माई माई ओ माई माई,
कैसे जिऊँ री माई, हरि बिन कैसे जिऊ री ।।टेक।।
उदक दादुर पीनवत है, जल से ही उपजाई।
पल एक जल कूँ मीन बिसरे, तलफत मर जाई।
पिया बिन पीली भई रे, ज्यों काठ धुन खाय।
औषध मूल न संचरै, रे बाला बैद फिरि जाय।
उदासी होय बन बन फिरूँ, रे बिथा तन छाई।
दासी मीराँ लाल गिरधर, मिल्या है सुखदाई।।
कैसे जिऊँ री माई, हरि बिन कैसे जिऊ री ।।टेक।।
उदक दादुर पीनवत है, जल से ही उपजाई।
पल एक जल कूँ मीन बिसरे, तलफत मर जाई।
पिया बिन पीली भई रे, ज्यों काठ धुन खाय।
औषध मूल न संचरै, रे बाला बैद फिरि जाय।
उदासी होय बन बन फिरूँ, रे बिथा तन छाई।
दासी मीराँ लाल गिरधर, मिल्या है सुखदाई।।
शब्दार्थ- उदक = पानी। मीन = मछली। तलफत = तड़प कर। बाला = वल्लभ, प्रियतम।
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