माया महा ठगनी हम जानी हिंदी मीनिंग Maaya Maha Thagini Hum Jaani Lyrics

माया महा ठगनी हम जानी लिरिक्स हिंदी मीनिंग Maaya Maha Thagini Hum Jaani Lyrics Hindi Meaning

हिंदी मीनिंग (कबीर के पद ) Hindi Meaning Kabir Ke Pad : कबीर साहेब की वाणी है की "माया"महाठगिनी है। साहेब ने अनेकों स्थान पर माया के सबंध में जो वाणी दी है उसके अनुसार माया ना तो सत्य है और नाहीं असत्य ही। माया के अधीन समस्त जगत है। समस्त ब्रह्माण्ड में माया व्याप्त है। माया स्थिर नहीं है और नित्य अपना स्वरुप बदलती रहती है। 
माया विभिन्न रूपों को धारण करके जीव को ठगती चली आ रही है और वर्तमान में भी माया जीव को ठग रही है। रजोगुन, सतोगुन और तमोगुन तीन प्रकार के त्रिगुण रूपी जाल (फांस) लेकर माया विचरण करती रहती है। माया स्वंय में मृदुभाषी होती है। 
 
माया महा ठगनी हम जानी लिरिक्स हिंदी मीनिंग Maaya Maha Thagini Hum Jaani Lyrics Hindi Meaning

यह माया ही है जो केशव के कमला का रूप धारण करके बैठी है और शिव के भवानी का रूप धारण करके बैठी है। पुजारी के पास माया मूर्ति के रूप में है और तीरथ (गंगा, गया) आदि में यह जल के रूप में है। योगी के पास माया योगिन और राजा के पास रानी के रूप में स्थापित है। माया ही किसी के पास हीरे के रूप में है और किसी के पास फूटी कौड़ी के रूप में है। भक्तो के माया भक्तिन रूप में और ब्रह्मा के ब्रह्माणी के रूप में विराजमान है। 

ऐसे में माया के विषय में कबीर साहेब वाणी देते हैं की माया की कहानी अनंत और अकथनीय है।

माया महा ठगनी हम जानी लिरिक्स

माया महा ठगनी हम जानी,
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी,
केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी,
पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी,
योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी,
काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी,
भगतन की भगतिन वे बैठी ब्रह्मा के ब्रह्माणी,
कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।
Or
माया महा ठगनी हम जानी।
तिरगुन फाँसि लिये कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।
केसव के कमला होइ बैठी, सिव के भवन भवानी।
पंडा के मूरत होइ बैठी तीरथहू में पानी।
जोगी के जोगिन होइ बैठी, काहू के कौड़ी कानी। 
काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी,
भक्तन के भक्तिन होइ बैठी, ब्रह्मा के ब्रह्मानी।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, यह सब अकथ कहानी॥  
माया महा ठगनी हम जानी शब्दार्थ Word Meaning of Maya Maha Thagini
माया-दौलत, भ्रम, इंद्रजाल; जादू
महा ठगनी- छल विद्या करने वाली, छलने वाली।
हम जानी- हमने जान लिया है।
तिरगुन - सत, रज और तम (त्रिगुण). 
फाँसि लिये - अपने जाल में फँसा लिए हैं, जाल लेकर घूमती है ।
बोलै मधुरी बानी- माया मृदु भाषिणी होती है।
केसव के कमला होइ बैठी- केशव के लक्ष्मी जी का रूप धारण करके बैठी हैं।
सिव के भवन भवानी- शिव के माता भवानी के रूप में माया विराजित हैं।
पंडा के मूरत होइ बैठी - कर्मकांड करने वाले पंडा के यह मूर्ति रूप में है।
तीरथहू में पानी- तीरथ आदि में पानी (नदी/सरोवर) के रूप में माया ही है।
जोगी के जोगिन होइ बैठी- जोगी के माया जोगी बन कर बैठी है।
काहू के कौड़ी कानी- किसी के कौड़ी बन कर बैठी है।
भक्तन के भक्तिन होइ बैठी- भक्तों के भक्तिन रूप में बैठी है।
ब्रह्मा के ब्रह्मानी- ब्रह्मा के ब्रह्माणी रूप में माया बैठी है।
यह सब अकथ कहानी-यह एक अकथनीय कहानी है। 

Maya Mahathagani - Kumar Gandharva Kabir Bhajan

माया महा ठगनी हम जानी।।
maaya maha thaganee ham jaanee ||
कबीर साहेब माया के विषय में कहते हैं की माया बहुत बड़ी ठगिनी (ठगने वाली) है, मैंने इस तथ्य को समझ लिया।  I Have Come to Know the Maya to be a Great Thug

तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी।।
tiragun phaans lie kar dole bole madhure baanee ||

माया सत, रज, तम त्रिगुणों का जाल अपने साथ लेकर घूमती है और जीवों को अपना शिकार बनाती है । Her Hands Sway Holding a Web-like Trap, she speaks in a sweet voice

केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।।
kesav ke kamala ve baithee shiv ke bhavan bhavaanee ||

केशव के लक्ष्मी होकर बैठी है और शिव के घर भवानी (पार्वती) होकर बैठी है। For Kesava, the Sustainer, she is seated as the embodiment of abundance for Shiva, the God of dissolution, she is the empress of the worlds

पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।।
panda ke moorat ve baitheen teerath mein bhee paanee ||

माया पंडित के यहाँ मूर्ति होकर बैठी है, तीथों में पानी के रूप में स्थित है (गंगा और गया आदि तीर्थ जहाँ पर पानी को ही पवित्र माना गया है ) For the Priest she is seated as the Idol of worship and in places of pilgrimage she manifests as the holy water

केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी।।
kesav ke kamala ve baithee shiv ke bhavan bhavaanee ||

माया केशव के लक्ष्मी होकर बैठी है और शिव के घर भवानी (पार्वती) होकर बैठी है। For Kesava, the Sustainer, She is seated as the embodiment of abundance for Shiva, the God of dissolution, she is the empress of the worlds

पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी।।
panda ke moorat ve baitheen teerath mein bhee paanee ||

पंडा के यहाँ मूर्ति होकर बैठी है, तीथों में पानी के रूप में स्थित है। For the Priest she is seated as the Idol of worship and in places of pilgrimage she manifests as the holy water

योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी।।
yogee ke yogan ve baithee raaja ke ghar raanee ||

माया ही योगी के यहाँ योगिनी होकर बैठी है और राजा के यहाँ रानी बन कर बैठी है। For Yogis she is seated as the spiritual partner In the King's palace she is the Queen

काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी।।
kaahoo ke heera ve baithee kaahoo ke kaudee kaanee ||

माया किसी के यहाँ हीरा होकर बैठी है और किसी के यहाँ फूटी कौड़ी के रूप में बैठी है। For some she is seated as a priceless diamond for some she is a mere penny

भगतन की भगतिन वे बैठी बृह्मा के बृह्माणी।।
bhagatan kee bhagatin ve baithee brhma ke brhmaanee||

माया भक्तों के यहाँ भक्तिन होकर बैठी है बृह्मा के यहाँ बृह्माणी। For devotees she is seated in the object of devotion for brahma she is His consort

कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।।
kahe kabeer suno bhee saadho
yah sab akath kahaanee||

कबीर कहते हैं कि माया की कहानी अकथनीय है। Says Kabir Listen oh practicing aspirant all this is an untold story
उल्लेखनीय है की इस पद में श्लेष अलंकार का उपयोग सुंदरता के साथ हुआ है। कबीर साहेब की वाणी में "माया" को महाठगिनी के रूप में दर्शाया गया है। वे बताते हैं कि माया न तो सत्य है और न असत्य, बल्कि यह एक ऐसी शक्ति है जिसके अधीन समस्त जगत और ब्रह्माण्ड बंधा हुआ है। माया का स्वरूप स्थिर नहीं है, बल्कि यह निरंतर बदलता रहता है। इसके विभिन्न रूपों में यह जीवों को ठगती रहती है, और आज भी जीवों को भ्रमित कर रही है। कबीर साहेब के अनुसार, माया रजोगुण, सतोगुण और तमोगुण के त्रिगुण रूपी जाल में विचरण करती है।

माया की विशेषता यह है कि यह मृदुभाषी होती है, यानी इसका बाहरी स्वरूप बहुत आकर्षक और मोहक होता है। कबीर साहेब का यह कहना है कि माया केशव के कमला का रूप धारण कर बैठी है और शिव के भवानी का रूप लेकर भी विराजमान है। माया पुजारी के पास मूर्ति के रूप में है, जबकि तीर्थों में जल के रूप में मिलती है। योगी के पास यह योगिन का रूप धारण करती है, और राजा के पास रानी के रूप में स्थापित होती है। माया किसी के पास हीरे के रूप में होती है और किसी के पास फूटी कौड़ी के रूप में।

भक्तों के बीच माया भक्तिन के रूप में और ब्रह्मा के पास ब्रह्माणी के रूप में विद्यमान है। इस प्रकार कबीर साहेब की वाणी में माया का एक अनंत और अकथनीय वर्णन है, जो हमें इस तथ्य से अवगत कराता है कि माया हमारे चारों ओर है और हमें इसके भ्रामक रूपों से सतर्क रहना चाहिए। कबीर साहेब की यह शिक्षाएँ हमें माया के मोह से मुक्त होकर आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती हैं।

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