दूर कहीं कोई रोता है अटल बिहारी सोंग

दूर कहीं कोई रोता है अटल बिहारी बाजपेयी

 
दूर कहीं कोई रोता है लिरिक्स Door Kahi Koi Rota Hai Lyrics

तन पर पैहरा भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या स्वजन किसी का,
क्रंदन सदा करूण होता है ।
जन्म दिवस पर हम इठलाते,
क्यों ना मरण त्यौहार मनाते,
अन्तिम यात्रा के अवसर पर,
आँसू का अशकुन होता है ।
अन्तर रोयें आँख ना रोयें,
धुल जायेंगे स्वपन संजाये,
छलना भरे विश्व में केवल,
सपना ही सच होता है ।
इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली गली है,
मैं भी रोता आसपास जब,
कोई कहीं नहीं होता है ।


Door Kahin Koi Rota Hai

यह कविता गहरी अस्तित्वदर्शी संवेदना से भरी हुई है। इसमें मनुष्य के भीतर उठते उस मोहभंग और आत्मचिंतन की लहर दिखाई देती है जो जीवन की अस्थिरता को स्वीकार करने के बाद उभरती है। “तन पर पहरा, भटक रहा मन”—यह आरंभ ही बता देता है कि कवि बाहरी जीवन के अनुशासन और भीतर की रिक्तता के विरोधाभास से जूझ रहा है। वह बताता है कि चारों ओर भीड़ है, नियम हैं, वक्त है—पर साथी केवल “सूनापन” रह गया है।

“जन्म दिवस पर हम इठलाते, क्यों न मरण त्यौहार मनाते”—यह पंक्ति सृजनात्मक विडंबना की पराकाष्ठा है। जीवन को जो सामान्यतः उत्सव मानता है, वही कवि उसे मृत्यु के परिप्रेक्ष्य से देखता है। यहाँ मृत्यु भय नहीं है, बल्कि मुक्ति का प्रतीक बन जाती है—उस भ्रांत जगत से जहाँ “छलना भरा विश्व” ही स्थायी दिखाई देता है। वह रोष नहीं करता, प्रश्न करता है: अगर जन्म पर हर्ष है तो मृत्यु पर भी शांति क्यों नहीं?आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
 
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