ज्ञान की जड़िया दई मेरे सतगुरु ने
ज्ञान की जड़िया दई मेरे सतगुरु ने
गुरु ने ज्ञान की जड़ी (जड़) दी है जो बहुत ही उपयोगी है। वह साधक को बहुत ही अधिक प्रिय है मानों वह अमृत रस से भरी हुई हो। इस जड़ी को मैंने अपने काया की नगरी के अंदर गुप्त रूप से हृदय में रख छोड़ी है। इस जड़ी बूटी की विशेषता है की मोह माया, विषय वासना रूपी नाग/नागिनी इसे सूंघते ही मर जाते हैं, समाप्त हो जाते हैं। काल सभी को खा जाता है, यही इस संसार का नियम है लेकिन यह काल भी मेरे सतगुरु को देख कर डर जाता है। यह संसार कागज़ की पुड़िया है, माया जनित है, जो स्थाई नहीं है। गुरु के ज्ञान को अपनाकर हमें जीवन की मुक्ति प्राप्त करनी है। -सतगुरु साहेब।
ज्ञान की जड़ी /ज्ञान की जड़िया
जो गुरु बसै बनारसी शीष समुन्दर तीर,
ज्यों ज्यों गुण उपजे, तो निर्मल होत शरीर।
गुरु की वाणी अटपटी, झटपट लिखी न जाय,
जाे जन जटपट लिखी लहे, वा की खटपट ही मिट जाय।
ज्ञान की जड़िया दई मेरे सतगुरु ने,
ज्ञान की जड़िया दई,
वा (वो) जड़िया तो म्हाने लागे प्यारी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
काया नगर माहीं, घर एक बंगलो रे,
तां बीच गुप्त धरी,
वा झड़िया तो घणी लागे प्यारी,
वा झड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
पाँच नाग और पच्चीस नागिनी,
सूंघत तुरत मरी,
पाँच नाग और पच्चीस नागिनी,
सूंघत तुरत मरी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
इन काळ ने सब जग खाया,
सतगुरु देख डरी,
इण काळ ने सब जग खाया,
सतगुरु देख डरी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
कहे कबीर सा, सुणो भाई साधो,
ले परिवार तीरी,
कहे कबीर सा, सुणो भाई साधो,
ले परिवार तीरी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
ज्ञान की जड़िया दई मेरे सतगुरु ने,
ज्ञान की जड़िया दई,
वो जड़िया तो म्हाने लागे प्यारी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
ज्यों ज्यों गुण उपजे, तो निर्मल होत शरीर।
गुरु की वाणी अटपटी, झटपट लिखी न जाय,
जाे जन जटपट लिखी लहे, वा की खटपट ही मिट जाय।
ज्ञान की जड़िया दई मेरे सतगुरु ने,
ज्ञान की जड़िया दई,
वा (वो) जड़िया तो म्हाने लागे प्यारी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
काया नगर माहीं, घर एक बंगलो रे,
तां बीच गुप्त धरी,
वा झड़िया तो घणी लागे प्यारी,
वा झड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
पाँच नाग और पच्चीस नागिनी,
सूंघत तुरत मरी,
पाँच नाग और पच्चीस नागिनी,
सूंघत तुरत मरी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
इन काळ ने सब जग खाया,
सतगुरु देख डरी,
इण काळ ने सब जग खाया,
सतगुरु देख डरी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
कहे कबीर सा, सुणो भाई साधो,
ले परिवार तीरी,
कहे कबीर सा, सुणो भाई साधो,
ले परिवार तीरी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
ज्ञान की जड़िया दई मेरे सतगुरु ने,
ज्ञान की जड़िया दई,
वो जड़िया तो म्हाने लागे प्यारी,
वा जड़िया तो ऐसी लागे प्यारी,
अमृत रस से भरी,
गुरां जी ने दीनी दिनी ज्ञान की जड़ी,
ज्ञान की जड़िया
साखी—गुरु बसे बनारसी,और सीस समंदर तीर,
जो-जो गुरु गुण ऊप्जे,तो निर्मल होट शरीर।।
गुरु की बानी अटपटी ,और झटपट लखी ना जाए ,
जो जन झटपट लखी लहे, वाकी खटपत ही मिट जाए।।
भजन - ज्ञान की जड़ियाँ दई मेरे सतगुरू ने ज्ञान की जड़ियाँ दई ।
वा जड़ियाँ तो हमने लागे , जो प्यारी अमृत रस से भरी॥टेका ।।
1. काया नगर माही घर एक बंगलो ,
ता बिच गुपत धरी ॥
ज्ञान जड़िया...
2. पाँच नाग और पच्चीस नागिनी ,
सूंघत तुरत मरी ॥
ज्ञान जड़िया...
3 . इणी काली ने भाई सब जग खाया ,
सतगुरू देख डरी ॥
ज्ञान जड़िया...
4. कहै कबीर सा सुनो भई साधौ ,
ले परिवार तरी ॥
ज्ञान जड़िया....
साखी—गुरु बसे बनारसी,और सीस समंदर तीर,
जो-जो गुरु गुण ऊप्जे,तो निर्मल होट शरीर।।
गुरु की बानी अटपटी ,और झटपट लखी ना जाए ,
जो जन झटपट लखी लहे, वाकी खटपत ही मिट जाए।।
भजन - ज्ञान की जड़ियाँ दई मेरे सतगुरू ने ज्ञान की जड़ियाँ दई ।
वा जड़ियाँ तो हमने लागे , जो प्यारी अमृत रस से भरी॥टेका ।।
1. काया नगर माही घर एक बंगलो ,
ता बिच गुपत धरी ॥
ज्ञान जड़िया...
2. पाँच नाग और पच्चीस नागिनी ,
सूंघत तुरत मरी ॥
ज्ञान जड़िया...
3 . इणी काली ने भाई सब जग खाया ,
सतगुरू देख डरी ॥
ज्ञान जड़िया...
4. कहै कबीर सा सुनो भई साधौ ,
ले परिवार तरी ॥
ज्ञान जड़िया....
ज्ञान की जड़िया ।। Gyan ki Jadiya ।। कबीर भजन ।। Kabir Bhajan
Jo Guru Basai Banaarasee Sheesh Samundar Teer,
Jyon Jyon Gun Upaje, To Nirmal Hot Shareer.
Guru Kee Vaanee Atapatee, Jhatapat Likhee Na Jaay,
Jaae Jan Jatapat Likhee Lahe, Va Kee Khatapat Hee Mit Jaay.
Gyaan Kee Jadiya Daee Mere Sataguru Ne,
Gyaan Kee Jadiya Daee,
Jyon Jyon Gun Upaje, To Nirmal Hot Shareer.
Guru Kee Vaanee Atapatee, Jhatapat Likhee Na Jaay,
Jaae Jan Jatapat Likhee Lahe, Va Kee Khatapat Hee Mit Jaay.
Gyaan Kee Jadiya Daee Mere Sataguru Ne,
Gyaan Kee Jadiya Daee,
Bhajan by : Sadguru Kabir
Singer and Tambur : Padmashri Prahlad Singh Tipanya
Audio and Video Edited By : Mayank Tipaniya
बनारस में बसे सतगुरु, जैसे समंदर किनारे सिर झुकाए खड़े हों, उनके गुणों को अपनाने से मन और शरीर पवित्र हो जाते हैं। उनकी वाणी गहरी और अनोखी है, उसे जल्दी समझना आसान नहीं। लेकिन जो इसे दिल से ग्रहण कर ले, उसकी सारी उलझनें मिट जाती हैं। सतगुरु ने ज्ञान की ऐसी जड़ दी, जो अमृत से भरी है। यह जड़ मन को इतनी प्यारी लगती है कि जैसे हर बूंद में सत्य का रस घुला हो। इस शरीर-नगर में एक गुप्त बंगला है, जहां यह जड़ छिपी है। इसे पकड़ लो, तो जीवन का हर कोना रोशन हो जाता है।
पांच इंद्रियां और पच्चीस विकारों की नागिनियां इस ज्ञान की सुगंध से तुरंत मर जाती हैं। यह जड़ इतनी शक्तिशाली है कि समय का काला साया, जो सारे जग को निगल जाता है, सतगुरु की कृपा से डरकर भाग जाता है। कबीर कहते हैं, साधो, सुनो! इस ज्ञान की जड़ को अपनाओ, तो सारा परिवार, सारा संसार तिर जाता है। यह अमृत-रस जीवन को सत्य और प्रेम से भर देता है।
पांच इंद्रियां और पच्चीस विकारों की नागिनियां इस ज्ञान की सुगंध से तुरंत मर जाती हैं। यह जड़ इतनी शक्तिशाली है कि समय का काला साया, जो सारे जग को निगल जाता है, सतगुरु की कृपा से डरकर भाग जाता है। कबीर कहते हैं, साधो, सुनो! इस ज्ञान की जड़ को अपनाओ, तो सारा परिवार, सारा संसार तिर जाता है। यह अमृत-रस जीवन को सत्य और प्रेम से भर देता है।
