सूरदास-प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो लिरिक्स

सूरदास-प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो Prabhu Ji More Avgun Chitt Na Dharo Bhajan

 
सूरदास-प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो लिरिक्स Prabhu Ji More Avgun Chitt Na Dharo Lyrics

प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
समदर्शी है प्रभु नाम तिहारो,
चाहो तो पार करो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
एक लोहा पूजा मे राखत,
एक घर बधिक परो,
सौ दुविधा पारस नहीं जानत,
कंचन करत खरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
इक नदियाँ इक नाल कहावत,
मैलो ही नीर भरो,
जब मिली दोनों एक बरन भए,
तन माया जो ब्रह्म कहावत,
सूरसू मिल बिधारो,
के इनको नीरधार कीजिये,
कई पण जात तारो,
 प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
समदर्शी है प्रभु नाम तिहारो,
चाहो तो पार करो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु जी मोरे अवगुण चित ना धरो,
ओरिजिनल लिरिक्स
हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ।
समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ॥
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ।
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब मिलि गए तब एक-वरन ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥
तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥ 


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प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो Prabhu ji mere avgun chit na dharo bhajan Song

एक बार स्वामी विवेकानंद खेतड़ी से जयपुर आए। खेतड़ी नरेश उन्हें विदा करने के लिए जयपुर तक साथ आए थे। वहीं संध्या के समय मनोरंजक नृत्य और गायन का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम के लिए एक ख्यात नर्तकी को आमंत्रित किया गया था। जब स्वामी जी से इस आयोजन में सम्मिलित होने का आग्रह किया गया तो उन्होंने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नृत्य-गायन में संन्यासी का उपस्थित रहना अनुचित है। 

जब नर्तकी को यह ज्ञात हुआ तो वह बहुत दुखी हो गई। उसे लगा कि क्या वह इतनी घृणा की पात्र है कि संन्यासी उसकी उपस्थिति में कुछ देर भी नहीं बैठ सकते? नर्तकी ने दर्द भरे स्वर में सूरदास का यह भक्ति गीत गाया, ‘‘प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो, समदर्शी है नाम तिहारो।’’ 

भजन के बोल जब स्वामी जी के कानों में पड़े तो वह नर्तकी की वेदना को समझ गए। बाद में उन्होंने नर्तकी से क्षमा याचना की। इस घटना के बाद से स्वामी जी की दृष्टि में समत्व भाव आ गया। उसके बाद एक बार जब किसी ने दक्षिणेश्वर तीर्थ के महोत्सव में वेश्याओं के जाने पर आपत्ति की तो स्वामी जी ने कहा, ‘‘वेश्याएं यदि दक्षिणेश्वर तीर्थ में न जा सकें तो कहां जाएंगी।
 
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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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5 टिप्पणियां

  1. 🙏🙏
  2. Bahut khub ! Is bhajanmala ko jyada se jyada protsahan dene ki kripa karen g! Prabhu ki jay ho !
  3. Pranam!
  4. Jitne bari ye ghatna sunta hu utne bari mere man me bhav a jata hai. Thanks bhother..
  5. Bahut hi sundar Bhajan hai
    Ap se anurodh hai ki Meera ji ke pad rachna bhi post kariye dhanyawad radhe radhe