भक्ति जु सिढी मुक्ति की चढ़े भक्त हरषाय भावार्थ Bhakti Ju Sidhi Mukti Ki Kabir Dohe Meaning

भक्ति जु सिढी मुक्ति की, चढ़े भक्त हरषाय हिंदी भावार्थ Bhakti Ju Sidhi Mukti Ki-Kabir Dohe Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi

 
भक्ति जु सिढी मुक्ति की चढ़े भक्त हरषाय भावार्थ Bhakti Ju Sidhi Mukti Ki Kabir Dohe Meaning

भक्ति जु सिढी मुक्ति की, चढ़े भक्त हरषाय ।
और न कोई चढ़ी सकै, निज मन समझो आय ।।

Bhakti Ju Sidhee Mukti Kee, Chadhe Bhakt Harashaay .
Aur Na Koee Chadhee Sakai, Nij Man Samajho Aay 
 
दोहे का भावार्थ : भक्ति की सीढी को सच्चा भक्त ही चढ़ सकता है क्योंकि यह मुक्ति का द्वार दिखाने वाली होती है, यह मन में निश्चित कर लो की भक्त के अलावा अन्य कोई सीढ़ी नहीं चढ़ सकता है। भक्ति मार्ग पर बढ़ने के लिए अभिमान का त्याग करना पड़ता है इसलिए यह कोई आसान कार्य भी नहीं है।

भक्ति भेष बहु अन्तरा , जैसे धरनि आकाश ।
भक्त लीन गुरु चरण में, भेष जगत की आश ।।
Bhakti Bhesh Bahu Antara , Jaise Dharani Aakaash .
Bhakt Leen Guru Charan Mein, Bhesh Jagat Kee Aash 
 
दोहे का भावार्थ : सच्ची भक्ति और मात्र वेश धारण कर लेना दोनों प्रथक हैं और इनमे आकाश और धरती के समान अंतर है। जो सच्चा भक्त होता है वह गुरु के चरणों में मग्न होता है और गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण करता है जबकि छाद्मावरन धारण किये हुए को माया जनित संसार की आवश्यकता होती है।

भक्ति दुलेही गुरून की, नहिं कायर का काम ।
सीस उतारे हाथ सों, ताहि मिलै निज धाम ।।
Bhakti Dulehee Guroon Kee, Nahin Kaayar Ka Kaam .
Sees Utaare Haath Son, Taahi Milai Nij Dhaam 

दोहे का भावार्थ : भक्ति करना कोई आसान कार्य नहीं है, अपना शीश (अहम) को समाप्त करके ही भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है । जब तक व्यक्ति का अहम् शांत नहीं होता है वह पूर्ण रूप से भक्ति नहीं कर सकता है।

भक्ति पदारथ तब मिले , जब गुरु होय सहाय ।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय ।।
Bhakti Padaarath Tab Mile , Jab Guru Hoy Sahaay .
Prem Preeti Kee Bhakti Jo, Pooran Bhaag Milaay

दोहे का भावार्थ : गुरु की शरण के बगैर ईश्वर और भक्ति को प्राप्त करना संभव नहीं है और जब गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी शरण से ही प्रेम / भक्ति को प्राप्त करना संभव हो पाता है। भक्ति अनमोल है और बहुत जतन से प्राप्त की जा सकती है, बगैर गुरु की शरण के यह संभव नहीं है। वस्तुतः जीव माया के जाल में बंधा रह जाता है और इसे गुरु ही समाप्त कर सकता है।

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