जयोस्तुते श्रीमहन्मंगले लिरिक्स Jayostule Shree Mahanmangale Lyrics

जयोस्तुते श्रीमहन्मंगले लिरिक्स Jayostule Shree Mahanmangale Lyrics


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जयोस्तुते श्रीमहामंगले कविता महान स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर जी के द्वारा रचित है। इस कविता में सावरकर स्वतंत्रता को देवी कहकर उसकी की प्रशंसा करते हैं। सावरकर ने देवी का आशीर्वाद मांगा है और जल्द से जल्द विजय प्राप्त होने का आशीष माँगा है। सावरकर ने सवंत्रता को राष्ट्र की चेतना के रूप में संदर्भित किया है।
हे स्वतंत्रता की देवी आप महान हैं और आप ही हमें गुलामी के अंधेरों से मुक्ति दिला सकती हैं। आप सूर्य के मूलाधार हैं जो ग्रहण को दूर करेंगे। आप ही हमें आजादी देंगे। आजादी की ख़ातिर अपनी जान कुर्बान करने वालों को आशीर्वाद दीजिए। सावरकर कहते हैं की हे स्वतंत्रता की यह देवी आपकी प्रशंसा होनी चाहिए।
जयोस्तुते श्रीमहन्मंगले शिवास्पदे शुभदे
स्वतंत्रते भगवती त्वामहं यशोयुतां वंदे ॥धृ.॥

राष्ट्राचे चैतन्य मूर्त तू नीती-संपदांची
स्वतंत्रते भगवती श्रीमती राज्ञी तू त्यांची
परवशतेच्या नभात तूची आकाशी होसी
स्वतंत्रते भगवती चांदणी चमचम लखलखसी
वंदे त्वा महं यशोयुतां वंदे ॥

गालावरच्या कुसुमी किंवा कुसुमांच्या गाली
स्वतंत्रते भगवती। तूच जी विलसतसे लाली
तूं सुर्याचे तेज उदधिचे गांभीर्यहि तूंची
स्वतंत्रते भगवती। अन्यथा ग्रहण नष्ट तेंची॥
वंदे त्वामहं यशोयुतां वंदे

मोक्ष-मुक्ति ही तुझीच रूपे तुलाच वेदांती
स्वतंत्रते भगवती योगिजन परब्रम्ह वदती
जे जे उत्तम उदात्त उन्नत महन्मधुर ते ते
स्वतंत्रते भगवती सर्व तव सहचारी होते
वंदे त्वामहं यशोयुतां वंदे

हे अधम-रक्तरंजिते, सुजन पूजिते, श्रीस्वतंत्रते
तुजसाठि मरण ते जनन, तुजवीण जनन ते मरण
तुज सकल चराचर शरण, चराचर शरण, श्रीस्वतंत्रते
वंदे त्वामहं यशोयुतां वंदे

जयोsस्तु ते श्रीमहन्मंगले - संस्कृतानुवाद
जयोsस्तु ते श्रीमहन्मंगले शिवास्पदे शुभदे।
स्वतन्त्रते भगवति! त्वामहं यशोयुतां वन्दे ॥धृ॥
राष्ट्रस्य चैतन्य मूर्तिस्त्वं नीति: सम्पदां च ।
स्वतन्त्रते भगवति! श्रीमती राज्ञी त्वं तासाम् ॥
परवशताया: नभसि त्वं हि आकाशे निवसन्ती।
स्वतन्त्रते भगवति। चन्द्रिका नितरां प्रभासि ॥१॥
कपोलोपरि कुसुमीयो वा, कुसुम-कपोले वा ।
स्वतन्त्रते भगवति! त्वं हि य: विलसति स: रक्तिमा ।
त्वं सूर्यस्य तेज:, वारिधे: गाम्भीर्यमपि त्वम् ।
स्वतन्त्रते भगवति! अन्यथा ग्रहणबाधितौ तौ ॥२॥
मोक्ष: मुक्तिश्च तवैव रूपे,त्वामेव वेदान्ते ।
स्वतन्त्रते भगवति! योगिन: परब्रह्म वदन्ति ॥
स्वतन्त्रते भगवति सर्वं तव सहचारि आसीत् ॥३॥
हे अधमरक्तरंजिते, सुजनपूजिते ।
श्री-स्वतन्त्रते श्री-स्वतन्त्रते श्री-स्वतन्त्रते ।
त्वदर्थं मरणं जननम् त्वां विना हि जननं मरणम् ।
त्वां सकल-चराचरं शरणम् , चराचरं शरणम् ।
श्री-स्वतन्त्रते श्री-स्वतन्त्रते श्री-स्वतन्त्रते ।
जयोsस्तु ते……


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