जिनके कानन कुण्डल हलकै, नैनन बिच प्रेम सुधा छलकै, नाक बेसर सुघर, छविदार, लखन को जिया ललके।।
जिनकी चंचल चितवनि बाँकी,
Krishna Bhajan Lyrics Hindi
मुरि-मुरि मृदु मुसकनि की झाँकी, वनमाला गले रिझवार, लखन को जिया ललके।।
जिनके उर पीताम्बर फहरै, कटि किंकिनि की धुनि चित्त हरै,
भल कछनी कछी अरुणार, लखन को जिया ललके।।
जिनके चरनन नूपुर बाजै, झुकि झूमि गवनि गति गज लाजै, तान मुरली 'कृपालु' बलिहार, लखन को जिया ललके।।
भावार्थ - श्यामसुन्दर हमारे परम प्रियतम हैं उनको देखने के लिए मन ललचा रहा है। जिनके सिर पर मोर मुकुट सुशोभित हो रहा है, ललाट में गोरोचन का तिलक अलंकृत है, जिनकी लटें काली, घनी एवं घुँघराली हैं उनको देखने के लिए मन ललचा रहा है। जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, जिनकी आँखों में प्रेमामृत छलक रहा है, जिनकी नासिका में सुन्दर बेसर शोभायमान है, उनको देखने के लिए मन ललचा रहा है। जिनकी चितवन अत्यन्त चंचल एवं सुन्दर है, जिनकी घूम घूम कर मंद मुस्कान अत्यन्त मनोहारिणी है, जिनके गले में वनमाला सुशोभित है उनके देखने के लिए जी ललचा रहा है। जिनके वक्षःस्थल पर पीताम्बर फहरा रहा है, जिनकी कमर में किंकिनि की ध्वनि चित्त को चुरा रही है एवं लाल रंग की सुन्दर कछनी कछी हुई है, उनको देखने के लिए मेरा मन ललचा रहा है। जिनके चरणों में नूपुर बज रहे हैं, जो झुककर झूमते हुए मतवाले हाथी को लज्जित करते हुए चलते हैं, 'कृपालु' कहते हैं कि जिनकी मुरली की तान पर हम बलिहार जाते हैं, उनको देखने के लिए मन ललचा रहा है।
श्यामसुन्दर हमारो यार, लखन को जिया ललके | प्रेम रस मदिरा | प्रकीर्ण माधुरी | Ft. Akhileshwari Didi