चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोये दो पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोए दो दिन का जग में मेला सब दो दिन का जग में मेला राग: बंजारा ताल दो दिन का जग में मेला, सब चला चली का खेला,
कोई चला गया कोई जावे, कोई गठड़ी बांध सिधावेजी , कोई खड़ा तैयार अकेला, दो दिन का जग में मेला, सब चला चली का खेला,
कर पाप कपट छल माया, धन लाख करोड़ कमायाजी, संग चले न एक अधेला, दो दिन का जग में मेला, सब चला चली का खेला,
सुत नार मात पितु भाई । कोई अंत सहायक नाहीजी । क्यो भरे पाप का ठेला, दो दिन का जग में मेला, सब चला चली का खेला,
यह नश्वर सब संसारा, कर भजन ईश का प्याराजी, ब्रह्मानंद कहे सुन चेला,
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