प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो लिरिक्स Prabhu Ji More Avgun Chit Na dharo Lyrics
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
समदर्शी है प्रभु नाम तिहारो,
चाहो तो पार करो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
एक लोहा पूजा मे राखत,
एक घर बधिक परो,
सौ दुविधा पारस नहीं जानत,
कंचन करत खरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
इक नदियाँ इक नाल कहावत,
मैलो ही नीर भरो,
जब मिली दोनों एक बरन भए,
तन माया जो ब्रह्म कहावत,
सूरसू मिल बिधारो,
के इनको नीरधार कीजिये,
कई पण जात तारो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
समदर्शी है प्रभु नाम तिहारो,
चाहो तो पार करो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
समदर्शी है प्रभु नाम तिहारो,
चाहो तो पार करो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
एक लोहा पूजा मे राखत,
एक घर बधिक परो,
सौ दुविधा पारस नहीं जानत,
कंचन करत खरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
इक नदियाँ इक नाल कहावत,
मैलो ही नीर भरो,
जब मिली दोनों एक बरन भए,
तन माया जो ब्रह्म कहावत,
सूरसू मिल बिधारो,
के इनको नीरधार कीजिये,
कई पण जात तारो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
समदर्शी है प्रभु नाम तिहारो,
चाहो तो पार करो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
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प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो , Prabhu ji mere avgun chit na dharo bhajan, Song
Meaning:
हे प्रभु मेरे अवगुणो को चित्त में न धरिये,
सभी प्राणी आपके लिए एक है, मुझे अपनी शरण में लीजिये,
एक लोहा पूजा थाल में भी होता और एक निर्दयी कसाई के हाथ में,
किन्तु पारस बिना भेद भाव के दोनों को ही खरा सोना में बदल देता है,
नदी नाले दोनों में पानी होता है किन्तु जब दोनों मिले तो सागर का रूप ले लेते है,
एक आत्मा एक परमात्मा, सुर दासजी श्याम ( भगवान्) से झगड़ते है ,
इस बार मुझे मायावी संसार से बचा लीजिये, मै अकेला इसे पार नहीं कर सकता.
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हे प्रभु मेरे अवगुणो को चित्त में न धरिये,
सभी प्राणी आपके लिए एक है, मुझे अपनी शरण में लीजिये,
एक लोहा पूजा थाल में भी होता और एक निर्दयी कसाई के हाथ में,
किन्तु पारस बिना भेद भाव के दोनों को ही खरा सोना में बदल देता है,
नदी नाले दोनों में पानी होता है किन्तु जब दोनों मिले तो सागर का रूप ले लेते है,
एक आत्मा एक परमात्मा, सुर दासजी श्याम ( भगवान्) से झगड़ते है ,
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