थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके लिरिक्स हिंदी मीनिंग Tharo Ram Hridya Mahi Bahar Kyo Bhatke Lyrics

थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके लिरिक्स हिंदी मीनिंग Tharo Ram Hridya Mahi Bahar Kyo Bhatke-Lyrics Mahesha Ram


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हाँ, ऐसा ऐसा हीरला घट मां कहिये
हाँ, ऐसा ऐसा हीरला घट मां कहिये
झवरी बिना हीरो कोण परखे
झवरी बिना हीरो कोण परखे
थारो राम हृदय मांही, बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही, बाहर क्यों भटके
क्यों भटके, बाहर क्यों भटके
क्या भटके, बाहिर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके

हां, ऐसा ऐसा घृत दूध माई कहिजे,
ऐसा ऐसा घृत दूध माई कहिजे,
बिना झुगिए माखण कैसा निकले
बिना झुगिए माखण कैसा निकले
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
क्यों भटके, बाहर क्यों भटके
क्या भटके, बाहिर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके


ऐसा ऐसा आग लकड़ी मां कहिये
ऐसा ऐसा आग लकड़ी मां कहिये
बिना घसिये आग कैसा निकले
बिना घसिये आग कैसा निकले
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
क्यों भटके, बाहर क्यों भटके
क्या भटके, बाहिर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके

हाँ, ऐसा ऐसा किवाड़ हिवड़े पर जड़िया
ऐसा ऐसा किवाड़ हिवड़े पर जड़िया
गुरा बिना ताला कोण खोले
गुरा बिना ताला कोण खोले
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
क्यों भटके, बाहर क्यों भटके
क्या भटके, बाहिर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके

कहत कबीरा सुणो भाई साधो
कहत कबीरा सुणो भाई साधो
राम मिले थाणे कोण हटके

थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
क्यों भटके, बाहर क्यों भटके
क्या भटके, बाहिर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके

थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
क्यों भटके, बाहर क्यों भटके
क्या भटके, बाहिर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
थारो राम हृदय मांही बाहर क्यों भटके
 
इस भजन के बारे में :भगवान् किसी तीर्थ, मंदिर आदि जगहों में नहीं है, वह तो हमारे हृदय में है इसलिए बाहर भटकने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी ज्ञान के अभाव में व्यक्ति भगवान् से परिचय करने के लिए बाहर भटकता है। जौहरी के अभाव में हीरे की पहचान नहीं हो पाती है, इसी भाँती गुरु ही यह ज्ञान दे सकता है की जो है अन्दर है, बाहर कुछ नहीं है। हीरे की परख जौहरी कर सकता है आम आदमी को इसका ज्ञान नहीं होता है, कुछ इसी तरह से गुरु हमें बताता है की इश्वर कहाँ है और उसकी पहचान कैसे की जाए। घृत तो दूध में ही होता है लेकिन उसे बिलौने से ही दूध से घी को प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे ही लकड़ी में ही आग व्याप्त होती है उसे रगड़ने पर ही अग्नि उत्पन्न हो पाती है। भाव है की प्रयत्न्न करना पड़ता है। यदि कोई बगैर प्रयत्न के ही कुछ प्राप्त करना चाहे तो यह सम्भव नहीं है। 
 
ज्ञान के अभाव में भी हम उस वस्तु का मूल्य और उसकी पहचान नहीं कर पाते हैं। जैसे हीरा हमारे पास हो लेकिन जब तक उसके बारे में पता ना हो वह पत्थर का एक टुकड़ा है। ऐसे ही दूध में ही घी है और लकड़ी में ही अग्नि है, इसके ज्ञान के अभाव में हम उसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं। जब इसका ज्ञान हो जाता है तब कहीं दूर भटकने की आवश्यकता नहीं रह जाती है। 
 
वस्तुतः कबीर साहेब ने "ज्ञान" को "ज्ञान के एजेंटो और ज्ञान के ठेकेदारों" से लेकर आम जन को बाँट दिया। अब लोगों के पास भी वह ज्ञान था जिस पर कुछ लोग कुंडली मार के बैठे थे। ज्ञान के ऊपर ताला लगा था जिसे कबीर साहेब ने 'निर्गुणी' चाबी लगाकर खोला और जो ज्योति प्राप्त हुयी वह सबमे बाँट दी।
 

'Baahar Kyon Bhatke' by Mahesha Ram and Bhage Khan
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