वर्तमान को वापस वर्धमान चाहिये

गुरु देव शास्त्र को भूले,
हुऐ धर्म से अंजान है,
इतिहास ना जाने क्यों अब,
खो रहे अपनी पहचान है।
मिटती मानवता को,
एक वही भगवान चाहिये,
वर्तमान को वापस,
वर्धमान चाहिये।
क्यूं संत सुरक्षित नही है,
भारत मां की गोद में,
क्यूं तीर्थ सिसकते है,
झुठे दावे विरोध में,
क्यूं कदम कदम पर,
ख़तरे में अस्तित्व हमारे,
क्यूं बैठी आंखे मूंदे,
देश की सब सरकारे,
बहुत दिये प्रस्ताव,
अब परिणाम चाहिये,
बहुत दिये प्रस्ताव,
अब परिणाम चाहिये।
जहां से मोक्ष गये है नेमि,
वही गिरनार चाहिये,
जहां से मोक्ष गये है नेमि,
वही गिरनार चाहिये,
फिर से वर्तमान को,
वापस वर्धमान चाहिये।
क्षत्रिये होकर भी किसी का,
न कभी रक्त बहाये,
इतिहास गवाह है,
धर्म की ख़ातिर प्राण लुटाये,
पुरखों के बलिदानों के,
बड़े उपकार है हम पर,
है अभिमान और गर्व,
हमें जैनी होने पर,
आज हर घर में एक,
निकलंक सी सन्तान चाहिये,
आज हर घर में एक,
निकलंक सी सन्तान चाहिये।
बंट गये है पन्थों में,
फंसकर यहां पर दो भाई,
किसने भेद भाव की,
चिंगारी सुलगाई,
आपस की कटुता त्यागो,
साथ चलो सब मिलकर,
विश्वास रखो दृढ़,
जिनशासन के सिद्धांतों पर,
बढ़ानी हर प्राणी को,
अपने धर्म की शान चाहिये,
बढ़ानी हर प्राणी को,
अपने धर्म की शान चाहिये।
फिर से वर्तमान को,
वापस वर्धमान चाहिये,
फिर से वर्तमान को,
वापस वर्धमान चाहिये।
वर्तमान को वापस,वर्धमान चाहिये || Vartaman ko wapas Vardhaman Chahiye || Akshay jain
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