पावन आत्मा से परमात्मा का भजन
पावन आत्मा से परमात्मा का भजन
पावन आत्मा से परमात्मा का, सुमिरन करता जा,
जोड़ जोड़ अहंकार की पूँजी , अपने से ही दूर हुआ,
घट के प्रभु को त्याग के क्यों तू, मद में ऐसा चूर हुआ,
पीकर राम नाम का रस मद प्याला, भंजन करता जा,
पावन आत्मा से,
नर में ही नारायण बसते , इनकी सदा ही सेवा करना,
कटु वचन मत कहना किसी को , कटु वचन का घाव न देना,
धीरज धरम को अपना ले और मन को , चन्दन करता जा,
पावन आत्मा से,
जो विश्वास की डगर पे चलते , उमको सदा ही राम मिले,
साँची कहे बमनावत जो कोई , मिथ्या मने हाथ मले,
आत्मा दर्पण में परमात्मा का , दर्शन करता जा,
पावन आत्मा से,
जोड़ जोड़ अहंकार की पूँजी , अपने से ही दूर हुआ,
घट के प्रभु को त्याग के क्यों तू, मद में ऐसा चूर हुआ,
पीकर राम नाम का रस मद प्याला, भंजन करता जा,
पावन आत्मा से,
नर में ही नारायण बसते , इनकी सदा ही सेवा करना,
कटु वचन मत कहना किसी को , कटु वचन का घाव न देना,
धीरज धरम को अपना ले और मन को , चन्दन करता जा,
पावन आत्मा से,
जो विश्वास की डगर पे चलते , उमको सदा ही राम मिले,
साँची कहे बमनावत जो कोई , मिथ्या मने हाथ मले,
आत्मा दर्पण में परमात्मा का , दर्शन करता जा,
पावन आत्मा से,
Pawan Atma - Nigun Bhajan II Ajay Kapil II Kapil Bhajan Mala
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Bhajan - Pawan Atma (Nigun Bhajan)
Composition - Ajay Kapil
Raag - Bhupali
Singer and Music- Ajay Kapil
Lyricist- Kishan Bamnawat
Composition - Ajay Kapil
Raag - Bhupali
Singer and Music- Ajay Kapil
Lyricist- Kishan Bamnawat
यह रचना आत्मा और परमात्मा के अटूट संबंध को गहन भक्ति भाव से व्यक्त करती है, जो साधक को प्रभु के स्मरण और सच्चे कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यह सिखाती है कि अहंकार और संसार के मद को त्यागकर, राम नाम के रस में डूबकर और नर में बसे नारायण की सेवा करके साधक अपनी आत्मा को पवित्र बना सकता है। यह भजन जीवन के सत्य मार्ग, धैर्य, धर्म और सच्चाई को अपनाने का संदेश देता है।
आत्मा का सच्चा स्वरूप परमात्मा से जुड़ा है, और उसका स्मरण ही जीवन को मुक्ति की ओर ले जाता है। अहंकार की पूँजी जोड़ने वाला व्यक्ति स्वयं से ही दूर हो जाता है, परंतु जो राम नाम का रस पीकर भक्ति में लीन रहता है, वह अपने हृदय के भंजनों को तोड़ता है और परम शांति पाता है। नर में बसे नारायण की सेवा करना और कटु वचन से बचकर धैर्य व धर्म को अपनाना आत्मा को चंदन-सा शीतल और सुगंधित बनाता है। साधक को चाहिए कि वह हर प्राणी में प्रभु का अंश देखे और उनकी सेवा में अपने जीवन को समर्पित करे, क्योंकि यही भक्ति का सच्चा मार्ग है।
विश्वास की डगर पर चलने वाला साधक सदा प्रभु राम को अपने निकट पाता है, जबकि मिथ्या और छल से भरे लोग अंत में केवल पछतावे के साथ रह जाते हैं। आत्मा को दर्पण बनाकर उसमें परमात्मा के दर्शन करने वाला साधक ही सच्चा सुख और मुक्ति प्राप्त करता है। यह मार्ग सिखाता है कि साँची भक्ति और सत्य के पथ पर चलकर साधक अपने हृदय में प्रभु का प्रकाश देख सकता है।
आत्मा का सच्चा स्वरूप परमात्मा से जुड़ा है, और उसका स्मरण ही जीवन को मुक्ति की ओर ले जाता है। अहंकार की पूँजी जोड़ने वाला व्यक्ति स्वयं से ही दूर हो जाता है, परंतु जो राम नाम का रस पीकर भक्ति में लीन रहता है, वह अपने हृदय के भंजनों को तोड़ता है और परम शांति पाता है। नर में बसे नारायण की सेवा करना और कटु वचन से बचकर धैर्य व धर्म को अपनाना आत्मा को चंदन-सा शीतल और सुगंधित बनाता है। साधक को चाहिए कि वह हर प्राणी में प्रभु का अंश देखे और उनकी सेवा में अपने जीवन को समर्पित करे, क्योंकि यही भक्ति का सच्चा मार्ग है।
विश्वास की डगर पर चलने वाला साधक सदा प्रभु राम को अपने निकट पाता है, जबकि मिथ्या और छल से भरे लोग अंत में केवल पछतावे के साथ रह जाते हैं। आत्मा को दर्पण बनाकर उसमें परमात्मा के दर्शन करने वाला साधक ही सच्चा सुख और मुक्ति प्राप्त करता है। यह मार्ग सिखाता है कि साँची भक्ति और सत्य के पथ पर चलकर साधक अपने हृदय में प्रभु का प्रकाश देख सकता है।
कबीर साहेब के अनुसार, आत्मा में ही परमात्मा का वास है। वे कहते हैं कि परमात्मा को बाहर मंदिरों, तीर्थों या मूर्तियों में खोजना व्यर्थ है। जिस प्रकार कस्तूरी मृग की नाभि में होती है, फिर भी वह उसकी सुगंध को जंगल भर में खोजता फिरता है, उसी प्रकार परमात्मा हमारे भीतर ही वास करते हैं। कबीर का यह दर्शन इस बात पर जोर देता है कि परमात्मा कोई दूर की शक्ति नहीं है, बल्कि वह हमारे अस्तित्व का ही हिस्सा है। सच्ची भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमें अपनी आत्मा के भीतर झाँकना चाहिए। अपने अंतर्मन को शुद्ध करके और अहंकार को त्यागकर ही हम उस परम शक्ति का अनुभव कर सकते हैं।
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Author - Saroj Jangir
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