तिनका कबहुँ न निंदिये जो पाँयन तर होय हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

तिनका कबहुँ न निंदिये जो पाँयन तर होय हिंदी मीनिंग Tinka Kabhu Na Nindiye Jo Payan Tar Hoy Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit


तिनका कबहुँ न निंदिये जो पाँयन तर होय ।
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ॥
या
तिनका कबहूँ न निंदिये, जो पाँव तले होए।
कबहूँ उड़ आंखन पड़े, पीड़ घनेरी होए।।
Tinaka Kabahun Na Nindiye Jo Paanyan Tar Hoy .
Kabahun Ud Aankhin Pare, Peer Ghaneree Hoy .
Ya
Tinaka Kabahoon Na Nindiye, Jo Paanv Tale Hoe.
Kabahoon Ud Aankhan Pade, Peed Ghaneree Hoe.
 
तिनका कबहुँ न निंदिये जो पाँयन तर होय हिंदी मीनिंग Tinka Kabhu Na Nindiye Jo Payan Tar Hoy Hindi Meaning

दोहे का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning Kabir Doha: किसी को छोटा समझ कर / उसकी शक्तियों को कम आंक कर उसकी अवहेलना और निंदा नहीं करनी चाहिए। जैसे पांवों के तले तिनका (तुच्छ वस्तु) जब उड़ कर आँखों में गिर जाता है तो बहुत ही अधिक पीड़ा होती है। इस दोहे का मूल भाव है की सभी वस्तुओं / व्यक्तियों का अपना महत्त्व होता है, उन्हें छोटा समझ कर उनको नजरंदाज करना और उन्हें महत्त्व नहीं देने पर वे विकट समस्या का कारन बन जाते हैं इसे वृहद रूप से देखने पर ज्ञात होता है की जिसे हम छोटा समझ रहे हैं, वह छोटा है ही नहीं। ईश्वर की नजर में कोई छोटा और बड़ा नहीं है। 
 
वस्तुतः हर बड़ी वस्तु के मूल में छोटी छोटी इकाई होती है, जिनसे मिलकर उसका निर्माण होता है। इसलिए जिसे हम छोटा समझ रहे हैं, वह बड़ा ही है और जिसे हम बड़ा समझ रहे हैं वह छोटा हैं, ना कोई छोटा और ना ही कोई बड़ा। ये हमारे देखने के नजरिये के कारण भेद पैदा होता है। जब 'अहम्' का नाश होने लगता है तो 'सम' भाव आने लगता है, हर वस्तु समान और ईश्वर की बनायी हुयी खूबसूरत रचना लगने लगती है, यही कबीर साहेब का भाव है।

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