गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु मीनिंग जानिये अर्थ और महत्त्व
मीनिंग इन हिंदी : इस गुरु मन्त्र का अर्थ है गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं।
Lyrics in Sanskrit/हिंदी
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः Lyrics in English/इंग्लिश
GururBrahma GururVishnu GururDevo Maheshwaraha Guru Saakshaat ParaBrahma Tasmai Sri Gurave Namaha Meaning in English : Guru is the Creator (पूर्ण परम ब्रह्मा /Brahma), Guru is the Preserver(Vishnu), GuruDeva is Destroyer(Maheshwara) Guru is the absolute (singular) Lord himself, Salutations to that Sri Guru
Meaning of this Mantra गुरु Guru: Dispeller of Darkness; Gu=Darkness, Ru=Remover ब्रह्मा Brahma: Creator; Personification of Creating Quality of God विष्णु Vishnu: Preserver; Personification of Preserving quality of God
Guru Purnima Bhajan,Mantra Lyrics in Hindi
देवा Deva: God महेश्वरा Maheshwara: Destroyer; Personification of Destroying Quality of God साक्षात Saakshaat: Self/ Himself परब्रह्मा ParaBrahma: He who is the highest Lord; Consciousness तस्में Tasmai: To him/ To such श्री Sri: Holy, splendorous नमः Namaha: Salutations Related Post
GURU MANTRA | GURU VANDANA | GURU BRAHMA GURU VISHNU GURU DEVO MAHESHWARA
गुरु महत्वूर्ण क्यों है : इस गुरु मन्त्र में गुरु को ही सबसे ऊँचा स्थान दिया गया है। गुरु ही ब्रह्म विष्णु और महेश हैं। वस्तुतः कबीर साहेब ने भी बताया की "गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागू पाँय" गुरु को गोविन्द से भी ऊँचा बताया क्योंकि गुरु ही जीवात्मा को गोविन्द की और अग्रसर करता है, हृदय में अग्नि प्रज्वल्लित करता है। इसलिए गुरु का दर्जा सर्वश्रेष्ठ है। यदि आपने अब तय कर लिया है की साधना मार्ग पर आगे बढ़ना है तो निश्चित ही गुरु बहुत महत्पूर्ण हो जाता है। गुरु ही आगे की राह प्रशस्त करता है। गुरु ही साधक की कमियों को दूर करता है। लेकिन महत्वपूर्ण है की गुरु का चयन करते समय यह देखा जाए की गुरु स्वंय कितना ग्यानी है, अन्यथा "अंधे को अँधा मिला, राह बतावे कौन" स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जितना महत्त्व गुरु रखता है उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है की गुरु किसे बनाया जाए, यह कुछ जटिल है।
इस श्लोक में, गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के रूप में दर्शाया गया है। ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता, विष्णु पालक और महेश्वर संहारक हैं। गुरु को इन तीनों देवताओं के समान माना जाता है क्योंकि वे हमें ज्ञान, प्रकाश और मोक्ष के मार्ग पर ले जाते हैं।
श्लोक का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है:
गुरु = शिक्षक
ब्रह्मा = सृष्टि के रचयिता
विष्णु = पालक
महेश्वर = संहारक
साक्षात = प्रत्यक्ष रूप
परब्रह्म = सर्वोच्च देवता
श्रीगुरवे = श्री गुरु को
नमः = प्रणाम
इस श्लोक से यह संदेश मिलता है कि गुरु का स्थान हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है। गुरु हमें ज्ञान, प्रकाश और मोक्ष के मार्ग पर ले जाते हैं। हमें अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
यह श्लोक अक्सर हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा के दिन पढ़ा जाता है। गुरु पूर्णिमा को गुरुओं के सम्मान में मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा : गुरु का महत्त्व सर्वोच्च क्यों है
गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन गुरु के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त किया जाता है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना जाता है। वे ही ज्ञान का भंडार हैं। वे ही शिष्य को सही मार्ग दिखा सकते हैं। वे ही भक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। वे ही शिष्य को मोक्ष की प्राप्ति करवा सकते हैं।
Author - Saroj Jangir
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