राम बिनु तन को ताप न जाई मीनिंग Raam Binu Tan Ko Bhajan Meaning

राम बिनु तन को ताप न जाई मीनिंग Raam Binu Tan Ko Bhajan Meaning

 
राम बिनु तन को ताप न जाई मीनिंग Raam Binu Tan Ko Meaning

राम बिनु तन को ताप न जाई,
जल में अगन रही अधिकाई,
राम बिनु तन को ताप न जाई।

तुम जलनिधि मैं जलकर मीना,
जल में रहहि जलहि बिनु जीना,
राम बिनु तन को ताप न जाई।

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा,
दरसन देहु भाग बड़ मोरा,
राम बिनु तन को ताप न जाई।

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला,
कहै कबीर राम रमूं अकेला,
राम बिनु तन को ताप न जाई।


रामबिनु तन को ताप न जाई  कबीर संगीत गायन VNS भोला

Raam Binu Tan Ko Taap Na Jaee,
Jal Mein Agan Rahee Adhikaee,
Raam Binu Tan Ko Taap Na Jaee.

Tum Jalanidhi Main Jalakar Meena,
Jal Mein Rahahi Jalahi Binu Jeena,
Raam Binu Tan Ko Taap Na Jaee.

Tum Pinjara Main Suvana Tora,
Darasan Dehu Bhaag Bad Mora,
Raam Binu Tan Ko Taap Na Jaee.

Tum Sadguru Main Preetam Chela,
Kahai Kabeer Raam Ramoon Akela,
Raam Binu Tan Ko Taap Na Jaee.

राम बिनु तन को ताप न जाई मीनिंग Raam Binu Tan Ko Meaning

राम बिनु तन को ताप न जाई : राम के नाम के सुमिरण के बिना तन का ताप नहीं जाता है। तन का ताप से आशय है जब तक जीवात्मा माया के भरम के भंवर जाल में फंसी रहती है, उसे कहीं भी कोई आस नहीं दिखाई देती है। जितना जीवात्मा धन दौलत, सांसारिक जंजालों में फँसती जाती है, उतना ही वह ईश्वर से दूर होती चली जाती है और माया के मूल स्वभाव के परिणाम के कारण अधिकता से बेचैन और व्यथित होती रहती है। अंदर से उसे असंतोष रहता है। यह असंतोष कैसा है। वस्तुतः वह अपने मालिक, स्वामी की तरफ जाना चाहती है लेकिन माया का आवरण ऐसा बन जाता है की वह अधिक व्यथित ही रहती है, यही तन का ताप है।
जल में अगन रही अधिकाई राम बिनु तन को ताप न जाई- जल से आशय माया से है, माया से जलन कम होने के स्थान पर और अधिक रूप से बढ़ जाती है।
तुम जलनिधि मैं जलकर मीना- आप जलनिधि हैं और मैं (जीवात्मा) मछली है।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना-समस्त संसार उस पूर्ण परब्रह्म का ही है लेकिन उसी के द्वारा रचित जगत में रहकर जीवात्मा परमात्मा को भूल जाती है, यह ऐसे ही है जैसे पानी के बीच रहकर मछली जल को ना जान पाए। यदि मछली को जल से विहीन कर दिया जाए तो उसका कोई अस्तित्व शेष नहीं बचता है।
तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा- हे ईश्वर आप पिंजरा हैं और मैं सुवना (तोता).
दरसन देहु भाग बड़ मोरा-आप मुझे दर्शन दीजिए मेरे बड़े भाग होंगे, मैं भाग्यशाली रहूंगी जो आपका दर्शन प्राप्त कर लूँ।
तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला-आप मेरे गुरु हैं और मैं आपका चेला हूँ।
कहै कबीर राम रमूं अकेला - कबीर साहेब कहते हैं की वे अकेले ही राम में राम गए हैं।  

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