नैहरवा हम का न भावे कबीर भजन
नैहरवा हम का न भावे अर्थ सहित
कबीर, अपने रहस्यमय तरीके से, व्यक्ति की सार्वभौमिक आत्म से उसकी दुल्हन की तरह अलग होने की तुलना कर रहे हैं। वह बताते हैं कि यह अतृप्त प्यास एक अलगाव की भावना से आती है जिसकी जड़ द्वैत में होती है।
फिर वे बताते हैं कि इस समस्या से निपटने में मदद करने वाला एकमात्र व्यक्ति ही गुरु है। अपने अंतिम बिदाई कबीर ने खुलासा किया कि प्रिय तक पहुंचने का रास्ता बाहर नहीं है, बल्कि अंदर (एक सपने जैसी अवस्था के समान) है जो अकेले प्रतीत होने वाली जलती हुई प्यास को संतुष्ट करेगा।
जहाँ कोई जाए ना आवे
चाँद सुरज जहाँ, पवन न पानी,
कौ संदेस पहुँचावै
दरद यह... साई को सुनावै
आगे चालौ पंथ नहीं सूझे,
पीछे दोष लगावै
केहि बिधि ससुरे जाऊँ मोरी सजनी,
बिरहा जोर जरावे
विषै रस नाच नचावे
बिन सतगुरु आपनों नहिं कोई,
जो यह राह बतावे
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
सपने में प्रीतम आवे
तपन यह जिया की बुझावे
नैहरवा...
I Don’t Find any Interest in My Parent’s House
My Beloved’s Town is Most Beautiful
However, Nobody Goes or Comes from There
There is no Moon, Sun, Wind, or Water There
Then Who Will Take My Message There?
Then Who Will Tell My Pain to My Beloved?
There is No Visible Path to Move Forward
And You Blame the Past for It
How Should the Bride go to the House of the Beloved?
Powerful Pangs of Separation are Burning from Inside
Dual Reality is Fashioning a Dance to Its Tune
There is None Other Than the Guru Who is Mine Who Can Tell the Way
Says Kabir Listen oh Aspirant
Your Beloved Will Come in a Dream-like State
That Alone Will Quench the Thirst of your Heart
Naiharwa Humka Na Bhave || Naiharva Song Lyrics With Meaning || Sai Ki Nagari
कबीरदासजी का यह भजन आत्मा की उस तड़प को बयां करता है, जो परमात्मा से बिछड़ने के दुख में जल रही है। नैहरवा, यानी संसार, भक्त को अब नहीं भाता, क्योंकि उसका मन साईं की नगरी में रम गया है। वो नगरी इतनी सुंदर है, जहां न चांद-सूरज हैं, न पवन-पानी, फिर भी वो हर सुख का स्रोत है। जैसे कोई सच्चा प्रेमी अपने प्रिय की एक झलक के लिए तरसे, वैसे ही जीवात्मा अपने साईं के दर्शन को बेकरार है।
भक्त की पीड़ा ये है कि उसका दर्द साईं तक पहुंचाने वाला कोई संदेशवाहक नहीं। न कोई रास्ता दिखता है, न पीछे का दोष मिटता है। बिरहा की आग ऐसी जलाती है कि संसार का सारा रस-रंग नाच बनकर मन को भटकाता है। जैसे कोई प्यासा बिना पानी के तड़पे, वैसे ही भक्त का मन साईं के बिना अधूरा है।
कबीर कहते हैं, इस बिरहा की आग को बुझाने का एकमात्र रास्ता सतगुरु की शरण है। गुरु ही वो मार्गदर्शक है, जो सत्य का रास्ता दिखाता है। वो कहते हैं, साधो, सच्चे मन से ध्यान करो, तो प्रीतम सपने-सी अवस्था में मिलेगा, और मन की सारी तपन शांत हो जाएगी। जैसे कोई ठंडी छांव थके पथिक को सुकून दे, वैसे ही गुरु का ज्ञान आत्मा को परमात्मा से मिला देता है।
जीवन का सच यही है कि संसार का मोह छोड़कर, सतगुरु की शरण में जाकर ही साईं की नगरी तक पहुंचा जा सकता है। बस सच्चे मन से पुकारो, तो वो प्रीतम जरूर मिलता है, और मन का हर दुख मिट जाता है।
कबीर साहब के अनुसार, मानव शरीर केवल हड्डियों और मांस का एक पुतला नहीं है, बल्कि यह स्वयं ईश्वर का निवास स्थान है। वे मानते थे कि ईश्वर को बाहर मंदिरों, मस्जिदों या तीर्थों में खोजने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह हमारे भीतर ही, हमारी आत्मा में बसता है। शरीर एक पवित्र मंदिर के समान है, जिसमें आत्मा रूपी परमात्मा निवास करता है। कबीर ने इसे एक मिट्टी के बर्तन की उपमा दी है, जिसमें दिव्य ज्योति समाहित है। उनका मानना था कि जब तक हम इस शरीर के बाहरी आवरण और सांसारिक मोह-माया में उलझे रहते हैं, तब तक हम भीतर बैठे ईश्वर को नहीं पहचान पाते। इस प्रकार, कबीर के दर्शन में, ईश्वर कहीं और नहीं, बल्कि हमारे ही अस्तित्व का एक अभिन्न अंग है, और इस सत्य को पहचानना ही जीवन का अंतिम उद्देश्य है।यह भजन भी देखिये
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Author - Saroj Jangir
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