हिंदी मीनिंग / हिंदी भावार्थ : कबीर साहेब ने जुलाहे के कार्य को आधार बना कर इसके सादृश्य वाणी दी है की इस मानव जीवन में देह, मानव तन का ताना बाना बहुत ही महीन/नाज़ुक है। इस तन के निर्माण में ताना क्या है और भरनी क्या है। कौनसे तार से यह चदरिया बनी है। इंगला और पिङ्गला इसके ताना और भरनी है वहीँ पर सुषुम्ना रूपी तार से इसे बुना गया है।
इस तनरूपी चदरिया के निर्माण में आठ पंखुड़ियों का कमल ही चरखा है। पृथ्वी, जल, आग, आकाश, हवा पाँच तत्वों से इस चदरिया का निर्माण हुआ है। पंचतत्व रूपी इस चदरिया को बुनना बड़ा जटिल है। इसे बनाने में साईं को दस महीनों का समय लगा है। साईं ने इसे ठोक बजाकर इसका निर्माण किया है। इस चादर को मनुष्य के अतिरिक्त सुर, मुनि और विद्वानों ने पहना लेकिन वे भी इसे दाग से बचा नहीं सके। वे भी माया के प्रभाव से बच नहीं पाए। कबीर दास जी ने इस चादर को पहना और जैसा साईं से लिया वैसे ही वापस धर दी। उन्होंने सांसारिक विषय वासनाओं के दाग इस पर नहीं लगने दिए।
इस पद में साहेब ने जुलाहे के कार्य का उदाहरण देकर समझाया है की जैसे जुलाहा बड़े ही जतन पूर्वक चादर को बुनता है, सावधानी से तानों बानों का कार्य करता है वैसे ही ईश्वर मानव देह रूपी चादर का निर्माण करता है।
लिरिक्स/Lyrics
झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥ काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥ इडा पिङ्गला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥ आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥ साँ को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥ सो चादर सुर नर मुनि ओढी, ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥ दास कबीर जतन करि ओढी, ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥
Jheenee Jheenee Beenee Chadariya . Kaahe Kai Taana Kaahe Kai Bharanee, Kaun Taar Se Beenee Chadariya . Ida Pingala Taana Bharanee, Sukhaman Taar Se Beenee Chadariya . Aath Kanval Dal Charakha Dolai, Paanch Tattv Gun Teenee Chadariya . Saan Ko Siyat Maas Das Laage, Thonk Thonk Kai Beenee Chadariya . So Chaadar Sur Nar Muni Odhee, Odhi Kai Mailee Keenee Chadariya . Daas Kabeer Jatan Kari Odhee, Jyon Keen Tyon Dhar Deenee Chadariya .
देह रूपी चादर बहुत महीन धागों से बिनी / बुनी हुई है। The Lord Supreme has woven a very fine and delicate tapestry, free of impurities of any kind.
काहै कै ताना काहैं के भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया। kaahai kai taana kaahain ke bharanee , kaun taar se beenee chadariya |
देह रूपी चादर के निर्माण में ताना किसका है और भरनी किसकी है। इसे किस तार से बुना गया है। What refined and subtle yarn, what complex interlacing, He has used to weave it!
इंगला पिंगला ताना भरनी,
सुखमन तार से बीनी चदरिया। ingala pingala taana bharanee , sukhaman taar se beenee chadariya |
इंगला और पिंगला दोनों नाड़ियाँ क्रमशः ताना भरनी है और सुषुम्ना के तार से इसकी बुनावट हुई है। इंगला ताना और पिंगला भरनी हैं। ये दोनों नाड़िया कहाँ हैं ? वस्तुतः ये प्राणवायु संचार है जैसे किसी खेत में सिचाई व्यवस्था के लिए नालियां होती हैं वैसे ही। Using veins and breath his threads
आठ कँवल दल चरख डोलै,
पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया। aath kanval dal charakh dolai , paanch tatt gun teenee chadariya |
इसे बुनने के लिए आठ कमल पंखुड़ियों वाला चरखा चलता है (इसमें देह के चक्र का संकेत है) पाँच तत्त्वों (पृथ्वी, जल, आग, आकाश, हवा) से इसका निर्माण हुआ। Twenty four hours on end, His spinning wheel turns, Weaving the tapestry from all five essential elements.
साँइ को सियत मास दस लागे,
ठोक ठोक कै बीनी चदरिया। saani ko siyat maas das laage , thok thok kai beenee chadariya
चादर को सिलने में ईश्वर को १० महीनों का समय लगता है। भाव है की यह चादर बड़ी ही जटिल है। इसे ठोक बजाकर चादर के रूप में बनाया जाता है। Ten months does it take the Lord to weave his tapestry, Using the greatest of craftsmanship, care and skill.
सो चादर सुर नर मुनि ओढ़े,
ओढ़ कै मैली कीनी चदरिया। so chaadar sur nar muni odhe , odh kai mailee keenee chadariya
इस देह रूपी चाहर को देवता, अन्य मनुष्य तथा मुनि लोग ओढ चुके हैं। सबने उसे मैली (गंदी) कर दिया। अर्थात् वे सांसारिक वासनाओं से देह को बचा नहीं सके। उल्लेखनीय है की कबीर साहेब ने ब्राह्मणवाद पर भी चोट की है और स्पष्ट किया है की जो किताबी रूप से धर्म को जानने का दावा करते थे, कर्मकांड करते थे वो भी इस चादर को दाग लगने से बचा नहीं पाए। That exquisite tapestry is worn by the celestial, by Saints, and by human beings alike. But they all invariably have defiled it !
कबीर साहेब ने इस चादर की महत्ता को समझा और इसे विषय वासना और माया से बचा कर रखा और जैसी चादर उन्होंने प्राप्त की थी वैसे ही वापस रख दी। कबीरदास ने इस चादर को यत्नपूर्वक ओढा। बिना किसी दाग के उन्होंने इसे ज्यों की त्यों रख दी । Your humble devotee Kabir has worn it scrupulously and meticulously, And is returning it to You, O’Lord, unblemished and pure !
कबीर साहब की वाणी में गहरी अर्थवत्ता है, जो हमें देह और आत्मा के जटिल संबंध को समझाने का प्रयास करती है। जब वे कहते हैं, "काहै कै ताना काहैं के भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया," तो यह प्रश्न उठाते हैं कि इस देह रूपी चादर का निर्माण किसने किया है और इसे किस तार से बुना गया है। यहां इंगला और पिंगला नाड़ियाँ ताने और भरनी के रूप में कार्य करती हैं, जो हमारे जीवन में प्राणवायु के संचार का संकेत देती हैं। इन नाड़ियों का उपयोग उस सूक्ष्म और रिफाइंड यार्न के लिए किया जाता है, जिससे यह चादर बुनी गई है। यह चादर हमारे अस्तित्व के सभी पांच तत्त्वों—पृथ्वी, जल, आग, आकाश, और वायु—से निर्मित होती है, जो कबीर के शब्दों में "आठ कँवल दल चरख डोलै" के माध्यम से प्रदर्शित होता है। यह चरखा निरंतर घूमता रहता है, जैसे हमारे जीवन का चक्र चलता है।