इस भजन के बारे में : साहेब की अमृत वाणी है की बिना भजन के तुमने अमूल्य जीवन को बर्बाद कर दिया है। तुम्हे यह जीवन अनेकों प्रकार के यतन करने के उपरान्त प्राप्त हुआ था जिसे तुमने मिटटी में मिला दिया है। पत्नी और संतान तुम्हारे कहाँ हैं ? वे तो तुम्हारे धन के ही साथी हैं। जब तक तुम्हारे पास धन है, वे तुम्हारे साथ रहेंगे और तुम्हारे धन के समाप्त होते ही वे तुम्हारा साथ छोड़ देंगे। तुम उनके अंदर अपना मोह डालकर यह जीवन बर्बाद कर रहे हो जो कहाँ तक उचित है।
मोह और ममता के कारन तू उनमे उलझ कर रह गया है। इसी प्रकार से तुम इस जगत में कुछ ही दिनों के मेहमान हो, यह तुम्हारा स्थायी घर नहीं है। तुम इसे अपना घर समझ रहे हो तो तुम्हारी बहुत बड़ी भूल है। यहाँ की वस्तुओं पर तुम अधिकार जमा कर कहते हो की यह तुम्हारी है, जो कितनी मूर्खता की बात है। कुछ लेकर कहाँ आये थे, कुछ देकर ही जाना है। हरी भक्ति जो इस जीवन का मूल उद्देश्य था तुमने उसे तो गौण कर दिया और व्यर्थ की बातों में अपना मन लगा बैठे हो। गुरु की शरण में तुम आये होते तो तुम्हे जीवन के बारे में पता चलता।
जब जाने की बारी आएगी तो तुम पाओगे की तुम तो खाली हाथ ही चल पड़े हो। तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है जिसे तुम अपना कह सको। वस्तुतः यह शरीर भी तुम्हारा साथ छोड़ने को तैयार रहेगा, यही जीवन की कड़वी सच्चाई है, जिसे जितना जल्दी समझ लो तुम्हारी ही भलाई है। तो क्या सब छोड़ देना चाहिए ? नहीं सभी के साथ चलो लेकिन मन को प्रभु में लगाओ। सदाचरण करो, मोहजनित व्यव्हार को त्याग दो।
जरा कुत्ता जोबन ससा , काल आहेरी नित्त।
गो बैरी बिच झोंपड़ा , कुशल कहां सो मित्त।।