ज्ञान गुदड़ी कबीर भजन
ज्ञान गुदड़ी कबीर भजन
अलख पुरुष जब किया विचारा |
लख चौरासी धागा डारा ||
पाँच तत्व से गुदरी बीना ।
तीन गुणन से ठाढ़ी कीना ||
तामें जीव ब्रह्म अरु माया ।
समरथ ऐसा खेल बनाया |
जीवहिं पाँच पचीसो लागा ।
काम क्रोध ममता मद पागा ||
काया गुदरी का विस्तारा ।
देखो सन्तों अगम सिंगारा |
चाँद सूर्य दोउ पेवन लागे ।
गुरु प्रताप से सोवत जागे ||
शब्द की सुई सुरति का धागा ।
ज्ञान टोप से सीयन लागा |
अब गुदड़ी की करु हुँसियारी ।
दाग न लागे देखु विचारी ||
सुमति की साबुन सिर्जन धोई ।
कुमति मैल को डारे खोई |
जिन गुदरी का किया विचारा ।
तिनहीं भेंटा सिर्जनहारा ||
धीरज धुनी ध्यान करू आसन ।
सत्य कोपीन सत्य सिंहासन |
युक्ति कमण्डल कर गहि लीन्हा ।
प्रेम फावड़ी मुर्शिद चीन्हा ||
सेली शील विवेक की माला ।
दया की टोपी तन धर्मशाला |
महरम तंगा मत बैशाखी ।
मृगछाला मनही की राखी ||
निश्चय धोती पवन जनेऊ ।
अजपा जपे से जाने भेऊ |
रहे निरन्तर सद्गुरु दाया ।
साधु संगति कर सब कछु पाया ||
लव कर लकुटी हृदया झोरी ।
छमा खड़ाऊँ पहिरब होरी |
मुक्ति मेखला सुकृत श्रवनी ।
प्रेम प्याला पीवै मौनी ||
उदास कूबरी कलह निवारी ।
ममता कुत्ती को ललकारी |
युक्ति जंजीर बाँधी जब लीन्हा ।
अगम अगोचर खिड़की चीन्हा ||
वैराग्य त्याग विज्ञान निधाना ।
तत्व तिलक दीन्हों निर्वाना |
गुरुगम चकमक मन्सा तूला ।
ब्रह्म अग्नि परगट करु मूला ||
संशय शोक सकल भ्रम जारा ।
पाँच पचीसो परगटे मारा |
दिल का दर्पण दुविधा खोई ।
सो वैरागी पक्का होई ||
शून्य महल में फेरी देई ।
अमृतरस की भिक्षा लेई |
दुःख सुख मेला जग के भाऊँ ।
त्रिवेणी के घाट नहाऊँ ||
तन मन सोधि रहे गलताना ।
सो लखि पावै पुरुष पुराना |
अष्ट कमल दल चक्कर शूझा ।
योगी आप आप में बूझा ||
इंगला पिंगला के घर जाई ।
सुषमन नाल रहा ठहराई |
ओहं सोहं तत्व विचारा ।
बंकनाल में किया सँभारा||
मन को मारि गगन चढ़ि जाई ।
मनसरोवर पैठि नहाई |
छुटे कसमल मिले अलेखा ।
निज नैनन साहेब को देखा ||
अहंकार अभिमान बिडारा ।
घट का चौका कर उजियारा |
चित्त कर चकमक मन्सा तूला ।
हित करू सम्पुट लखि ले मूला ||
अनहद शब्द नाम की पूजा ।
सत्पुरुष बिनु देव न दूजा ||
श्रद्धा चँवर प्रीति का धूपा ।
सत्यनाम साहेब का रूपा |
गुदरी पहिने आप अलेखा ।
जिन यह प्रगट चलाई भेखा ||
सत्य कबीर बख्श जब दीन्हा ।
सुर नर मुनि सब गुदरी लीन्हा |
ज्ञान गुदरी पढ़ै प्रभाता ।
जन्म जन्म के पातक जाता ||
ज्ञान गुदरी पढ़ मध्याना ।
सो लखि पावे पद निर्वाना |
सन्ध्या सुमिरन जो नर करई ।
जरा मरण भवसागर तरई ||
कहैं कबीर सुनो धर्मदासा ।
ज्ञान गुदरी करो प्रकाशा ॥
लख चौरासी धागा डारा ||
पाँच तत्व से गुदरी बीना ।
तीन गुणन से ठाढ़ी कीना ||
तामें जीव ब्रह्म अरु माया ।
समरथ ऐसा खेल बनाया |
जीवहिं पाँच पचीसो लागा ।
काम क्रोध ममता मद पागा ||
काया गुदरी का विस्तारा ।
देखो सन्तों अगम सिंगारा |
चाँद सूर्य दोउ पेवन लागे ।
गुरु प्रताप से सोवत जागे ||
शब्द की सुई सुरति का धागा ।
ज्ञान टोप से सीयन लागा |
अब गुदड़ी की करु हुँसियारी ।
दाग न लागे देखु विचारी ||
सुमति की साबुन सिर्जन धोई ।
कुमति मैल को डारे खोई |
जिन गुदरी का किया विचारा ।
तिनहीं भेंटा सिर्जनहारा ||
धीरज धुनी ध्यान करू आसन ।
सत्य कोपीन सत्य सिंहासन |
युक्ति कमण्डल कर गहि लीन्हा ।
प्रेम फावड़ी मुर्शिद चीन्हा ||
सेली शील विवेक की माला ।
दया की टोपी तन धर्मशाला |
महरम तंगा मत बैशाखी ।
मृगछाला मनही की राखी ||
निश्चय धोती पवन जनेऊ ।
अजपा जपे से जाने भेऊ |
रहे निरन्तर सद्गुरु दाया ।
साधु संगति कर सब कछु पाया ||
लव कर लकुटी हृदया झोरी ।
छमा खड़ाऊँ पहिरब होरी |
मुक्ति मेखला सुकृत श्रवनी ।
प्रेम प्याला पीवै मौनी ||
उदास कूबरी कलह निवारी ।
ममता कुत्ती को ललकारी |
युक्ति जंजीर बाँधी जब लीन्हा ।
अगम अगोचर खिड़की चीन्हा ||
वैराग्य त्याग विज्ञान निधाना ।
तत्व तिलक दीन्हों निर्वाना |
गुरुगम चकमक मन्सा तूला ।
ब्रह्म अग्नि परगट करु मूला ||
संशय शोक सकल भ्रम जारा ।
पाँच पचीसो परगटे मारा |
दिल का दर्पण दुविधा खोई ।
सो वैरागी पक्का होई ||
शून्य महल में फेरी देई ।
अमृतरस की भिक्षा लेई |
दुःख सुख मेला जग के भाऊँ ।
त्रिवेणी के घाट नहाऊँ ||
तन मन सोधि रहे गलताना ।
सो लखि पावै पुरुष पुराना |
अष्ट कमल दल चक्कर शूझा ।
योगी आप आप में बूझा ||
इंगला पिंगला के घर जाई ।
सुषमन नाल रहा ठहराई |
ओहं सोहं तत्व विचारा ।
बंकनाल में किया सँभारा||
मन को मारि गगन चढ़ि जाई ।
मनसरोवर पैठि नहाई |
छुटे कसमल मिले अलेखा ।
निज नैनन साहेब को देखा ||
अहंकार अभिमान बिडारा ।
घट का चौका कर उजियारा |
चित्त कर चकमक मन्सा तूला ।
हित करू सम्पुट लखि ले मूला ||
अनहद शब्द नाम की पूजा ।
सत्पुरुष बिनु देव न दूजा ||
श्रद्धा चँवर प्रीति का धूपा ।
सत्यनाम साहेब का रूपा |
गुदरी पहिने आप अलेखा ।
जिन यह प्रगट चलाई भेखा ||
सत्य कबीर बख्श जब दीन्हा ।
सुर नर मुनि सब गुदरी लीन्हा |
ज्ञान गुदरी पढ़ै प्रभाता ।
जन्म जन्म के पातक जाता ||
ज्ञान गुदरी पढ़ मध्याना ।
सो लखि पावे पद निर्वाना |
सन्ध्या सुमिरन जो नर करई ।
जरा मरण भवसागर तरई ||
कहैं कबीर सुनो धर्मदासा ।
ज्ञान गुदरी करो प्रकाशा ॥
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Lakh Chouraasi Dhaaga Daara.
Paanch Tatv Se Gudri Beena,
Teen Gun Se Thadhi Keena.
Lakh Chouraasi Dhaaga Daara.
Paanch Tatv Se Gudri Beena,
Teen Gun Se Thadhi Keena.
