गोविन्द गोपाल हरे भजन लिरिक्स
हे गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
हे गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
बृज मण्डल का ही सितारा नहीं,
जग त्रितल का उजिराया है तू,
मनमोहक का दया हित तुझमें,
सबके मन को अति प्यारा है तू,
ये जीवन क्यों ना न्यौछावर हो,
जब जीवन का ही सहारा है तू,
किस भाँति बिसारूँ तुम्हें,
मनमोहन प्राण हमारा है तूँ,
हे परम स्नेही ये अति सुखदायी,
हे आत्र त्राण परायणा,
रूठे चाहे राजा वा से कछु नहीं काजा,
एक तू ही महाराजा और कौन को सराहिए ,
रूठे चाहे भाई वा ते कछु ना भलाई,
एक तू ही है सहाई और कौन पास जाइए ,
रूठ जाय चाहे शत्रु और मित्र आठों याम,
एक तेरे चरनन के नेह को निभाइए ,
क्योंकी जग सारा झूठा एक तू ही है अनूठा,
रूठ जाय चाहे सारा जग तू ना रूठन चाहिए,
हे गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
ए मेरे श्याम सुन्दर प्रीतम,
मुझको तेरे सिवा कुछ भी नहीं चाहिए,
दूर कर दे साँवल तेरे प्यार से,
ऐसी शान ओ शौकत नहीं चाहिए,
तेरे दर की मिले, जो गुलामी मुझे,
तेरे दर की मिले, जो गुलामी मुझे,
दो जहाँ की हुकूमत नहीं चाहिए,
तेरे गम से बड़ी है मुहब्बत मुझे,
मुझको मुसर्रत (सन्मान ) नहीं चाहिए,
ए कन्हैया मैं वो बीमार हूँ,
जिसको दुनियाँ की राहत नहीं चाहिए,
मेरी श्याम फ़कीरी सलामत रहे,
मेरे दिल में तुम्हारी मोहब्बत रहे,
मेरे दिल पे तेरी बादशाहत रहे,
तेरी करूणा पे मुझको बड़ा नाज है,
मैं हूँ चाकर तू मेरा महाराज है,
मुझको तेरे सिवा कुछ भी नहीं चाहिए,
ऐ मेरे प्राण प्रीतम साँवल,
मुझको तेरे सिवा कुछ भी नहीं चाहिए,
हे गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
हे गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
गोविन्द, गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे,
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