काहे सोच करे नर मन में कर्म लिखा सोई
काहे सोच करे नर मन में,
कर्म लिखा सोई होवत प्यारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
होवनहार मिटे नहि कबहूँ,
कोटि जतन कर सब हारे,
होवनहार मिटे नहि कबहूँ,
कोटि जतन कर सब हारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
हरिश्चन्द्र नल राम युधिष्ठिर,
राज्य छोड़ वनवास सिधारे,
हरिश्चन्द्र नल राम युधिष्ठिर,
राज्य छोड़ वनवास सिधारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
अपनी करणी निश्चय भरणी,
दुश्मन मित्र न कोई तुम्हारे,
अपनी करणी निश्चय भरणी,
दुश्मन मित्र न कोई तुम्हारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
ब्रह्मानन्द सुमर जगदीश्वर,
सब दुख संकट दूर निवारे,
ब्रह्मानन्द सुमर जगदीश्वर,
सब दुख संकट दूर निवारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
कर्म लिखा सोई होवत प्यारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
होवनहार मिटे नहि कबहूँ,
कोटि जतन कर सब हारे,
होवनहार मिटे नहि कबहूँ,
कोटि जतन कर सब हारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
हरिश्चन्द्र नल राम युधिष्ठिर,
राज्य छोड़ वनवास सिधारे,
हरिश्चन्द्र नल राम युधिष्ठिर,
राज्य छोड़ वनवास सिधारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
अपनी करणी निश्चय भरणी,
दुश्मन मित्र न कोई तुम्हारे,
अपनी करणी निश्चय भरणी,
दुश्मन मित्र न कोई तुम्हारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
ब्रह्मानन्द सुमर जगदीश्वर,
सब दुख संकट दूर निवारे,
ब्रह्मानन्द सुमर जगदीश्वर,
सब दुख संकट दूर निवारे,
काहे सोच करे नर मन में,
काहे सोच करे नर मन में,
Brahmanand bhajan:KAHE SOCH KARE NAR MAN MAIN: S.S. Ratnu
