गुरु मुरति आगे खडी दुतिया भेद कछु मीनिंग
गुरु मुरति आगे खडी दुतिया भेद कछु नाहि हिंदी मीनिंग
गुरु मुरति आगे खडी , दुतिया भेद कछु नाहि ।
उन्ही कूं परनाम करि , सकल तिमिर मिटी जाहिं ।।
उन्ही कूं परनाम करि , सकल तिमिर मिटी जाहिं ।।
Guru Murati Aage Khadee , Dutiya Bhed Kachhu Naahi .
Unhee Koon Paranaam Kari , Sakal Timir Mitee Jaahin
दोहे का हिंदी मीनिंग: गुरु को ही पूर्ण मानना चाहिए और द्वेत या भेद नहीं रखना चाहिए। गुरु की सेवा करो और उनके दिए पथ का अनुसरण करो तो जीवन के सभी अँधेरे समाप्त हो जायेंगे।
गुरु को सर पर राखिये चलिये आज्ञा माहि ।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहीं ।।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहीं ।।
दोहे का भावार्थ : गुरु को सबसे महान मान कर उसकी सभी आज्ञाओं का पालन करके चलने वाले व्यक्ति को तीनों लोकों का भय नहीं सताता है। गुरु की सभी आज्ञा और निर्देशों के पालन करने वाले को किसी का भय नहीं रहता है और वह भव सागर से पार हो जाता है।
गुरु शरणगति छाडि के, करै भरोसा और ।
सुख संपती को कह चली , नहीं नरक में ठौर ।।
सुख संपती को कह चली , नहीं नरक में ठौर ।।
दोहे का भावार्थ : जो साधक गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण ना करके अन्य मार्ग पर भटक जाता है वह माया का पात्र तो दूर नरक में भी उसे जगह नहीं मिलती है । सुख सम्पति भी तभी आती है जब गुरु का आशीर्वाद प्राप्त हो जाए।
कबीर हरि के रुठते, गुरु के शरणै जाय ।
कहै कबीर गुरु रुठते , हरि नहि होत सहाय ।।
कहै कबीर गुरु रुठते , हरि नहि होत सहाय ।।
दोहे का भावार्थ : हरी के रूठने पर गुरु की शरण में चले जाना चाहिए लेकिन यदि गुरु ही रूठ जाए तो उस व्यक्ति का क्या होगा ? भाव है की वह व्यक्ति कहीं का भी नहीं रहता है। गुरु के रूठने पर कोई भी सहायक नहीं होता है। इसलिए गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। यह गुरु की महिमा है की वह अपने साधक को सच्चा राह दिखाता है इसलिए कभी भी गुरु से दूरी नहीं होनी चाहिए।
जैसी प्रीती कुटुम्ब की, तैसी गुरु सों होय ।
कहैं कबीर ता दास का, पला न पकडै कोय ।।
कहैं कबीर ता दास का, पला न पकडै कोय ।।
दोहे का भावार्थ : व्यक्ति जैसे अपने कुटुंब कबीले और परिवार से प्रेम करता है वैसे यदि गुरु से करे और उसके बताये मार्ग का अक्षरश पालन करने के उपरान्त किसी का भी भय नहीं रहता है।
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