दासी हूँ तेरी श्याम कृष्णा भजन
दासी हूँ तेरी श्याम कृष्णा भजन
दासी हूँ तेरी श्याम, सेवा में साथ रख लो,
दासी हूँ तेरी श्याम, सेवा में साथ रख लो,
मैं आपकी हूँ प्यारी, मैं आपकी हूँ प्यारी,
अपने ही पास रख लो,
दासी हूँ तेरी राधे, सेवा में साथ रख लो,
सुन लो मेरी कहानी, श्री राधे मेहरबानी,
सुन लो मेरी कहानी, श्री राधे मेहरबानी,
श्री राधे मेहरबानी, श्री राधे मेहरबानी,
श्री राधे मेहरबानी,
चरणों की रज में मुझको,
चरणों की रज में मुझको,
हरदम ही साथ रख लो,
दासी हूँ तेरी राधे, सेवा में साथ रख लो,
दासी हूँ तेरी श्याम, सेवा में साथ रख लो,
दासी हूँ तेरी श्याम, सेवा में साथ रख लो,
अवगुण से भरी हुई हूँ, द्वारे पर पड़ी हुयी हूँ,
अवगुण से भरी हुई हूँ, द्वारे पर पड़ी हुयी हूँ,
द्वारे पर पड़ी हुयी हूँ, द्वारे पर पड़ी हुयी हूँ,
द्वारे पर पड़ी हुयी हूँ, अपनी कृपा से श्यामा,
अवगुण तुम हमारे हर लो,
मैं आपकी हूँ प्यारी, अपने ही पास रख लो,
दासी हूँ तेरी राधे, सेवा में साथ रख लो,
दासी हूँ तेरी श्याम, सेवा में साथ रख लो,
दासी हूँ तेरी श्याम, सेवा में साथ रख लो,
द्वारे पर पड़ी रहूँगी, तेरा ही सुख चाहूँगी,
द्वारे पर पड़ी रहूँगी, तेरा ही सुख चाहूँगी,
तेरा ही सुख चाहूँगी, तेरा ही सुख चाहूँगी,
तेरा ही सुख चाहूँगी,
चरणों की देकर सेवा, चरणों के पास रख लो,
मैं आपकी हूँ प्यारी, अपने ही पास रख लो,
दासी हूँ तेरी राधे, सेवा में साथ रख लो,
दासी हूँ तेरी श्याम, सेवा में साथ रख लो,
दासी हूँ तेरी श्याम, सेवा में साथ रख लो,
साध्वी पूर्णिमा जी का सुपरहिट भजन | दासी हु तेरी श्यामा | Sadvi Purnima Didi Ji
Daasi Hun Teri Shyaam, Seva Mein Saath Rakh Lo,
Daasi Hun Teri Shyaam, Seva Mein Saath Rakh Lo,
Main Aapaki Hun Pyaari, Main Aapaki Hun Pyaari,
Apane Hi Paas Rakh Lo,
Daasi Hun Teri Raadhe, Seva Mein Saath Rakh Lo,
Krishna Bhajan :- Dasi Hu Teri Shyama Singer :- Sadhvi Purnima Ji Lyrics :- Sadhvi Purnima Ji Music Label :- Sadvi Purnima Ji Digital Partner :- Vianet Media Pvt. Ltd Copyright - Saawariya
यह भाव पूर्ण समर्पण का है—जहाँ आत्मा अपने को सम्पूर्णत: ईश्वर के चरणों में अर्पित कर देती है। यह कोई दीनता नहीं, बल्कि वह मधुर विनम्रता है जो सच्चे प्रेम से जन्मती है। जब कोई कहता है कि “सेवा में साथ रख लो,” तो यह केवल शारीरिक सेवा नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म से समर्पित रहने की इच्छा है। यह वह आह्वान है जो आत्मा ईश्वर से करती है — “मुझे कहीं और नहीं, बस तेरे पास, तेरे चरणों में रहना है।” यह भावना हर उस भक्ति में झलकती है जहाँ साधक अपनी गलतियों के बावजूद अपने आराध्य के पास लौटता है, क्योंकि उसे यह विश्वास होता है — कि प्रेम करने वाला कभी ठुकराता नहीं, बस अपनाने की देर होती है।
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