयोग सामान्य रूप से हमारे रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है। चाय और सब्जी में इसका उपयोग सर्दियों ज्यादा किया जाता है। अदरक के यदि औषधीय गुणों की बात की जाय तो यह शरीर से गैस को कम करने में सहायता करता है, इसीलिए सौंठ का पानी पिने से गठिया आदि रोगों में लाभ मिलता है। सामान्य रूप से सौंठ का उपयोग करने से सर्दी खांसी में आराम मिलता है। अन्य ओषधियों के साथ इसका उपयोग करने से कई अन्य बिमारियों में भी लाभ मिलता है। नवीनतम शोध के अनुसार अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थ को बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ने में सहयोगी हो सकते हैं। पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों के दर्द, पसलियों के दर्द, मांपेशियों में दर्द, सर्दी झुकाम आदि में सौंठ का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। सौंठ के पानी के सेवन से वजन नियंत्रण होता है और साथ ही यूरिन इन्फेक्शन में भी राहत मिलती है। सौंठ से हाइपरटेंशन दूर होती है और हृदय सबंधी विकारों में भी लाभदायी होती है। करक्यूमिन और कैप्साइसिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट के कारन सौंठ अधिक उपयोगी होता है।