मूलध्यान गुरु रूप है मूल पूजा गुरु पांव भावार्थ Mooldhyan Guru Roop Hai Kabir Ke Dohe Meaning

मूलध्यान गुरु रूप है मूल पूजा गुरु पांव भावार्थ Mooldhyan Guru Roop Hai Kabir Ke Dohe Meaning

 
मूलध्यान गुरु रूप है मूल पूजा गुरु पांव भावार्थ Mooldhyan Guru Roop Hai Kabir Ke Dohe Meaning

मूलध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पांव।
मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सत भाव।। 

Mooladhyaan Guru Roop Hai, Mool Pooja Guru Paanv.
Mool Naam Guru Vachan Hai, Mool Saty Sat Bhaav


दोहे का भावार्थ :
ध्यान का मूल गुरु है और गुरु के पांवों की पूजा ही मूल पूजा है। गुरु का बताया मार्ग ही सदराह है और गुरु वचन ही सत्य है। गुरु के वचनों का मूल रूप से अनुसरण करना ही सत्य का भाव है, गुरु के वचन ही सत्य हैं इनसे अमुक होकर किसी भी मार्ग का अनुसरण करना जीवन के अमूल्य समय को व्यर्थ करना ही है।

गुरु मुरति गति चन्द्रमा , सेवक नैन चकोर।
आठ पहर निरखत रहें , गुरु मुरति की ओर।।
Guru Murati Gati Chandrama , Sevak Nain Chakor.
Aath Pahar Nirakhat Rahen , Guru Murati Kee Or.
 
दोहे का भावार्थ : गुरु चन्द्रमा के समान है जिसे आठों पहर निहारना चाहिए, उसके बताये मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। गुरु मूर्ति को आठों को पहर निहारने से भाव है की उसके द्वारा बताये गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। हर वक़्त गुरु और उसके बताये गए मार्ग के बारे में सोचना चाहिए, चिन्तन करना चाहिए फिर काल की चिंता स्वतः ही समाप्त हो जायेगी ।

कबीर गुरु की भक्ति बिन, धिक जीवन संसार।
धुंवा का सा धौरहरा, बिनसत लगे न बार।।
Kabeer Guru Kee Bhakti Bin, Dhik Jeevan Sansaar.
Dhunva Ka Sa Dhaurahara, Binasat Lage Na Baar..


दोहे का भावार्थ : गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण ना करके सांसारिक मोह माया में पड करके जीवन का अमूल्य समय गवाना मुर्खता है और यह जीवन कुए के समान है जो एक रोज ढह जाना है। भाव है की इस अमूल्य जीवन का समय व्यक्ति को ईश्वर की भक्ति और गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण करके बिताना चाहिए। जीवन सदा के लिए नहीं है एक रोज यह समाप्त हो जाना है।

प्रेम बिना जो भक्ती ही सो निज दंभ विचार।
उदर भरन के कारन , जन्म गंवाये सार।।
Prem Bina Jo Bhaktee Hee So Nij Dambh Vichaar.
Udar Bharan Ke Kaaran , Janm Ganvaaye Saar.


दोहे का भावार्थ :
बिना प्रेम और समर्पण के भक्ति पाखण्ड और दिखावा है, जिसका कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। ऐसे लोग बस अपना पेट भरने के लिए ही भक्ति का नाटक करते हैं। व्यर्थ में ही संसार में जन्म लेते हैं और गवा देते हैं। दंभ से भाव है की व्यर्थ में स्वंय पर नाज करना की मैंने भक्ति की है, जबकि ऐसी भक्ति से की लाभ नहीं होने वाला है।

भक्ति दुवारा सांकरा , राई दशवे भाय ।
मन तो मैंगल होय रहा , कैसे आवै जाय ।।
Bhakti Duvaara Saankara , Raee Dashave Bhaay .
Man To Maingal Hoy Raha , Kaise Aavai Jaay


दोहे का भावार्थ : भक्ति का मार्ग बहुत ही संकरा है, यह राई के दाने के दसवे भाग के समान है, भाव है की बहुत ही संकरा है। व्यक्ति का मन तो हाथी के समान हो रहा है, दंभ और अहंकार से भरा है इसलिए वह भक्ति के मार्ग में प्रवेश नहीं कर सकता है। भक्ति मार्ग में प्रवेश करने के लिए सबसे पहले स्वंय का अहंकार समाप्त करना होता है, उसके बाद ही आगे बढा जा सकता है।

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