क्या भरोसा देह का बिनस जात छिन मीनिंग

क्या भरोसा देह का बिनस जात छिन मांह हिंदी मीनिंग

कबीर दोहे व्याख्या हिंदी में
क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
साँस साँस सुमिरन करो और यतन कुछ नाह
।।
या
काह भरोसा देह का बिनस जात छीन मांहिं ।
सांस सांस सुमिरण करो, और यतन कछु नाहिं ।।
Kya Bharosa Deh Ka, Binas Jaat Chhin Maanh .
Saans Saans Sumiran Karo Aur Yatan Kuchh Naah..
Ya
Kaah Bharosa Deh Ka Binas Jaat Chheen Maanhin .
Saans Saans Sumiran Karo, Aur Yatan Kachhu Naahin 
 
क्या भरोसा देह का बिनस जात छिन मांह हिंदी मीनिंग

क्या भरोसा देह का बिनस जात छिन मांह शब्दार्थ

काह भरोसा/क्या भरोसा : क्या भरोसा
बिनस :समाप्त होना 
छीन : क्षण के अंदर /क्षण क्षण में 
कुछ नाह/कछु नाहीं : कुछ नही

क्या भरोसा देह का हिंदी मीनिंग:  इस जगत में माया जनित सबसे बड़ा भ्रम यही है की 'मैं हूँ और मैं सदा रहूँगा" . माया ऐसा भ्रम उत्पन्न करती है जिससे जीव इस संसार को ही अपना स्थायी घर समझने लग जाता है और हरी सुमिरण को भूल जाता है। इस मानव देह का कोई भरोसा नहीं है, यह एक क्षण में / एक पल में समाप्त हो जाने वाली है / हो जाती है। प्रत्येक सांस में हरी का सुमिरन करो यही एक मात्र युक्ति है। मानव जीवन क्षणिक है और एक ही पल में समाप्त हो जाता है, इसका कोई स्थायित्व नहीं है। इसलिए हर आती जाती सांस से हरी नाम का सुमिरन किया जाना चाहिए।

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