आज बदरा उठा प्रेम का लिरिक्स

आज बदरा उठा प्रेम का Aaj Badara Utha Prem Ka Bhajan Lyrics


आज बदरा उठा प्रेम का लिरिक्स Aaj Badara Utha Prem Ka Bhajan Lyrics

आज बदरा उठा प्रेम का,
हम पर बरसा होई,
हर्षिली हो गई आत्मा,
हरी भरी बन रई,
मन मस्त हुआ,
अब क्या बोले,
क्या बोले फिर क्या बोले।

हल्की थी जब चढ़ी तराजू,
पूरी भरी अब क्यों तोले,
मन मस्त हुआ,
अब क्या बोले।

हीरा पाया,
बांध गठरिया,
बार बार वा को क्यों खोले,
मन मस्त हुआ,
अब क्या बोले।

हंसा नहाया मन सरोवर,
ताल तलैया में क्यों डोले,
मन मस्त हुआ,
अब क्या बोले,
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
साहिब मिल गया तिल ओले,
मन मस्त हुआ,
अब क्या बोले।
 
संत कबीरदास जी के इस भजन में आत्मा की उस अवस्था का वर्णन है, जहां ईश्वर-प्रेम में डूबकर मन मस्त हो जाता है और शब्दों की आवश्यकता नहीं रहती। आइए, सरल भाषा में प्रत्येक पंक्ति के अर्थ को समझें:

"आज बदरा उठा प्रेम का, हम पर बरसा होई,"
आज प्रेम के बादल उठे हैं और हम पर बरस रहे हैं। यह दर्शाता है कि ईश्वर का प्रेम हमारे जीवन में प्रकट हो रहा है।

"हर्षिली हो गई आत्मा, हरी भरी बन रई,"
आत्मा आनंदित हो गई है और मनोभूमि हरी-भरी हो गई है। यह बताता है कि ईश्वर-प्रेम से आत्मा में आनंद और जीवन में ताजगी आ गई है।

"मन मस्त हुआ, अब क्या बोले,"
मन प्रेम में मग्न हो गया है, अब क्या कहे। यह इंगित करता है कि जब आत्मा ईश्वर-प्रेम में डूब जाती है, तो शब्द व्यर्थ हो जाते हैं।

"हल्की थी जब चढ़ी तराजू, पूरी भरी अब क्यों तोले,"
जब तराजू में वजन कम था, तब तौलना उचित था; अब जब पूरी तरह भर गई है, तो तौलने की क्या आवश्यकता? यह संकेत करता है कि जब आत्मा अधूरी थी, तब खोज थी; अब पूर्णता प्राप्त होने पर और तौलने की आवश्यकता नहीं।

"हीरा पाया, बांध गठरिया, बार बार वा को क्यों खोले,"
अनमोल हीरा (ईश्वर) मिल गया है और उसे सुरक्षित बांध लिया है; फिर बार-बार उसे खोलकर देखने की क्या आवश्यकता? यह बताता है कि ईश्वर-प्राप्ति के बाद बार-बार प्रमाण या अनुभव की आवश्यकता नहीं रहती।

"हंसा नहाया मन सरोवर, ताल तलैया में क्यों डोले,"
हंस (आत्मा) ने मानसरोवर (ईश्वर) में स्नान कर लिया है; अब छोटे तालाबों में क्यों भटके? यह दर्शाता है कि ईश्वर-प्राप्ति के बाद आत्मा को सांसारिक सुखों में भटकने की आवश्यकता नहीं।

"कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिल गया तिल ओले,"
कबीर कहते हैं, सुनो साधु भाइयों, मुझे साहिब (ईश्वर) तिल के बराबर छोटे रूप में भी मिल गए हैं। यह दर्शाता है कि ईश्वर सूक्ष्मतम रूप में भी उपस्थित हैं, और उन्हें अनुभव किया जा सकता है।

इस भजन के माध्यम से कबीरदास जी आत्मा की उस अवस्था का वर्णन करते हैं, जहां ईश्वर-प्रेम में डूबकर मन मस्त हो जाता है, और बाहरी आडंबर, तर्क या प्रमाण की आवश्यकता नहीं रहती। यह पूर्ण आत्मसमर्पण और आत्मज्ञान की स्थिति है, जहां साधक और साध्य एक हो जाते हैं।

Meaning:
Clouds of love have risen today,
They have showered down on me,
The life within me is now full of joy,
And the world around me serene,
My heart is now drunk on love,
I find no need to speak.
Oh how can i describe this,
I climbed the weighing scale,
when I felt small,
What is the need to measure,
now that I feel full.
My heart is now drunk on love,
I find no need to speak.
I have found an invaluable gem,
and tied it safely within,
Why open the knot again and again.
My heart is now drunk on love,
I find no need to speak,
This swan has bathed,
in the lake Manasarovar.
Now why would it dwell in,
ponds and puddles.
My heart is now drunk on love,
I find no need to speak.
Kabir says, listen dear fellow seekers,
I have found the divine even in a grain,
My heart is now drunk on love,
I find no need to speak.


Mann Mast Hua | Kabir | मन मस्त हुआ | Devotional Poem | Alaap - Songs from Sadhguru Darshan


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