श्री कृष्ण चालीसा भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति में रचित 40 छंदों का एक भक्तिपूर्ण गीत है, जो उनकी लीलाओं, गुणों और महिमा का वर्णन करता है। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
महत्त्व: सुख और समृद्धि की प्राप्ति: श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करने से जीवन में सुख, सौभाग्य और समृद्धि में वृद्धि होती है। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है।
इस चालीसा के नियमित पाठ से जीवन की विपत्तियाँ दूर होती हैं और भक्तों को मानसिक शांति मिलती है। श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण करने से भक्तों का आध्यात्मिक विकास होता है और वे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कर सकते हैं।
अर्थ: श्री कृष्ण चालीसा के प्रत्येक छंद में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न रूपों, लीलाओं और गुणों का वर्णन किया गया है। उदाहरण के लिए, चालीसा की शुरुआत में भगवान के बंशीधारी स्वरूप, नीलवर्ण, कमल जैसे नेत्र और पीतांबर धारण करने का वर्णन है। आगे के छंदों में उनके बाल लीलाओं, जैसे माखन चोरी, गोवर्धन पर्वत उठाने, कालिया नाग का दमन करने आदि का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त, महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी बनने और गीता का उपदेश देने की घटनाओं का भी वर्णन किया गया है। Astroyogi
॥दोहा॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नटनागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥