गुरु भजलो रे तम भाया भजन

गुरु भजलो रे तम भाया भजन

साखी –समदर सी सतगुरू किया, और दिया अविचल ज्ञान |
जहा देखू वहा एक ही , और दूजा नही समान |
भजन –गुरु भज लो हो तम भाया ,कोई खयाली ने खयाल रचाया |
बदीगर बाग लगाया,तम देखो तमसा भाया ,गुरु आया है हो जी |

1. बीना मूल एक बरगद थाडा, पान फूल नही छाया |
म्हारा मन में ऐसी आवे , तोड़ अमर फल खाया |
गुरु आया है हो जी |

2. बीना पाल एक सर्वर भारिया, नीर नजर नही आया |
म्हारा मन में ऐसी आवे, ज्ञान का गोता खाया |
गुरु आया है हो जी |

3.बीना बस एक नटवा नाचे, अजब खेल दरसाया |
उपड़ चढ़ के मंगल गावे ,प्रेम का गीत सुनाया।
गुरु आया है हो जी |

4. नाभी कमल से ध्यान लगाया, ज्ञान गुरा से पाया |
कहे कबीर सुनो भाई साधो,गुरुजी का मंगल गया |
गुरु आया है हो जी |


गुरु भजलो रे तम भाया ।। Guru bhajalo re tam bhaya।। kabir Bhajan।। Geeta Parag ||
 
सतगुरु की भक्ति में डूबने से मन का अंधेरा छट जाता है, जैसे समंदर की गहराई में छिपा अटल ज्ञान मिलता है। चारों ओर एक ही सत्य दिखता है, दूसरा कोई नहीं। बिना जड़ के बरगद खड़ा नहीं हो सकता, न ही पत्ते-फूल बिना छाया दे सकते। सतगुरु के बिना मन की उलझनें सुलझती नहीं, पर उनके मार्गदर्शन से अमर फल मिलता है, जैसे मन की भटकन को शांति मिल जाए।

बिना पानी के सरोवर सूखा रहता है, वैसे ही बिना गुरु के जीवन में ज्ञान की लहर नहीं उठती। सतगुरु के साथ गोता लगाओ, तो मन में ज्ञान का प्रकाश जगमगाता है। बिना नींव का नट केवल नाच दिखाता है, पर सतगुरु का खेल अनोखा है। वो प्रेम का गीत सुनाकर मन को मंगलमय कर देता है, जैसे ऊंच-नीच की राह में भी आनंद बिखर जाए।

नाभी-कमल पर ध्यान लगाकर, सतगुरु से ज्ञान पाकर, कबीर कहते हैं कि साधो, गुरु की महिमा गाओ। उनके आने से जीवन में मंगल ही मंगल होता है।
 
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