श्रद्धा भक्ति हो गर मन में बोलते हैं पत्थर भी
श्रद्धा भक्ति हो गर मन में , बोलते हैं पत्थर भी,
जिन पर लिख दें नाम राम का , तैरते हैं पत्थर भी,
गौतम ऋषि के श्राप से देवी अहिल्या पथराई,
मुक्त श्राप कर दीनी , ऐसी किरपा करी रघुराई,
बनकर सुन्दर नारी देखो , पकडे चरण पत्थर भी,
हरिण कश्यप दानव जब खुद बन बैठा भगवान,
तब प्रहलाद के रूप में जन्में , परम भक्त संतान,
सुनकर विनती भक्त की भगवन , चीरते हैं पत्थर भी,
एक ब्राह्मण ने धन्ना भगत को ऐसा मुर्ख बनाया,
सिल का बटना देकर उसको सालिगराम बताया,
कहे बमनावत भोग लगाये , भक्ति से पत्थर भी,
श्रद्धा भक्ति हो गर मन में , बोलते हैं पत्थर भी,
जिन पर लिख दें नाम राम का , तैरते हैं पत्थर भी,
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Author - Saroj Jangir
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