कहता तो बहुते मिला गहता मिला न कोय हिंदी मीनिंग Kahta To Bahute Mile Gahata Mila Na Koy Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
कहता तो बहुते मिला, गहता मिला न कोय ।
सो कहता बहि जान दे, जो न गहन्ता होय ।।
कहता तो बहुत मिले, गहता मिला न कोय ।
सो कहता वह जान दे , जो नहीं गहता कोय ।।
सो कहता बहि जान दे, जो न गहन्ता होय ।।
कहता तो बहुत मिले, गहता मिला न कोय ।
सो कहता वह जान दे , जो नहीं गहता कोय ।।
Kahata To Bahute Mila, Gahata Mila Na Koy
So Kahata Bahi Jaan De, Jo Na Gahanta Hoy
Ya
Kahata To Bahut Mile, Gahata Mila Na Koy
So Kahata Vah Jaan De , Jo Nahin Gahata Koy
कहता तो बहुते मिला : बखान करने वाले /कहने वाले तो बहुत मिले।
गहता मिला न कोय : गहता (ग्रहण करने वाला ) कोई नहीं मिला।
सो कहता बहि जान दे : जो सिर्फ कहता है और ग्रहण नहीं करता उसे जाने दो, उस पर ध्यान मत दो।
गहता मिला न कोय : गहता (ग्रहण करने वाला ) कोई नहीं मिला।
सो कहता बहि जान दे : जो सिर्फ कहता है और ग्रहण नहीं करता उसे जाने दो, उस पर ध्यान मत दो।
दोहे का हिंदी मीनिंग Dohe Ka Hindi Meaning
ज्ञान को इकठ्ठा करके यदि उसे अमल में नहीं लाया जाय, यदि कोई मात्र प्रवचन ही देता है और उसके स्वंय के व्यक्तित्व में यदि वे शामिल नहीं हैं तो उस पर गौर मत करो। ज्ञान को इकठ्ठा करने से कोई किताब जरूर पब्लिश की जा सकती है लेकिन उस व्यक्ति के ज्ञान पर कैसे भरोसा किया जाय जो खुद उस पर अमल नहीं करता है।
दूसरों को ज्ञान देना आसान है लेकिन यदि वह ज्ञान खुद के लिए ही नहीं है तो उसका कोई मोल नहीं है और उस व्यक्ति पर / उसके ज्ञान पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति दोहरे मापदंड में जीवन जीता है। यदि आप वर्तमान सन्दर्भ में इस दोहे का मूल्यांकन करे तो पाएंगे की सैंकड़ों ऐसे ग्यानी जन मंडरा रहे हैं जो दूसरों को ज्ञान की बाते सिखाते रहते हैं और फिर धरे जाते हैं खुद के कुकर्मों के कारण। अनैतिक कार्य या कुकर्म वह व्यक्ति कैसे कर सकता है जो ब्रह्म ज्ञान की बाते करता हो ? वह इसलिए की वह सिर्फ बातें ही करता है उसने स्वंय पर उसे कभी अमल नहीं लाया। ऐसे व्यक्तिओं से दूर रहने में ही भलाई है।
दूसरों को ज्ञान देना आसान है लेकिन यदि वह ज्ञान खुद के लिए ही नहीं है तो उसका कोई मोल नहीं है और उस व्यक्ति पर / उसके ज्ञान पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति दोहरे मापदंड में जीवन जीता है। यदि आप वर्तमान सन्दर्भ में इस दोहे का मूल्यांकन करे तो पाएंगे की सैंकड़ों ऐसे ग्यानी जन मंडरा रहे हैं जो दूसरों को ज्ञान की बाते सिखाते रहते हैं और फिर धरे जाते हैं खुद के कुकर्मों के कारण। अनैतिक कार्य या कुकर्म वह व्यक्ति कैसे कर सकता है जो ब्रह्म ज्ञान की बाते करता हो ? वह इसलिए की वह सिर्फ बातें ही करता है उसने स्वंय पर उसे कभी अमल नहीं लाया। ऐसे व्यक्तिओं से दूर रहने में ही भलाई है।
लाया साखी बनाय करि, ईत उत अछर काटि।
कह कबीरा कब लग जिए, झूठी पत्तल चाटि।।
कह कबीरा कब लग जिए, झूठी पत्तल चाटि।।
झूठे ज्ञान जिसे अमल में नहीं लाया जाता वह चोरी का माल है जो कभी स्वंय का और दूसरों का कल्याण नहीं कर सकता है। इधर उधर से, काट छांट करके किसी साखी का निर्माण किया जा सकता है लेकिन यह वैसे ही है जैसे झूठी पत्तल चाटने का काम।
हजरत सुलतान बाहू के ने इस विषय पर कहा है -
अलिफ़-अल्ला पढ़ियों पढ़ हाफिज़ होइओं,
न गया हिजाबों परदा हू ।
पढ़ पढ़ आलिम फाज़िल होइओं,
अजे भी तालिब ज़र दा हू ।
लक्ख हज़ार किताबां पढ़ियां,
पर ज़ालिम नफ़स ना मरदा हू ।
बाझ फ़कीरां किसे ना मारिया,
बाहू एहो चोर अन्दर दा हू ।
इस विषय पर बाबा बुल्ले शाह का कलाम है -
पढ़ पढ़ आलम फाज़ल होयां, कदीं अपने आप नु पढ़याऍ ना
जा जा वडदा मंदर मसीते, कदी मन अपने विच वडयाऍ ना
एवैएन रोज़ शैतान नाल लड़दान हे, कदी नफस अपने नाल लड़याऍ ना
बुल्ले शाह अस्मानी उड़याँ फडदा हे, जेडा घर बैठा ओन्नु फडयाऍ ना
लोका मति के भोरा रे।
जो कासी तन तजै कबीर, तौ रामहिं कहा निहोरा रे॥
तब हमें वैसे अब हम ऐसे, इहै जनम का लाहा।
ज्यूँ जल मैं जल पैसि न निकसै, यूँ ढुरि मिलै जुलाहा॥
राम भगति परि जाकौ हित चित, ताकौ अचिरज काहा॥
गुर प्रसाद साध की संगति, जग जीते जाइ जुलाहा॥
कहै कबीर सुनहु रे संतो, भ्रमि परे जिनि कोई॥
जसं कासी तस मगहर ऊसर हिरदै राम सति होई॥
जो कासी तन तजै कबीर, तौ रामहिं कहा निहोरा रे॥
तब हमें वैसे अब हम ऐसे, इहै जनम का लाहा।
ज्यूँ जल मैं जल पैसि न निकसै, यूँ ढुरि मिलै जुलाहा॥
राम भगति परि जाकौ हित चित, ताकौ अचिरज काहा॥
गुर प्रसाद साध की संगति, जग जीते जाइ जुलाहा॥
कहै कबीर सुनहु रे संतो, भ्रमि परे जिनि कोई॥
जसं कासी तस मगहर ऊसर हिरदै राम सति होई॥
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