कबीर अमृतवाणी Kabir Amritvani Complete Lyrics
गुरु गोविंद दोऊ खड़े,
काके लागूं पाय,
बलिहारी गुरु आपने,
गोविन्द दियो बताय।
ऐसी वाणी बोलिये,
मन का आपा खोय,
औरन को शीतल करे,
आपहु शीतल होय।
बड़ा भया तो क्या हुआ,
जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं,
फल लागे अति दूर।
दुख में सुमिरन सब करे,
सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करे,
तो दुख काहे को होये।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,
पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का,
पढ़े सो पंडित होय।
माला फेरत जुग भया,
फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे,
मन का मनका फेर।
धीरे धीरे रे मना,
धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा,
ॠतु आए फल होय।
माटी कहे कुम्हार से,
तू क्या रोन्धे मोहे,
एक दिन ऐसा आयेगा,
मैं रोधुंगी तोहे।
बुरा जो देखन मैं चला,
बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना,
मुझसे बुरा न कोय।
काल करे सो आज कर,
आज करे सो अब,
पल में परलय होयेगी,
बहुरि करेगा कब।
आछे दिन पाछे गए,
हरि से किया न हेत,
अब पछताए होत क्या,
चिड़िया चुग गयी खेत।
कबीरा जब हम पैदा हुए,
जग हंसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो,
हम हंसे जग रोये।
कबीर अमृतवाणी | Kabir Amritwani | Kabirdas Dohe | Amrita Chaturvedi
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