मेरे बांके बिहारी सुनो मेरी पुकार भजन

मेरे बांके बिहारी सुनो मेरी पुकार,
तेरे दर पे, तेरे दर पे,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,

मेरे बांके बिहारी सुनो मेरी पुकार भजन

 
मेरे बांके बिहारी सुनो मेरी पुकार भजन

मेरे बांके बिहारी सुनो मेरी पुकार,
तेरे दर पे, तेरे दर पे,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,

जख्मी दिल क्यों तूने तोड़ा ,
हाय बैरी क्यों मुखड़ा मोड़ा,
मैं तो तेरा हुआ चाहे रख चाहे मार,
तेरे दर पे, तेरे दर पे,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार, 

सुन ले कन्हैया अब तो आजा,
डूबती नैया पार लगा जा,
डोले नैया मेरी प्यारे बीच मझधार
तेरे दर पे, तेरे दर पे,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,

हँसती दुनियाँ हँसता जमाना,
अपना हो गया मेरा बेगाना,
हँसती दुनियाँ हँसता जमाना,
अपना हो गया मेरा बेगाना,
जग छोड़ श्याम तुझे लियां मन में धार,
जग छोड़ श्याम तुझे लियां मन में धार, 

तेरे दर पे, तेरे दर पे,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,
मेरे बांके बिहारी सुनो मेरी पुकार,
मेरे बांके बिहारी सुनो मेरी पुकार,
तेरे दर पे, तेरे दर पे,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,
तेरे दर पे लगाता हूँ, कब से गुहार,


गिरते हुए लोगो को सहारा देगा ये भजन Mere Banke Bihari Suno Meri Pukar New Shyam Bhajan
 
Mere Baanke Bihaari Suno Meri Pukaar,
Mere Baanke Bihaari Suno Meri Pukaar,
Tere Dar Pe, Tere Dar Pe,
Tere Dar Pe Lagaata Hun, Kab Se Guhaar,
Tere Dar Pe Lagaata Hun, Kab Se Guhaar,

 
जब मनुष्य संसार से टूट कर ईश्वर से जुड़ना चाहता है। जब कोई अपने प्रियतम पर संपूर्ण विश्वास रखता है, तो उसका हर दुख उसी की दहलीज पर जाकर समर्पण बन जाता है। इस विनती में दर्द है, पर वह निराशा का नहीं – आत्मीयता का है। यहाँ प्रेम केवल आराधना नहीं, एक जीवनभर की संगिनी भावना है जहाँ वियोग भी भक्ति का हिस्सा लगने लगता है। कृष्ण से यह पुकार किसी भय या मांग से नहीं, बल्कि हृदय की उस बेचैनी से उठती है जो केवल अपने बांके बिहारी के सान्निध्य से शांत हो सकती है। यह पुकार बताती है कि जब मन श्याम का होता है, तब संसार का सब हँसना–बोलना भी अर्थहीन लगने लगता है।

कृष्ण से यह संवाद नित्य का है – एक भोले बाल भाव से निकली वह पुकार जो अपने स्वामी से शिकायत नहीं करती, बल्कि उन्हें प्रेमपूर्वक मनाने का आग्रह करती है। जब संसार साथ छोड़ देता है, तब वही नील वंशीधर सहारा बनते हैं। भक्ति का यह रूप प्रेम, समर्पण और पीड़ा का सम्मिश्रण है, और इसी में उसकी गहराई छिपी है। यहाँ खोज समाप्त नहीं होती, बल्कि समर्पण शुरू होता है; जहाँ "तेरे दर पे" कहने वाला भक्त स्वयं को खो देता है, वहीं उसे अपना कान्हा मिल जाता है। यही सच्ची आराधना है – जब शब्द विनती बन जाएँ और आह्वान प्रेम में घुल जाए। 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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