गोर गोर गोमती इसर पूजे पार्वती
गोर गोर गोमती इसर पूजे पार्वती
गणगौर का पर्व बहुत ही हर्ष के साथ मनाया जाता है और यह पर्व हर वर्ष चैत्र माह में आता है| इस पर्व को मुख्यतया अविवाहित लडकियां इसर जी पार्वती जी ( गौरी माता ) का व्रत रखकर पूजा करती हैं। इनकी मूर्तियाँ मिट्टी से बनाकर इनकी पूजा इस रोजद्रूवा की भी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि गणगौर के रोज भगवान शिव ने पार्वतीजी को सौभाग्य और सम्पन्नता का वरदान दिया था। इसी रोज पार्वतीजी ने पूरे स्त्री-समाज को सौभाग्य और कल्याण का भी वरदान दिया था। गणगौर का पर्व मुख्यतया राजस्थान और गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तरी भारत में स्त्रियों के द्वारा पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। गणगौर की पूजा कुँवारी और विवाहिता स्त्रियों के द्वारा की जाती है। विवाहित स्त्रियां श्रृंगार करके व्रत रखती हैं और अपने पति की लम्बी आयु की प्राथना करती हैं।
म्हे पूजा आला गिला, गोर का सोना का टिका
म्हारे है कंकू का टिका
टिका दे टमका दे ,राजा रानी बरत करे
करता करता आस आयो, मास आयो
छटो छ: मास आयो, खेरो खंडो लाडू लायो
लाडू ले बीरा ने दियो , बीरा ले भावज ने दियो
भावज ले गटकायगी, चुन्दडी ओढायगी
चुन्दडी म्हारी हरी भरी, शेर सोन्या जड़ी
शेर मोतिया जड़ी, ओल झोल गेहूं सात
गोर बसे फुला के पास, म्हे बसा बाणया क पास
कीड़ी कीड़ी लो, कीड़ी थारी जात है
जात है गुजरात है, गुजरात का बाणया खाटा खूटी ताणया
गिण मिण सोला, सात कचोला इसर गोरा
गेहूं ग्यारा, म्हारो भाई ऐमल्यो खेमल्यो, लाडू ल्यो , पेडा ल्यो
जोड़ जवार ल्यो, हरी हरी दुब ल्यो, गोर माता पूज ल्यो,
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Author - Saroj Jangir
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